( महावीर अग्रवाल )
मंदसौर १० मार्च ;अभी तक; रूस यूक्रेन युद्ध को एक वर्ष से अधिक हो गया है लेकिन इसके रुकने के अभी तक लक्षण नहीं दिख रहे हैं। विश्व जन समुदाय चिंतित है और इसके दुष्परिणामों से परेशान है। इतने लंबे समय से चल रहे युद्ध को शांति का मार्ग भी इसलिए अंगारों में भटक रहा है क्योंकि विश्व की दो माह शक्तियों के बीच आज टकराव जो हो रहा है तो फिर शांति कहां से आएगी।वो विश्राम भी कैसे ले सकती है । एक टीवी रिपोर्ट के अनुसार इस युद्ध के कारण विश्व को 232 लाख करोड रुपए से अधिक का आर्थिक नुकसान हो चुका है। 20 करोड़ से अधिक लोग भुखमरी के कगार पर पहुंच गए हैं । इस युद्ध में करीब 200000 लाख सैनिक मारे गए जो औसत उम्र 30 वर्ष के रहे हैं । अमेरिका की वह शांति के प्रतीक चौधराहट कहां गई। युद्ध जब से शुरू हुआ है, उसके बाद से अमेरिका द्वारा रूस पर अनेक प्रकार के प्रतिबंधों की घोषणा की चुकी है लेकिन इनका युद्ध पर तनिक भी असर नहीं पड़ा। लेकिन अमेरिका का यह दिखवा भी गीदड़ भभकी ही अभी तक साबित हुआ है।
अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन 20 फरवरी 2023 को अचानक ट्रेन से युद्ध क्षेत्र में पहुंच गए। जिसके लिए जानकारों का यहां तक कहना है कि यह अमेरिका के राष्ट्रपति का पुराना शोक है। इसके पूर्व ईरान , अफगानिस्तान में भी अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा ,जॉर्ज बुश, बिल क्लिंटन भी जा चुके हैं जो बाइडेन यूक्रेन पहुंचे तो शांति दूत बनकर नही बल्कि क्या हथियारों के सौदागर के रूप में । वहां पहुंचने के बाद उनका पूरा भाषण ही बस यह रहा की युद्ध के बावजूद यूक्रेन में लोकतंत्र जिंदा है। क्या अपनी चौधराहट का दम भरने वाले अमेरिका के लिए यह शांति की दिशा में यह एक कदम कहा जा सकता है। ट्रेन से बाइडेन यूक्रेन पहुंचे ,क्या यह वे अपनी रफ , टफ इमेज दुनियाभर के सामने लाना चाहते थे लेकिन हुआ क्या।
जानकार कहते हैं कि अमेरिका के कोई 225 लाख करोड़ के हत्यारों का इस युद्ध में नुकसान हो चुका है। 25लाख करोड़ के हत्यारों के उद्योग वाले अमेरिका को युद्ध का चौधराहट के लिए शोभायमान है? दोनों देशों के लाखों सैनिक मारे जा चुके हैं । वहां लाखों घायल है और हजारों नागरिक मारे जा चुके हैं , फिर भी मानवाधिकार का उसका प्रेम जागृत नहीं हुआ है। इस युद्ध के लिए क्या यह कहा जाए कि अमेरिका की हथियार बनाने वाली कंपनियों की चांदी ही चांदी हो रही है। अमेरिका अपने लोगों की मदद करने की बजाय युद्ध में पैसा पानी की तरह बहा रहा है। अमेरिका, रूस पर प्रतिबंधों का ऐलान पर ऐलान कर चुका है लेकिन यह सब नाकाफी साबित हुए जिसकी समीक्षा तो अमेरिका को ही करना चाहिए।
रूस का कभी अपना अंग रहा यूक्रेन अपने ही महाशक्ति माने जाने वाले देश रूस से टकरा रहा है जो इस दुनिया में आश्चर्य की बात है । अमेरिका के पास उसकी अपनी पूरी यूरोपीय टीम के देश आए दिन यूक्रेन को हथियारों की आपूर्ति की घोषणा करते रहते हैं लेकिन उधर रूस स्वयं उन सारे आधुनिक हथियारों से निपट रहा है तो क्या नाटो के लिए यह अच्छी बात है। यूरोपीय टीम क्या हार रही है । तो क्या दुनिया के लोग हार रहे हैं, यह समझा जाए ।अमेरिका और उसके सहयोगी देशों के द्वारा हथियारों की आपूर्ति की घोषणा तो की जा रही है लेकिन रूस- यूक्रेन दोनों देशों के सैनिक और नागरिक हता हट ही रहे हैं तो उनके लिए अंतरराष्ट्रीय रेडक्रॉस से कौन सी चिकित्सा सुविधा मुहैया कराई जा रही है । क्या यह मानवाता के प्रति निष्ठुरता नही है । अमेरिका के जैसे ही कभी रशिया भी हथियारो का सौदागर था लेकिन वह खुद आज युद्ध मे कूदा हुआ है ।
