संत रविदास जयंती पर विशेष – चारों वर्णों के प्रतिनिधि एवं हिंदुत्व के वकील थे संत रविदास

6:24 pm or February 4, 2023

– (रमेशचन्द्र चन्द्रे)

मन्दसौर ४ फरवरी ;अभी तक;  संत रविदास ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य तथा शुद्ध चारों वर्णों का समुच्चय थे क्योंकि जाति विशेष शूद्र होने के बाद भी वे ब्रह्म कर्म (ब्राह्मण) से जुड़े रहे तथा अपने कर्म के मामले में वे एक ईमानदार व्यवसाई (वैश्य) रहे इसके साथ ही अपने हिंदू धर्म की रक्षा के लिए वे विधर्मीयों के साथ हमेशा क्षत्रियों की तरह संघर्ष करते रहे।

संत रविदास का अत्यधिक गरीब परिवार में जन्म हुआ वह भी उस काल में जब दिल्ली में सिकंदर लोदी का शासन था और तलवार के बल पर इस्लाम धर्म में लोगों को परिवर्तित करने की होड़ लगी हुई थी। सिकंदर लोदी के काल में शादी, ब्याह, पूजा-पाठ, तीर्थ स्थान इत्यादि पर तो जजिया कर लगाया लगा ही था किंतु शवों के दाह संस्कार पर भी जजिया कर वसूल किया जाता था उस दौर में हिंदू समाज इस्लाम के अत्याचार और अनाचार का शिकार हो रहा था किंतु उस समय भी ऐसे संत थे जो खुलेआम इस्लाम के विरुद्ध खड़े थे और अनेकों ने संघर्ष करते-करते अपने प्राण भी गंवा दिए। इसी आंदोलन के एक हीरो थे जिनका नाम था संत रविदास।

एक समय था कि सिकंदर लोदी ने पूरी योजना के तहत हिंदू साधु-संतों को इस्लाम अपनाने के लिए बाध्य किया। उनका सोचना था यदि हिंदू धर्म के साधु-संत इस्लाम धर्म को स्वीकार कर लेंगे तो बड़ी संख्या में हिंदू उनके पीछे इस्लाम धर्म भी स्वीकार कर लेंगे किंतु उसकी यह धारणा गलत साबित हुई। ऐसे ही एक प्रयास में उसने सदन नामक कसाई को संत रविदास को मुसलमान बनाने के लिए भेजा किंतु संत रविदास ने उस समय सिकंदर लोदी को निम्न पंक्तियां लिख कर भेज दी-
वेद कर्म सबसे बड़ा अनुपम सच्चा ज्ञान
फिर मैं क्यों छोड़ूँ इसे
निशदिन करूं प्यार
वेद धर्म छोड़ो नहीं कोशिश करो हजार
तिल तिल काटो चाहि गोदो अंग कटार

उनका यह संदेश पढ़कर एवं संत रविदास का निर्मल चरित्र, मीठी वाणी तथा ज्ञान से प्रभावित होकर वह सदन कसाई स्वयं हिंदू बन गया तथा बाद में उसका नाम रामदास रखा गया संत रविदास और संत रामदास दोनों ने मिलकर उस जमाने की पिछड़ी और अछूत कहीं जाने वाली जातियों के बीच में जन जागरण अभियान चलाया तथा ताकि वे मुगल अत्याचारों के सामने झुके नहीं और अपने हिंदू धर्म पर कायम रह सके तथा यही परंपरा आज तक कायम है क्योंकि अनुसूचित जाति एवं जनजाति तथा पिछड़े वर्ग के लोग इस्लाम धर्म ग्रहण नहीं करते हैं यह अलग विषय है कि ईसाई मिशनरियां लालच देकर कभी-कभी इनका धर्मांतरण कर लेती है किंतु उक्त जातियां कभी इस्लाम धर्म में परिवर्तित नहीं होती है यह जागरूकता संत रविदास की देन है।

संत रविदास आध्यात्मिक दृष्टि से इतने संपन्न एवं पहुंचे हुए संत थे कि वे कर्म को ही प्रधान मानते थे तथा व्यर्थ के आडंबर से दूर रहकर अपने चर्मकार के व्यवसाय को पूरी ईमानदारी से चलाते थे।

