सेबी से नाखुश होकर भी निवेशकों ने उसका कर क्या लिया, इसे क्या यह कहेंगे कि गरीबो की सारी उम्र भर की बचत चंद लोगों ने लूट ली?

6:01 pm or February 16, 2023
महावीर अग्रवाल
मन्दसौर  १६ फरवरी ;अभी तक;  हिंडन बर्ग की रिपोर्ट के बाद हर कोई चोंक गया। अडानी ग्रुप ने भी ताबड़तोड़ में निवेशकों के 20 हजार करोड़ रु वापस करने का निर्णय बताया। देश मे शेयरो को लेकर लाखों करोड़ रु का यह खेल हो कैसे रहा है। शेयर बाजार को लेकर एक मामला आया था हर्षद मेहता का और अब ऐसा लगता है मानो कुछ हुआ ही नही था। देश मे आखिर यह शेयर बाजार जो सेबी के नियंत्रण में चलता ,यह है क्या । लोग यह जानना चाहते है कि सेबी की मंजूरी और नियंत्रण के बाद देश मे कितने उद्योग बंद हो गए या डूब गए । कितने निवेशकों का कितना करोड़ रु डूब गया।सेबी ने आज तक यह नही बताया। क्या यह कहा जाए कि मध्यम और गरीब लोगों की सारी उम्र भर की बचत लूट ली।निवेशकों को आशा थी कि एक दिन उनको निवेश की राशि का लाभ मिलेगा जिससे उसके बच्चों का उज्वल भविष्य हो सकेगा या राशि वापस आ जाएगी लेकिन अभी तक तो अनेको उदाहरण होंगे जिन्हें निराशा ही होगी। अब देखो न भारत सरकार के होते हुए सेबी से नाखुश होकर भी किसी ने कर क्या लिया उसका। बीच मे एक दौर प्लांटेशन का था और सरकार देखती रह गईं और डूब गए निवेशकों के रु।
                             यह तो आश्चर्य ही नहीं घोर आश्चर्य की बात क्यों नहीं हो सकती है कि जब कोई भी कंपनी या उद्योग सारी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद सेबी की स्वीकृति से शेयर के द्वारा बाजार से यानी लोगों के निवेश से रुपया इकट्ठा कर अपना उद्योग या कंपनी शुरू करते हैं। शेयर बाजार से वे निवेशकों के द्वारा किए गए इन्वेस्ट से इतना रुपया इकट्ठा कर लेते हैं कि कुछ तो अधिक राशि निवेश में आ जाने पर निवेशकों को लंबे समय तक उपयोग में करने के बाद लौटाते हैं। जिसके ब्याज की बड़ी भारी राशि भी उस उद्योग या कंपनी को हो जाती होगी ही।
                         अब सरकार या आर्थिक विश्लेषक ही बताएं कि जब उद्योग या कंपनी को शेयर के द्वारा बड़ी भारी राशि उसे निवेशकों से मिल जाती है फिर बैंकों के द्वारा कैसे और क्यों उस कंपनी या उद्योग को फिर हजारों करोड़ रुपए का लोन वह क्यो दे देती है। आखिर यह कौन सा नियम है और जब वह कंपनी या उद्योग बैंकों से हजारों करोड़ रुपए का लोन लेता है तो फिर वह लोन का ब्याज देगा या निवेशकों को लाभांश देगा , यह कैसे संभव है निश्चित रूप से घोटाले की प्रथम सीढ़ी का खेल है यह या यह भी व्यापार का एक तरीका है। यह संसद की पटेल के कागज या आर्थिक जानकारी बता सकते हैं।
                         सबसे पहले तो देश की संसद या हिडन वर्ग जैसे देश के थिंक टैंक अनुसंधान कार्य और आर्थिक पत्रकारिता में योगदान दे रही पत्रकारिता को बताना चाहिए कि 12 अप्रैल 1988 मैं स्थापित हुआ सेबी भी जिसको 30 जनवरी 1992 को वैधानिक मान्यता मिलने के बाद देश में कितने ऐसे उद्योग या कंपनियां है जिन्हें सेबी से मंजूरी के बाद देश के निवेशकों से करोड़ों रुपए मिलने के कुछ वर्षों बाद अपना बोरिया बिस्तर बांध कर अब तक अंधेरे में गुम हो गए। यह इसलिए महत्वपूर्ण है कि देश के मध्यमवर्गीय और गरीब का रुपया जिन्होंने उन उद्योगों के शेयर में इसलिए अपनी मेहनत की कमाई इन्वेस्ट की ताकि मार्केट से उन्हें बेहतर रिटर्न मिलेगा तो उनके जीवन शैली के लिए बेहतर रहेगा लेकिन वह निवेशक शायद अब तक सरकार के निर्णय का इंतजार ही कर रहे होंगे।
