प्रेषक डाक्टर सम्पत स्वरूप जाजू
(महावीर अग्रवाल )
मंदसौर १७ सितम्बर ;अभी तक; कड़वी सच्चाई जिसको सरकार का नेतृत्व करने वाले और क्रियान्वयन करवाने वाले स्वीकार नही करेंगे
वरिष्ठ भाजपा नेता और पूर्वमंत्री चावलाजी वर्तमान कोरोना काल के समय प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से सरकारों की नेतृत्वकर्ताओं और आम लोगों की कार्यशैली पर एक लम्बे समय तक मंथन कर दो मुख्य बिंदुओं १- दायित्व-बोध, और दूसरा चरमराती स्वास्थ सेवाए पर चर्चा की ..साधुवाद
वर्तमान समय में हर सरकारे और नेता अपना कथित दायित्व बोध का उपयोग कर अपने लक्ष की प्राप्ति को प्राप्त करने के लिये जी जान से प्रयास कर रहा हैं . सभी राजनीतिक दलो के नेताओ का एकमात्र प्रमुख लक्ष सत्ता में बने रहना और सत्ता को कैसे प्राप्त करना ही बचा हैं सत्ता में भागीदारी निभा कर निजी स्वार्थ पूर्ति करना हैं और अहंकार को संतुष्ट करना एवम् अपना रसूख़ बनाए रखना हैं ,ना कि कोविड -१९ की जंग को लड़ना .. और यह सब भारत के लोगों ने विगत छः माह में अनुभव किया किसी भी सरकार ने चाहे वह केंद्र की हो या प्रदेशों की कोई ठोस रणनिति नही बनाई जबकी एक लम्बा समय( छः माह से अधिक ) सभी स्तर पर मिला .
किसी भी जंग को जितने के लिये दृढ़ इच्छा शक्ति, दूर दृष्टि के साथ इन चार का होना ज़रूरी होता हैं
१-सुदृढ़ रणनीति
२-अनुशासन
३-कर्तव्य को निभाना
४-सही समय का उपयोग
कोविड -१९ की जंग में उपरोक्त सभी का अभाव रहा .
ना तों सही रणनीति थी ना ही अनुशासन , ना ही कर्तव्य को निभाने का जज़्ज़ब्बा और ना ही समय के उपयोग का तरीक़ा , जिसके कारण आम जन भ्रमित हो गया और जो सामंजस्य शासन जनप्रतिनिधि और जनता के बीच कोविड -१९ की जंग से लड़ने के लिये होना चाहिये वह नही बन पाया ..जिसके परिणाम अब देखने को मिल रहे हैं।
अभी भी समय हैं हम सब मिलकर अनुशासन में रहते अपने कर्तव्यों का निर्वहन करे खुद की सुरक्षा खुद करे ना तो सरकार पर और ना ही अन्य किसी पर निर्भर रहे .
व्यक्तिगत सुरक्षा के नियमो का कड़ाई से पालन करना ही श्रेष्ठ रणनीति हैं कोविड-१९ की जंग में ..
दूसरा मुख्य बात जिस पर उन्होंने मंथन किया वह चरमराती स्वास्थ सेवायें ..! ज़िले की और प्रदेश की ख़राब स्वास्थ सुविधाओं के बारे में कई दशकों से हर स्तर पर चर्चा हो रही थी . नीमच ज़िला बनने के बाद ज़िले की स्वास्थ सुविधाओं के उन्नयन के बारे में लगातार मीडिया ( प्रिंट , इलेक्ट्रोनिक , सोश्यल पर चर्चा की जा रही हैं )के और व्यक्तिगत ज्ञापनो के माध्यम से जनप्रतिंधियो और प्रशासन को बताया जा। रहा है ? ज़िला बने बाईस वर्ष हो गये हैं विभिन्न सरकारें रही विभिन्न जनप्रतिंधि रहे उनकी स्वाथ सुविधाओं के उन्नयन के बारे में नकारात्मक कार्यशैली रही जिसके कारण जो सुविधाएँ ज़िला स्तर
ज़िला स्तर पर और ग्रामीण क्षेत्र में सीएचसी , पीएचसी एएनएम सेंटरो पर होना चाहिये थी वे कही पर भी नही हैं .! सबसे बड़ी कमी चिकित्सा के क्षेत्र में मानव संसाधन( चिकित्सकों , विशेषज्ञ चिकित्सकों और पेरा मेडिकल स्टाफ़ ) की विगत दो-? ढाई दशकों से निरंतर बनी हुई हैं
नीमच ज़िला बनने से पूर्व एवम् बाद में संसदीय क्षेत्र को जो राजनीतिक नेतृत्व ( दोनो प्रमुख राजनीतिक दल )मिला वे दिल्ली से लेकर भोपाल तक विभिन्न मंत्रिमंडल में मुख्यमंत्री के पद से लेकर मंत्री तक रहे और आज भी हैं . लेकिन दुर्भाग्य रहा कि स्वास्थ सेवाओं के बारे में ना तो उन्होंने कोई योजनाबद्ध तरीक़े से कार्य किया और ना ही उनकी इतनी दूरदृष्टि दिखी जिसका लाभ स्वास्थ के क्षेत्र में संसदीय क्षेत्र को मिलें ..?? क्या यही उनका दायित्व था क्षेत्र के प्रति?
आज़ादी के बाद से लेकर आज तक संसदीय क्षेत्र ने तीन मुख्यमंत्री दिये और उनके अलावा बारह मंत्री दिये उसके बाद भी अगर स्वास्थ सुविधाओं के हाल यह हैं तो बताए कर्तव्य बोध किसको नही था..!!
क्या यह मंदसौर ज़िला चिकित्सालय का दुर्भाग्य नही हैं कि विगत चार वर्षों से ब्लड सेपरेशन यूनिट की मशीन आकार पड़ी हैं लेकिन उसका उपयोग अभी तक शुरू नही हो पाया ..?
मंदसौर के लिये ट्रॉमा सेंटर स्वीकृत हुए वर्षों हो गए लेकिन वह ज़मीन पर मूर्तरूप नही ले पाया जबकि नीमच में ट्रॉमा सेंटर का भवन बने लगभग चार वर्ष हो चुके हैं वहाँ भवन का उपयोग अन्य कार्यों के लिये किया जा रहा हैं ..?
ना तो मैं किसी पर आरोप लगा रहा हूँ मै केवल इस बात पर मनन कर रहा हूँ कि दिल्ली से लेकर मनासा तक अगर स्वास्थ सुविधाओं के उन्नयन के दायित्व को निभाने में कौन कड़ी कमजोर हैं .. और क्या अब भी हमारे ज़िम्मेदार लोग अपनी कार्यशैली में परिवर्तन कर स्वास्थ को प्रथम प्राथमिकता पर लेते हुए स्वाथ सेवाओं का उन्नयन करवाएँगे
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