महावीर अग्रवाल
मन्दसौर १३ सितम्बर ;अभी तक; बुराई अशुभ की ओर प्रवृत्ति और शुभ से निवृत्ति की मनोदशा है, आदमी का मन मंदिर भी बन सकता है तो शैतान का शैरगाह भी। अगर वह अच्छाईयांे का आवास है तो समझिइये मंदिर है और बुराईयों का कूड़ा दान है तो शैतान का घर! बुराई क्या है-जो बात या व्यवहार किसी को अच्छा न लगे, जिसका उद्देश्य दूसरों का अहित करना हो जो वातावरण, समय और परिस्थिति के अनुकूल न हो ऐसी चर्चा, चर्या और चरित्र बुराई के अन्तर्गत आते हैं, न बुरा सोचें, न बुरा बोलें, न बुरा करें, बुरे का परिणाम सदैव बुरा ही आता है। बुराई करके कोई व्यक्ति भलाई चाहे तो उसकी यह चाह एक जन्म तो क्या सौ जन्म में भी पूरी नहीं हो सकती। यह याद रहना चाहिए-एक बुराई दुसरी बुराई को जन्म देती है, बुराई पतन, पीड़ा, पश्चाताप और पाप के सारे द्वार खोल देती है। बुराई कल भी बुरी थी, आज भी बुरी है और कल भी बुरी ही रहेगी। अच्छे लोग ओर किसी का त्याग करें या न करें। मगर बुराई का त्याग अवश्य करते है। बुराई का त्याग ही अच्छे लोगों की पहचान होती है।
ये विचार शास्त्री काॅलोनी स्थित नवकार भवन से प्रसारित अपने मंगल सम्बोधन में जैनाचार्य श्री विजयराजजी म.सा. ने रविवार को कहे। आपने कहा-मन, वचन, कर्म से अशुभ वृत्तियों के बहिष्कार और शुभ वृत्तियों के स्वीकार से सभी बुराईयों से बचा जा सकता है, बुरी बातों की स्मृति भी बुरी है, उसे भूल जाना चाहिए, बुरी बातों को दोहराते रहेंगे तो हम कभी अच्छा बन ही नहीं सकेंगे। यह सच्चाई है कि बुराई प्रवृत्ति में आने से पहले वृत्ति में आती है, वृत्ति में घटित बुराई प्रवृत्ति में और प्रवृत्तियों की पुनरावृत्ति बनती जाती है इससे बुराई की चेन टूटती ही नहीं, धीरे-धीरे बुराई का सम्पर्क हमारी अच्छी आदतों को भी प्रदूषित कर देता है। सम्पर्क से संस्कार बनते है, संस्कार से विचार और फिर तद्नुसार आचार-व्यवहार होते है, उन्हीं से फिर संस्कारों का निर्माण होता है। यह चैनल चलती रहती है। बुरे व्यक्तियों का सम्पर्क बुराई की ओर तो धकेलता ही है, और अच्छाईयों को भी बुराई में तब्दील कर देता है। सम्पर्क में सावधान रहने वाला ही अपने व अपने बालकों को बुराई से बचा सकता है।
आचार्य श्री ने कहा- बुराई का प्रारंभ मन से होता है, जरूरत इस बात की है-हम मन के तल पर पवित्र रहे। वाणी जीवन व्यवहार की नियंता शक्ति है। इसलिये वाणी पर नियंत्रण भी जरूरी है। आपके वचन व्यवहार की मधुरता, सच्चाई और अच्छाई का संगम हो। बुरे विचारों से ही बुरी बोलचाल का जन्म होता है। वाणी से जीवन के आचरण परिभाषित व प्रभावित होते है। एक छोटी सी बुराई व्यक्ति के जीवन को तबाह कर देती है, यह भी अनुभूत है। बुरा व्यक्ति कभी अकेले बुरा काम नहीं करता वह अपने संगी-साथी तैयार करता है। वह परिवार और समाज के छोटे-बड़े चरित्र को विकृत करता है। एक बुरा व्यक्ति अपने आगोश में अनेक व्यक्तियों को ले बैठता है। फलतः परिवार और समाज-संस्था विकृत हुए बिना नहीं रहती। दुर्जनों का परिवेश हमारे व्यक्तित्व पर नकारात्मक प्रभाव छोड़ जाता है, इनसे बचे बिना हम बुराई से अपना दामन नहीं छुड़ा सकते। कोविड महामारी के चलते हर मानव को अपने में शुभ संकल्पों का दीप चलाना चाहिए तथा अपने जीवन केा अच्छाई के मार्ग पर समर्पित करना चाहिए।
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