रवीन्द्र व्यास
मकर संक्रांति का पर्व अलग अलग राज्यों और देश में अलग अलग नाम से मनाया जाता है | जीवन में ऊर्जा और उत्साह का संचार करने वाला यह पर्व बुंदेलखंड में बुड़की के नाम से भी जाना जाता है | जहां इस पर्व को लेकर धार्मिक,प्राकृतिक और वैज्ञानिक कारण हैं वहीँ बुंदेलखंड में इससे जुड़े कुछ यादगार तथ्य भी हैं | जिनमे रहस्य है रोमांस है और देश पर बलिदान देने वालों की याद में मेला लगाने की परम्परा भी है | वैसे भी सनातन धर्म से जुड़े व्रत और त्यौहार का सिर्फ धार्मिक महत्व भर नहीं है इनका विज्ञान से भी गहरा नाता जुड़ा है , बात सिर्फ समझने की है |
मकर संक्रान्ति
मकर संक्रांति दुनिया की एक बेमिशाल खगोलीय घटना क्रम का पर्व है | इसी दिन सूर्य देव राशि परिवर्तन कर मकर राशि में प्रवेश करते हैं | खगोल शास्त्र के अनुसार जब भी कोई गृह किसी राशि अथवा नक्षत्र में प्रवेश करता है, तो इसे संक्रांति कहते हैं | पृथ्वी की गति के कारण इस दिन सूर्य देव दक्षिणायन से उत्तरायण हो जाते हैं | सूर्य देव उदित तो पूर्व दिशा से ही होते हैं किंतु 6 माह वे दक्षिण भाग से और 6 माह उत्तर भाग से उदित होते हैं | , इस महत्वपूर्ण खगोलीय घटना , सौर्य मंडल और अंतरिक्ष के इन गूढ़ रहस्यों को सदियों पहले सनातन धर्म के ऋषि मुनियों ने जान और समझ लिया था | यही कारण है कि पंचांग और वैदिक कैलेंडर को आज भी दुनिया का सबसे सटीक कैलेंडर माना जाता है |
धार्मिक महत्त्व
सूर्य देव के दक्षिणायन को देवताओं की रात ,और उत्तरायण को देवताओ का दिन भी कहा जाता हैं। वैदिक काल से ही उत्तरायण को देवयान कहा गया हैं। यही कारण है कि हिन्दू धर्म में अधिकाँश शुभ कार्य मकर संक्रांति के बाद किये जाते हैं।
भगवान् श्री कृष्ण ने गीता ज्ञान में अर्जुन से कहा था कि जब सूर्यदेव उत्तरायण होते हैं और पृथ्वी प्रकाशमय रहती हैं , ऐसे शुभ काल में यदि कोई शरीर का त्याग करता है तो उसे जन्म-मरण से मुक्ति मिलती हैं |
लोक मान्यता है कि उत्तरायण में जिसकी मृत्यु होती हैं उसे मोक्ष प्राप्त हो जाता हैं। द्वापर युग में भीष्म पितामह जिन्हे इक्षा मृत्यु का वरदान अपनी ही माँ गंगा से मिला था , उनकी मृत्यु को ही ले लीजिये | महाभारत युद्ध में जब वे अर्जुन के वाणो से घायल हो गए और वाणों की शैय्या पर वे लेटे थे , असहनीय पीड़ा सहते हुए भी उन्होंने अपनी मृत्यु का समय उत्तरायण को चुना था | मकर संक्रांति के दिन ही उन्होंने अपनी देह का त्याग कर मोक्ष को प्राप्त किया था |
इसी शुभ काल में माँ गंगा भी इस लोक धरा पार आई थी | कहा जाता है कि मकर संक्रांति के दिन माँ गंगा ब्रह्म लोक से पृथ्वी लोक में भागीरथ महराज के पीछे-पीछे कपिल ऋषि के आश्रम से होते हुए सागर में जा मिली थी।. भगीरथ के पूर्वज महाराज सगर के पुत्रों को मुक्ति प्रदान हुआ था. इसीलिए इस दिन बंगाल के गंगासागर में कपिल मुनि के आश्रम पर एक विशाल मेला लगता है.
