मंडला संवाददाता
मंडला ३० अप्रैल ;अभी तक; कई खेतों में किसान धड़ल्ले से बेखौफ होकर पराली जला रहे हैं। उन्हें न तो प्रशासन की कार्रवाई का डर है और न ही कोर्ट के आदेश की परवाह। ऐसे में पराली जलाने के कारण प्रदूषण का स्तर बढ़ रहा है और चारों ओर धुंआ फैलने से लोगों को सांस लेने में परेशानी हो रही है। इन दिनों नरवाई जलाने से लगातार फसलें खाक हो रही है जिससे किसानों को आर्थिक क्षति हो रही है। वहीं उनकी रात दिन की मेहनत पर भी पानी फिर रहा है।

जमीनों को होता है भारी नुकसान
नरवाई जलाने पर जो भूमि का तापमान होता है जिसमें हमारे फसलों के लिए लाभदायक जीव जंतु मर जाते हैं और जो लाभदायक क्रिया उन जीव जंतु के द्वारा की जाती है। वह भी समाप्त हो जाती है और खेतों की उर्वरक क्षमता भी कम हो जाती है।जिस कारण से उत्पादन प्रभावित होता है, नरवाई जलाने से निकलने वाले दुनिया से ग्लोबल वार्मिंग जैसे वायु प्रदूषण भी तेजी से बढ़ता है।
ऐसे होती है नरवाई समाप्त
धान गेहूं आदि की जो पाल निकलती है, उसमें 20 रुपए का डीकंपोजर आता है जिसे गर्म पानी में घोलकर खेतों में छिड़काव करा देने से नरवाई ही समाप्त हो जाती है और वह खाद का रूप ले लेती, जिससे कि खेतों की उर्वरक क्षमता बराबर बनी रहती है।