‘‘मन चंगा तो कठौती में गंगा’’ कहावत कैसे बनी-एक दिन संत रविदास अपनी झोपड़ी में बैठे प्रभु का स्मरण कर रहे थे। तभी एक राहगीर ब्राह्मण उनके पास अपना जूता ठीक कराने आया! रैदास ने पूछा कहां जा रहे हैं, ब्राह्मण बोला गंगा स्नान करने जा रहा हूं। जूता ठीक करने के बाद ब्राह्मण ने कहा कि तुम भी गंगा स्नान करके आओ किंतु रविदास ने यह कहा कि मेरी गंगा मेरा यह व्यवसाय है, मैं इसे ईमानदारी से करता हूं तो मैं गंगा नहाया बराबर ही हूं। जूता सुधारने बाद ब्राह्मण द्वारा रविदास को उसकी मजदूरी के रूप में एक मुद्रा दी किंतु रविदास ने ब्राह्मण से प्रार्थना की कि इस मुद्रा को आप मेरी तरफ से मां गंगा को चढ़ा देना। ब्राह्मण जब गंगा पहुंचा और गंगा स्नान के बाद जैसे ही ब्राह्मण ने कहा- हे गंगे रैदास की मुद्रा स्वीकार करो, तभी गंगा से एक हाथ आया और उस मुद्रा को लेकर बदले में ब्राह्मण को एक सोने का कंगन दे दिया। ब्राह्मण जब गंगा का दिया कंगन लेकर वापस लौट रहा था, तब उसके मन में विचार आया कि रविदास को कैसे पता चलेगा कि गंगा ने बदले में कंगन दिया है, मैं इस कंगन को राजा को दे देता हूं, जिसके बदले मुझे उपहार मिलेंगे। उसने राजा को कंगन दिया, बदले में उपहार लेकर घर चला गया। जब राजा ने वो कंगन रानी को दिया तो रानी खुश हो गई और बोली मुझे ऐसा ही एक और कंगन दूसरे हाथ के लिए चाहिए। राजा ने राज्य के बड़े सुनार को बुलाया और कहा कि ऐसा कंगन बनाओ किंतु सुनार ने देख कर कहा कि महाराज यह कंगन अलौकिक है ऐसी एक भी धातु अथवा मोती हमारे यहां नहीं है कि ऐसा कंगन बनाया जा सके ।यह सुनकर राजा ने ब्राह्मण को बुलाकर कहा वैसा ही कंगन एक और चाहिए, यदि तुम दूसरा कंगन नहीं ला सके तो तुम्हें मृत्यु दंड का पात्र बनना पड़ेगा। ब्राह्मण परेशान हो गया कि दूसरा कंगन कहां से लाऊं? डरा हुआ ब्राह्मण संत रविदास के पास पहुंचा और सारी बात बताई। रविदास बोले कि तुमने मुझे बिना बताए राजा को कंगन भेंट कर दिया, इससे परेशान न हो। तुम्हारे प्राण बचाने के लिए मैं गंगा से दूसरे कंगन के लिए प्रार्थना करता हूं। ऐसा कहते ही रविदास ने अपनी वह कठौती उठाई, जिसमें वो चमड़ा गलाते थे, उसमें पानी भरा था। रविदास जी ने मां गंगा का आह्वान कर अपनी कठौती से जल छिड़का, जल छिड़कते ही कठौती में एक वैसा ही कंगन प्रकट हो गया। रैदासजी ने वो कंगन ब्राह्मण को दे दिया। ब्राह्मण खुश होकर राजा को वह कंगन भेंट करने चला गया। तभी से यह कहावत प्रचलित हुई कि ‘मन चंगा, तो कठौती में गंगा’।

आज रविदास के विचार सच्चरित्र तथा स्वभाव हमें इस बात का संदेश देता है कि धर्मांतरण का हमें विरोध करना चाहिए तथा भारत को जाति निरपेक्ष बनाने का भी प्रयास करना चाहिए तथाकथित समाज के ठेकेदार अपनी जातियों के नेता बनकर हिंदू समाज को विखंडित करने का प्रयास कर रहे हैं  संत रविदास के जीवन से सीख लेना चाहिए।
जीवन मूल्यों की रक्षा करने वाले संत रविदास जी के चरणों में हम सादर नमन करते हैं।