प्रेम वर्मा
राजगढ़ 31 अक्टूबर :अभी तक: राजगढ़ की द्वितीय व्यवहार न्यायाधीश कीर्ति ऊइके द्वारा शासकीय भूमि पर अवैध रूप से कब्जा कर मालिकाना हक करने का दावा निरस्त किया गया है।
शासकीय अधिवक्ता जे.पी.शर्मा नें बताया कि ग्राम करेड़ी ( राजगढ़) स्थित शासकीय भूमि सर्वे क्रमांक 218 रकबा 0.240 है. जो कि राजस्व अभिलेख में शासकीय भूमि के रूप में दर्ज है पर रफीक खां निवासी करेड़ी द्वारा अवैध रूप से कब्जा कर वादग्रस्त भूमि के कुछ भाग पर मकान निर्माण का कार्य किया जा रहा था तथा शेष भूमि कृषि कार्य हेतु उपयोग में लायी जा रही थी जिसे ग्रामीणों द्वारा शिकायत करने पर तत्कालीन तहसीलदार एवं हल्का पटवारी द्वारा मौके पर जाकर रफीक खां द्वारा किये जा रहे अवैध निर्माण कार्य को रोक दिया गया और उसके विरुद्ध अतिक्रमण हटाने के साथ ही मध्यप्रदेश भू-राजस्व संहिता की धारा 248(1) के तहत दस हजार रु. का अर्थदण्ड भी अधिरोपित किया गया किन्तु रफीक खां के द्वारा बार-बार वादग्रस्त भूमि पर पुनः अतिक्रमण किया गया। रफीक खां असत्य रूप से वादग्रस्त भूमि पर लगभग 60 वर्षों से अपने पूर्वजों के समय से कब्जा होना बता रहा था। रफीक द्वारा लम्बे समय के अवैध अतिक्रमण को आधार बताकर न्यायालय में स्वत्व घोषणा का दावा प्रस्तुत किया।
मामले में प्रतिवादीगण शासन की ओर से शासकीय अधिवक्ता जे.पी.शर्मा नें शासन की और से पक्ष दृढ़ता के साथ रखा और वादग्रस्त भूमि के संबंध में समस्त दस्तावेज और शासन द्वारा समय समय पर वादी के विरुद्ध अतिक्रमण हटाने संबंधित कार्यवाही से संबंधित दस्तावेज प्रस्तुत किये जाकर शासन के पक्ष में साक्षी के रूप में स्वयं तत्कालीन तहसीलदार राजगढ़ (संजय चौरसिया) के कथन करवाये गए। न्यायालय द्वारा प्रकरण में शासन की ओर से प्रस्तुत दस्तावेजी साक्ष्य ओर शासकीय अधिवक्ता के तर्कों का गंभीरता पूर्वक परिशीलन और विचार किया जाकर वादी द्वारा प्रस्तुत दावा निरस्त किया गया है।
शहरीय तथा ग्रामीण क्षेत्र के लोगों द्वारा शासकीय भूमि पर अवैध रूप से कब्जा कर उस पर मालिकाना हक जताने के मामले लगातार सामने आ रहे है जिसके कारण शासकीय भूमि का रकबा निरंतर कम होता जा रहा है। न्यायालय का निर्णय अवैध अतिक्रमण कारियों के विरुद्ध एक सबक होगा।
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