महावीर अग्रवाल
मन्दसौर १५ अक्टूबर ;अभी तक; जन्म के साथ मृत्यु का सम्बन्ध जुड़ा रहता है। जहां संयोग है वहां वियोग अवश्यम्भावी है, वियोग अच्छा नहीं लगता मगर मजबूरन वियोग को भी स्वीकार करना पड़ता है, संयोग सुख देता है वही वियोग दुःखी करता है, ज्ञानी दोनों में समभाव कर रख जीते हैं जो समभाव रखता है वो ज्ञानी है।
उक्त विचार नगर के लब्ध प्रतिष्ठित व्यवसायी संधारा साधक श्री विनोद जैन के उठावणे के प्रसंग पर जैनाचार्य श्री विजयराजजी म.सा. ने कहे। आपने कहा-विनोद जैन कच्छारा 2006 के वर्षावास में सम्पर्क में आये, प्रारंभ में उनका मन जिज्ञासु था, वे आधुनिक विचारधारा में रचे पचे थे। धर्म, अध्यात्म, साधु-संतों के बारे में कई जिज्ञासाएँ उनके मन में थी। जैसे-जैसे उनका समाधान होता गया उनका रूझान धर्म की ओर बढ़ने लगा, अपने जीवन के साठ बसंत पार कर लेने के बाद वे सक्रिय रूप से धर्म-साधना से जुड़ गए, फिर वे जुड़ते चले गये। वे धर्म को रूढ़ि मानकर नहीं वस्तु सत्य मानकर जीये इसीलिए उनके भीतर मानवता के भाव विकसित हुए। मध्यभारत सिरेमिक्स इण्डस्ट्री के मालिक होते हुए भी उन्होनंे तथा उनके अनुज सुशील जैन ने व्यावसायिक उपक्रम से जुड़े सभी कर्मचारियों को लॉकडाउन में भी पूरा वेतन प्रदान कर अपने उच्च मानव होने का दायित्व निभाया।
आचार्य श्री ने कहा- विनोद जैन जब से सम्पर्क में आये तब से उनमें उदारता, सेवाभावना, संघ समर्पणा और संत सेवा की अभिरूचि बढ़ती गई । ज्यूं ज्यूं धन बढ़ा त्यों-त्यों उनका धर्म भी बढ़ता गया। वे नाम की कामना से कोई काम नहीं करते थे। बिना नाम के काम करने में विश्वास रखते थे। शांतक्रांति संघ के निर्माण से लेकर अभ्युदय के वे साक्षी रहे। तन, मन, धन से सक्रिय सहयोग प्रदान कर एक नये संघ के निर्माण के सशक्त हस्ताक्षर रहे।
आचार्यश्री ने कहा- जीवन मिलना भाग्य की बात है, मृत्यु होना यह समय की बात है, मगर मृत्यु के बाद भी लोगों की स्मृति में जीवित रहना हे विनोद! ये तुम्हारे शुभ कर्मों की सौगात है।
इस अवसर पर शहर के गणमान्य लोगों की उपस्थिति में शांत क्रांति संघ के महामंत्री विमल पामेचा ने शोक सन्देश पत्रों का वाचन किया। अंत में आचार्य श्री ने मंगल पाठ का श्रवण कराकर किरण जैन व परिजनों को धैर्य, साहस और समता भाव अपनाने का अनुरोध किया। ये जानकारी कांतिलाल रातड़िया ने प्रदान की।
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