अरुण त्रिपाठी
रतलाम,06 जून ६ ;अभी तक; | मन जैसा कुछ होता ही नहीं है। मन मात्र विचारों का गठबंधन है। विचार बिना, मन का कोई अस्तित्व ही नहीं है। इसलिए विचार बंद होते है ,तो मन का अंत हो जाता है। मन को समझने का एक मात्र जरिया होता है ध्यान।ध्यान भी कुछ देर करना नहीं है, अपितु हर क्षण ध्यानमय होना है।