रूस का युद्ध के प्रारंभिक दौर में संदेश यह था कि यूक्रेन नाटो का सदस्य नहीं बने । उस समय यूरेनियम के भंडार वाली बात जो अमेरिका की चाल में बाद में हो सकती है लेकिन उस समय यूक्रेन भी जिद पर अड़ा रहा कि वह नाटो का सदस्य बनेगा। इस जिद का अमेरिका के हथियारों ने लाभ उठाया जो अब तक बना हुआ है।
रूस को शांति का मार्ग दिखाने के लिए विश्व के एकमात्र प्रमुख देश भारत ने पहल भी की और आज भी भारत विश्व का ऐसा देश है जिसके पास हमेशा शांति का मार्ग बना रहता है । अमेरिका -ब्रिटेन खासकर अमेरिका तो वह देश है जिसका चेहरा भारत-पाक युद्ध के समय भी सामने आया था तब उसने पाक को पैटन टैंक व सेबर जेट जैसे आधुनिक विमान दिए जिनको भारत के वीर सैनिकों ने धूल चटा दी थी। जिससे अमेरिका का चेहरा विश्व में पीला पड़ गया था। यही नहीं अमेरिका के राष्ट्रपति जब जब भी भारत आए तब तब वह पाकिस्तान भी गए ।पाक को खूब आर्थिक और हथियारों की मदद भी दी लेकिन पाकिस्तान की आतंकवादी घटनाओं का भारत ने विरोध किया तो उसे अब अमेरिका को भी मानना पड़ रहा है और वह भी भुक्तभोगी हो गया है लेकिन रूस यूक्रेन जंग को लेकर वह क्यों अपनी चौधराहट पर बट्टा लगा रहा है।
रूस यूक्रेन जंग को लेकर विश्व के अनेक देश और उनके नागरिक इसलिए परेशान हैं क्योंकि उन्हें भारी महंगाई और अपने देश में अनेक परेशानियों से उन्हें जूझना पड़ रहा है। कई देश इस परेशानियों को भुगत रहे हैं। भारत भी इससे अछूता नहीं है। युद्ध के कारण उस क्षेत्र के करोड़ों लोग यदि जिंदा रहने के लिए संघर्ष कर रहे हैं या लाखों लोग पलायन के लिए मजबूर है तो इसके लिए कौन दोषी है। दोनों देशों के जो सैनिक युद्ध में मारे गए इसके लिए अमेरिका को चाहिए कि वह अपना स्पष्ट संदेश दे कि आखिर वह क्या कहना चाहता है। मानवता के इस करुण दृश्य को देखकर उन सैनिकों के परिवारों के क हाल क्या होंगे जो बे समय बेमौत युद्ध में मारे गए। जो युद्ध नहीं होता तो आज उनके और उनके परिवारों के भी चेहरे खिल रहे होते।
विश्व मैं कोई सा भी युद्ध मानवता के न हित में है और नहीं कभी होना चाहिए। युद्ध ग्रस्त दोनों देशों के नागरिकों की जीवन प्रत्याशा के आधार पर अर्थव्यवस्था में उनके योगदान का आकलन किया जाए तो जानकारों के अनुसार दोनों देशों के सकल राष्ट्रीय आय को प्रति व्यक्ति आय के लिहाज से देखें तो प्रत्येक रूसी 26लाख व यूक्रेनी 11लाख रुपए सालाना की औसत योगदान अपने देशों की अर्थव्यवस्था में देते लेकिन यह नहीं हो पा रहा है। दुनिया की निगाहें दोनों देशों के बेवजह हो रहे युद्ध की ओर लगी है कि कब यह युद्ध समाप्त होगा और कब पुनः अच्छी अर्थव्यवस्था का अमन-चैन लौटेगा । शांति वापस लौटेगी अमेरिका व उसके सहयोगी नाटो देश कब शांति का मार्ग अपनाकर युद्ध को हमेशा के लिए बाय-बाय कहेंगे। इस पूरे विश्व के नागरिकों की निगाहें लगी है बस शान्ति और शान्ति की और जिसका पक्षधर है और रहेगा भारत।