महावीर अग्रवाल
मन्दसौर १७ नवंबर ;अभी तक; सांवलिया गौशाला कूंचड़ौद में गौवर्धन पूजा पर्व पर गौमाता का पूजन कर ग्रामवासियों द्वारा अपने-अपने घरों से नैवेद्य बनाकर गौमाता को भोग लगाया। गौ माता को भोजन कराने के पश्चात् गौशाला में सेवारत कर्मचारी राधाकिशन, परमानन्द, बालाराम, गंगाबाई, लक्ष्मीबाई, तुलसीबाई, हेमाबाई को वस्त्रादि भेंटकर सम्मानित किया गया।
उल्लेखनीय है कि 5000 से अधिक वर्ष पूर्व भगवान श्री कृष्ण ने गोकुल में अवतार लेकर गौवंश के संरक्षण-सम्मान तथा पर्यावरण को बचाने के लिये स्वर्ग में विराजित अदृश्य देवता इन्द्र की पूजा छुड़वा कर प्रत्यक्ष गौमाता और गिरीराज गोवर्धन पर्वत की पूजा करवाई थी और वही परम्परा जब से लेकर वर्तमान में अब तक चली आ रही है।
उक्त जानकारी देते हुए समाजसेवी बंशीलाल टांक ने बताया कि असुरों का संहार करने के साथ ही विशेष रूप से भारतीय संस्कृति और स्वास्थ्य रक्षा का मुख्य आधार स्तंभ जिसके लिये सर्वशक्तिमान निराकार ब्रह्म साकार रूप में संसार में अन्यत्र कही अवतार नहीं लेकर पवित्र भारत भूमि में अवतरित होकर गौमाता की रक्षा सुरक्षा ही नहीं स्वयं ग्वाला बनकर जंगल में गाये चराकर गोपालकृष्ण कहलाया उसी गोपाल की गायों को आजादी के 73 वर्ष बाद भी प्रतिदिन 100-200 नहीं हजार की संख्या में आधुनिक मशीनों द्वारा कत्लखानों में गाजर मूली की तरह काटी जाकर उनका पास जहाजों में भरकर टनों से विदेशियों की थाली में परोसा जा रहा है और पवित्र धरती मॉ की गोदी को गौमाता के खून से अपवित्र किया जा रहा है। जैसा कि ‘‘गावो विश्वस्य मातरः’’ केवल भारत में ही नहीं सम्पूर्ण विश्व की माता कहा गया है इसलिये आगामी सत्र में सर्वप्रथम गाय को राष्ट्रीय गौमाता घोषित करवाकर भारत सरकार को भारत माता के माथे से गौ हत्या के घोर कलंक को मिठाया जाना चाहिए तभी गाय-गोवर्धन पूजा सार्थक होगी।
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