महावीर अग्रवाल
मन्दसौर ५ अगस्त ;अभी तक; नितिन गडकरी जी केंद्रीय मंत्री है। उनकी उदार सोच और प्रशासनिक क्षमता की प्रशंसा उनके दल के ही नहीं विपक्षी नेता भी करते है। वर्तमान कड़वाहट भरे राजनैतिक वातावरण में उनकी अलग पहचान उनकी उदार सोच के लिए भी है। मै भी उनके प्रशंसकों में से हूँ।
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एव पूर्व मंत्री श्री नरेन्द्र नाहटा ने सोशल मीडिया पर उक्त विचार व्यक्त करते हुए लिखा है कि पिछले दिनों उनने कहा कि वर्तमान राजनीति केवल सत्ता प्राप्त करने का माध्यम हो गयी है। वे निराश है और उनका राजनीति छोड़ने का मन करता है। हम सबने, वे जो उनके दल के है और वे विपक्षी जो उनकी प्रशंसा करते है तथा आम नागरिक , सबने उनके वक्तव्य की उपेक्षा की।ना तो इस बात का दुःख है की इतनी सकारत्मक सोच रखने वाला व्यक्ति निराश है ना इस बात की कि जब राजनीति को अच्छे लोगो की ज्यादा जरूरत है, उन जैसा व्यक्ति राजनीति छोड़ना चाहता है। उनसे आठ लेन वाली सड़क तो लेंगे पर वे जो कह रहे है उस पर ध्यान नहीं देंगे। घाटा उनका नहीं , हमारा होगा।
क्या गडकरी जी सही है। अपने इर्द गिर्द देखिएगा। पिछले दिनों पंचायतों और नगर पालिकाओं , नगर परिषदों के चुनाव हुए। अप्रत्यक्ष चुनाव से जनपद और नगरीय निकाय के अध्यक्ष चुने गए या जाएंगे। आपने जरूर सुना होगा कि उम्मीदवारों का कितना पैसा खर्च हुआ। केवल पच्चीस लोगों में1 से 2 -3 करोड़। इतना ही नगर परिषदों के 15 लोगों के लिए। कहाँ से आया यह धन और कैसे वसूल होगा। सब जानते है। पर चुप है। बोलना छोड़िये , सोच भी नहीं रहे। दूसरी पार्टी के सदस्य को तोड़ने के लिए ठीक , अपनी ही पार्टी के सदस्यों को रोक रखने के लिए भी धन चाहिए था। पार्टी से टिकिट लीजिये, उसके नाम पर वोट लीजिये और फिर बाज़ार में अपनी बोली लगाइये। आपने कभी सोचा नहीं होगा कि जब विधायक रिसोर्टो वाले बाड़े में बंद किये जाएंगे तो गिरावट यहाँ तक पहुंचेगी। उन्हें करोड़ में दिए तो इन्हे लाखों में तो देना ही होगा। न आपको बुरा लग रहा है न उन्हें शर्म आ रही है।
उन्होंने लिखा कि अब प्रत्यक्ष चुनाव की बात। सरपंच , जनपद और जिला पंचायत तथा पार्षद के चुनाव में हुए खर्च का आकलन भी करिये। हम समझते है कि केवल गरीब बस्तियों में नोट और दारू जा रहा है। एक विपक्षी दल के मित्र बता रहे थे जिनने अभी अभी चुनाव लड़ा किस तरह शहरी , शिक्षित , सभ्रांत कॉलोनियों में भी ंमतदाताओं को खरीदा गया , या अब वे भी बिकना चाहते है। खरीद दार का इंतज़ार है। गरीब बस्तियों में देशी , यहाँ विदेशी,बस इतना फर्क है।
श्री नाहटा ने लिखा कि लोकतंत्र की द्रौपदी का चीर हरण होता रहा। आप चुप रहे तो फिर अपने को पांडव मत समझिये , कौरवो के समूह में है। अंत महा वभारत में सबने देखा है। यही अंत इस देश में लोकतंत्र का भी होगा। इस बार ईस्ट इंडिया कंपनी विदेश से नहीं आएगी , बहुत सारे धनपति अब नीचे से ऊपर तक की सरकारो पर वैसा ही कब्ज़ा करेंगे जैसा उनने किया । जो युवा अब राजनीति में आ रहे है वे सोच लें , यदि करोड़ों में कुर्सियां खरीदी जाएंगी तो उनका नंबर कब, कैसे आएगा। भगत सिंह या उधम सिंह को हार पहनाओ तो अंदर जरूर झांकना। क्या इसी भारत के लिए उनने जान दी।
उन्होंने अंत मे यह भी लिखा कि अभी भी समय है। नितिन गडकरी जी की बात को सुनिए , चिन्तन कीजिये। आपकी भूमिका है , धृतराष्ट्र या भीष्म पितामह मत बनिए , बोलिये।