                            सेबी यदि मजबूत संस्था है जिसके पास सरकार ने मजबूत नियम – कानून दिए हैं जिनसे कंपनियां और उद्योग डरते होंगे ऐसा तो आज तक एक भी उदाहरण नहीं है ।कई कंपनियों, उद्योगों ने अपने निवेशकों को लाभांश दिया नहीं उनका सेबी ने क्या बिगाड़ लिया। जरा यह तो देश की जनता को बताए ।नहीं तो सेबी भी यह आंकड़े तो जारी करें कि देश के कितने उद्योग व कंपनियां बंद हो गए हैं जो बाजार से करोड़ों अरबों रुपया शेयर के द्वारा निवेशकों से प्राप्त कर घोटाले के अंधेरे में खो गए। सभी जगह की स्थिति तो साफ करें या देश में निवेशकों से ऐसे ही छल कपट कर चंद उद्योगपतियों व कंपनियों को रातों-रात अरबपति खरबपति बनाता रहेगा।
                       उदाहरण तो मंदसौर जिले के दो उद्योगों और एक जिले की राजस्थान सीमा पर लगे उद्योग का ही देख लो जिन्होंने शेयर बाजार से करोड़ों रुपया इकट्ठा किए किंतु वह कहां है पता नहीं । बताते है कि दो बंद हो गए और एक की हालत निवेशक ही बता सकते हैं कि आखिर वह कहां है क्या सभी ने बंद हुए ऐसे उद्योगों से निवेशकों को पैसे वापस दिलवा दिए और नहीं तो नियम कानून कहां किस स्थिति में है। ऐसी स्थिति में जब ऐसे उद्योग निवेशकों को कोई लाभांश नहीं दे रहे हैं तो क्या सेबी ने उनके चेयरमैन ,  वाइस चेयरमैन आदि परिवारों के पदों पर बैठे लोगों के वेतन भत्तों पर रोक लगा दी थी क्या और यदि नहीं लगाई तो जनता की टेबल पर वस्तुस्थिति को रखना चाहिए। यह बात भी साफ है कि शेयर बाजार में रोजाना कंपनियों में लाखों लोग ट्रेडिंग करते हैं ।निवेशक अपना पैसा इसलिए इन्वेस्ट करते हैं कि क्योंकि मार्केट से उन्हें बेहतर रिटर्न मिल सकता है ।लेकिन यह जितना बेहतर उतना बड़ा रिस्क भी है अचानक किसी कंपनी में ट्रेडिंग बंद होने पर निवेशकों के पैसे का क्या होगा ऐसा आज तक सेबी के द्वारा ना स्पष्ट किया गया है और ना जो कंपनियां बंद हो गई है उनका पैसा निवेशकों को वापस दिलवाया गया है क्या यह माना जाए कि इन कंपनियों की गलती की सजा निवेशकों को उठाना पड सकती है और इसके लिए कौन से नियम कानून बनाए गए हैं जिससे निवेशक यह समझ सके कि उनका पैसा सुरक्षित है ।
                           संसद की पटल पर तो यह आंकड़े देश के नागरिकों के सम्मुख अपनी पारदर्शिता की कार्यशैली को स्पष्ट करने के लिए रखना चाहिए कि अब तक सेबी की स्वीकृति के बाद कितने उधोग या कम्पनियां बंद हो गए और इन उधोगो , कम्पनियों में देश के कितने निवेशकों ने कितने लाख करोड़ रु का निवेश किया था । निवेश की इस राशि का क्या हुआ। यह राशि किस स्थिति में है और बंद होने के पूर्व तक इन उधोगो और कम्पनियों के चेयरमैन , वाइस चेयरमैन , मेनेजिंग डायरेक्टर आदि के वेतन भत्ते क्या सेबी ने बंद कर दिये थे। देखो क्या स्थिति का नियम कानून है पैसा जनता जनार्दन का और उधोगपति , सेठ वह कहलाए और कल उधोग कम्पनी बंद हो जाए तो निवेशक का हाल तो सरकार बताए लेकिन उस कम्पनी ,उधोगपति के हालात खराब हो गए हो ऐसी भी कोई जानकारी हो तो वह भी जनता के सम्मुख रखी जाए।
                         इसके साथ ही अब देश की जनता यह उम्मीद नेताओ से उम्मीद,अपेक्षा रखती है कि वह सेबी नामकी संस्था को इतना मजबूत करे कि शेयर के द्वारा बाजार से निवेशकों के इन्वेस्ट से  पैसा इकट्ठा करने वाला कोई भी उधोग या कम्पनी अब निवेशकों का पैसा नही हड़प सके। जनता जागरूक हो गई है अब सरकार भी जाग जाए।