अरुण त्रिपाठी
रतलाम २६ अक्टूबर ;अभी तक; आधुनिकता की चकाचौन्ध एवं कंप्यूटरी – मोबाईल युग में सांसारिक जीवन का त्याग करने का मन बनाकर विरली आत्मा ही होती हैं जो संयम मार्ग पर जाने के लिए आतुर एवं लालायित रहती हैं। इसमें यह भी कहा जा सकता हैं कि दीक्षा लेने के भाव भी पूर्व जन्मों के अनंत पुण्योदय, परिवार के द्वारा बीजारोपित संस्कारों का परिणाम व संयमी आत्माओं की मुख्य प्रेरणा भी होता हैं। जिसका जीवन वास्तव में बचपन से संस्कारित हो, यतना रखने वाला, धर्म एवं चारित्र आत्माओं की सेवा करने के प्रति नि:स्वार्थ भाव से सदैव समर्पित हो। उस व्यक्ति का जीवन संयम पथ की ओर सहज रूप से बढ़ जाता हैं। रतलाम नगर की गौरव मुमुक्षु सलोनी बहन कटारिया भी एक ऐसी ही आत्मा हैं जो इस मनुष्य भव को सार्थक करने के लिए संयमी जीवन अंगीकार करेगी। दीक्षित होना मुमुक्षु के परिवार, संप्रदाय या रतलाम नगर के लिए ही नहीं अपितु समूचे जैन समाज के लिए अविस्मरणीय गौरव की बात होगी।

इस प्रसंग पर समिति के सभी सदस्यों ने मुमुक्षु के उपस्थित परिवारजन दादी सुशीलादेवी, माता पिता अनिता सुनील कटारिया, अहमदाबाद निवासी बहन – जीजा सुनीता ललित मेहता, भांजा हर्ष मेहता एवं छोटी बहन साक्षी व भाई यश कटारिया आदि को साधुवाद देकर मुमुक्षु के संयम पथ पर जाने के संकल्प की खूब अनुमोदना की। नवकार महामंत्र की सामूहिक स्तुति के साथ मुमुक्षु बहुमान समारोह प्रारंभ हुआ। समिति के संयोजक प्रकाशचंद्र नांदेचा, कनकमल बोथरा, शांतिलाल मूणत, निर्मल गोखरू, बाबूलाल धम्माणी, प्रकाशचंद्र सिंघवी, अभयकुमार बोथरा आदि ने सर्वप्रथम मुमुक्षु को कुमकुम तिलक लगाया। पश्चात माला, शाल, गुड़ मोदक व चांदी का सिक्का भेंटकर मुमुक्षु सलोनी का बहुमान किया। बहुमान के ऐसे विरले क्षण के दौरान पारणा समिति के सदस्य अभिभूत हो गए एवं संघ के गौरव को और उत्तरोत्तर बढ़ाने की मंगल कामना की। वहीं मुमुक्षु के परिवारजन का भी बहुमान किया गया।
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