सनातन मान्यता है कि मकर संक्रांति के दिन भगवान सूर्य अपने पुत्र शनि से मिलने स्वयं उनके घर जाते हैं.| शनि देव मकर राशि के स्वामी हैं, उनके घर में सूर्य के प्रवेश मात्र से शनि का प्रभाव क्षीण हो जाता है.| माना जाता है कि सूर्य के प्रकाश के सामने कोई नकारात्मकता समाप्त हो जाती है.| इसी कारण मकर संक्रांति पर सूर्य की साधना करने से शनि दोष भी दूर हो जाते हैं.|
बुंदेलखंड में मकर संक्रांति
बुंदेलखंड में मकर संक्रांति का पर्व अलग उत्साह और श्राद्ध से मनाया जाता है | माघ माह की शुरुआत और सूर्य उपासना का यह पर्व मौसमी परिवर्तन के साथ सामाजिक और धार्मिक परिवर्तन का भी माना जाता है | इस दिन जलाशयों पर लोग स्नान करने जाते हैं | शरीर पर पीसी हुई तिल का लेप लगाकर स्नान करते हैं | जलाशयों में डुबकी लगाने के कारण इसे बुड़की भी कहा जाता है | स्नान के बाद सूर्य देव को जल अर्पित किया जाता है | इस दिन हर घर में खिउँकद्दी और तिल , लाइ ,राजगीर के लाड्डू बनते हैं | बाजार में शक्कर के घडिया घुल्ला बनते हैं | वहीँ मिटटी के घोड़े बाजार में बिकने आते हैं जिन्हे लोग खरीद कर घर लाते हैं |
बलिदान :बुंदेलखंड में मकर संक्रांति पर जगह जगह मेले लगते हैं ,| इन्ही मेलों में एक मेला छतरपुर जिले के सिंहपुर में भी लगता है | 14 जनवरी 1931 को मकर संक्रांति के दिन यहाँ मेला के साथ स्वतंत्रता सेनानियों का भी जमावड़ा हुआ था | अंग्रेज हुकूमत के विरुद्ध उर्मिल नदी पर स्थित चरणपादुका पर उनकी बैठक चल रही थी | इसकी खबर पाकर अंग्रेजो के कर्नल फिशर ने चारों और से घेराबंदी कर गोलियां चलवाई | जिसमे यहाँ अनेकों सेनानी वीरगति को प्राप्त हुए \ इसे बुंदेलखंड का जलियांवाला बाग़ काण्ड कहा जाता है |
रोमांस :बाँदा (उत्तर प्रदेश) जिले में केन नदी के मध्य स्थित भूरागढ़ दुर्ग में मकर संक्रांति के दिन लगता है आशिकों का मेला | यहाँ के नट महाबली के मंदिर में मकर संक्रांति के दिन हजारों की संख्या में जोड़े पहुँचते हैं और पूजन करते हैं | लोक मान्यता है कि यहाँ विवाहित जोड़े अच्छे जीवन की और प्रेमी प्रेमिका अपने मनपसंद जीवन साथी की मन्नत मांगने पर मन्नत पूर्ण होती है |
स्थानीय लोगों की मान्यता है कि लगभग 6 शताब्दी यहाँ मकर संक्रांति के दिन ही प्रेमी और प्रेमिका की मौत हुई थी | इसके पीछे बताया जाता है कि भूरागढ़ दुर्ग में नोने अर्जुन सिंह किलेदार थे | किले में ही छतरपुर जिले के सरबई का एक नट जाति का 21 वर्षीय युवक बीरन नट नौकरी करता था | किलेदार की बेटी और बीरन नट से प्यार हो गया | किलेदार की बेटी ने अपने पिता से नट से विवाह की जिद की थी | नोने अर्जुन सिंह ने बेटी के सामने शर्त रखी कि अगर बीरन बांबेश्वर पर्वत से किले तक सूत पर चढ़कर नदी पार कर ले और किले तक आ जाए तो उसकी शादी राजकुमारी से कर दी जाएगी.| बीरन ने इस शर्त को मानते हुए मकर संक्रांति के दिन कच्चे धागे की रस्सी पर से नदी पार कर किले तक पहुँचने लगा | अर्जुन ने जब यह देखा तो उसने दुर्ग की दीवार पर से रस्सी काट दी | बीरन की निचे चट्टान पर गिरने से मौत हो गई , अर्जुन की बेटी ने जब यह देखा तो वह भी दुर्ग से उसी चट्टान पर कूद गई ,उसकी भी मौत हो गई | बाद में दोनों की वहीँ समाधि बना दी गई कुछ वर्षों बाद यह ंत महाबली का मंदिर बन गया |
तंत्र मन्त्र : बुंदेलखंड के पन्ना जिले में एक ऐतिहासिक नगर है अजयगढ़ यहाँ के अजय पार की पहाड़ी पर स्थित किले पर मकर संक्रांति के दिन एक मेला लगता है | यहाँ के प्रसिद्ध तांत्रिक अजयपाल की इस दिन पूजा होती है | सिर्फ मकर संक्रांति के दिन ही अजयपाल बब्बा का मंदिर खुलता है और उनकी पूजा होती है | लोक मान्यता है कि इस दिन उनके दर्श से जीवन में किसी तरह की बाधा नहीं रहती | और यहाँ के छोटे से पत्थर को ले जाकर अगर गौशाला में रख दिया जाए तो पशुओं को किसी तरह की बीमारी नहीं होती है |
दरअसल तांत्रिक अजयपाल बब्बा की यह मूर्ति लगभग 45 साल पहले चोरी हो गई थी | बाद में इसके चोरो को दिल्ली से पकड़ा गया | मामला पन्ना न्यायालय पहुंचा था , जहां से इसे पुरातत्व संग्राहलय रीवा के सुपुर्द किया गया था | हर साल मकर संक्रांति पर मूर्ति को दो दिन के लिए अजयगढ़ लाइ जाती है | वैसे भी अजयगढ़ का यह स्थान अनेको रहस्यों से भरा हुआ है |
अलग अलग नाम
मकर संक्रांति का यह पर्व सिर्फ हिन्दुस्थान में ही नहीं कई अन्य देशो में भी मनाया जाता है | इसके नाम भी अलग अलग हैं दक्षिण भारत में पोंगल , उत्तर भारत में लोहड़ी तो खिचड़ी या माघी उतरायण मध्य भारत और पश्चिम भारत में इसे संक्रांति के नाम से तो पंजाब के क्षेत्रो में लोहड़ी के नाम से जाना जाता हैं । बांग्लादेश में पौष संक्रान्ति ,नेपाल में माघे संक्रान्ति या ‘माघी संक्रान्ति‘ ,,थाईलैण्ड में सोंगकरन ,म्यांमार में थिंयान,,कम्बोडिया में मोहा संगक्रान और श्री लंका में पोंगल, उझवर तिरुनल के नाम से जाना जाता है |