महावीर अग्रवाल
मन्दसौर,19 फरवरी ,अभीतक । आश्रम की कल्पना करते ही हमारे मन में यह विचार आता है कि वहां सुंदर बाग बगीचे होंगे, अच्छे लहराते हुए वृक्ष होंगे, साधु सन्यासियों के साफ-सुथरे कक्ष होंगे, तथा निरंतर कहीं न कहीं मंत्रों के उच्चारण अथवा महात्माओं की वाणी सुनाई देती होगी तथा मन मस्तिष्क एवं आंखों को एक अकल्पनीय आनंद की अनुभूति आश्रम की कल्पना मात्र से हो जाती है। किंतु दुर्भाग्य से मंदसौर का एक प्राचीन आश्रम जो शहर से केवल 4 किलोमीटर दूर मैनपुरिया गांव की एक पहाड़ी पर स्थापित है जहां पर भगवान पशुपतिनाथ मंदिर की स्थापना करने वाले ब्रह्मलीन संत स्वामी प्रत्यक्षानंद जी, ब्रह्मलीन स्वामी चैतन्य देव जी महाराज एवं ब्रह्मलीन स्वामी भगवतानंद जी महाराज की समाधि तथा शिव मंदिर स्थित है। यह स्थान लाखों रूपये खर्च करने के बाद भी उजड़ रहा है।
उक्त बात शिक्षाविद् व चिंतक रमेशचन्द्र चन्द्रे ने कहते हुए कहा कि उक्त स्थान को रमणीय स्थल बनाने तथा आश्रम का स्वरूप प्रदान करने के लिए महात्माओं के निवास हेतु कुछ कक्ष बनाए गए थे बाउंड्री वॉल तथा एक विशाल प्रवचन हाल भी बनाया गया एवं भोजनशाला के भवन का निर्माण भी हुआ। इस कार्य में स्थानीय स्तर पर लाखों रुपए इकट्ठे करके लगाए गए भक्तों के द्वारा भी समय-समय पर इस आश्रम के लिए दान दिया गया इसके साथ ही कुंभ के मेले के समय यात्री एवं संतों की सुविधा के लिए लाखों रुपए सरकार के द्वारा भी इस आश्रम पर खर्च किए गए यह आश्रम सभी की आस्था का प्रतीक है। इस आश्रम में भानपुरा पीठ के शंकराचार्य के स्वामी सत्यमित्रानंद जी, महामंडलेश्वर श्री अवधेशानंद जी एवं भानपुरा पीठ के शंकराचार्य स्वामी दिव्यानंदजी आकर निवास करते थे तथा ज्ञान की गंगा बहाते रहे।
श्री चन्द्रे ने कहा कि कुछ वर्षों तक मैनपुरिया का चैतन्य आश्रम सामाजिक चेतना का केंद्र बना तथा एक से अधिक संत वहां पर निवास करते रहे और प्रवचन की श्रृंखला लगभग वर्षभर समय-समय पर चलती रहती थी किंतु अब वहां सिर्फ एक संत श्री का निवास है और विगत कई दिनों से वहां पर सामाजिक और धार्मिक गतिविधियां जिस स्तर पर संचालित होना चाहिए उस स्तर पर संचालित नहीं हो रही है। जिससे लगता है कि जिस आश्रम में आश्रम की कल्पना साकार होती थी वह आज स्थानीय प्रबंधन के कारण या निष्क्रियता अथवा उदासीनता के कारण वीरान होता दिखाई दे रहा है। आश्रम के प्रवचन हॉल के समक्ष लकड़ियों के ढेर पड़े हैं, आसपास झाड़-झंकड से क्षेत्र अस्त-व्यस्त दिखाई दे रहा है, जहां स्थानीय लोगों ने अपने ट्रैक्टर-ट्राली और जेसीबी मशीन इत्यादी भी रखना शुरू कर दिया है। यद्यपि मंदिर और समाधिओं में पूजा-अर्चना नियमित होती है किंतु जो स्थान धार्मिक और सामाजिक चेतना का केंद्र बनना चाहिए वह स्थान उजाड़ तथा विरानी की ओर अग्रसर है। अनेक बार वहां पर वृक्षारोपण कराएं लेकिन समुचित देखभाल के अभाव में वे तो सूख ही गए किंतु अन्य स्थापित वृक्ष भी सूखने के कगार पर दिखाई दे रहे हैं।
मुख्य भवन जहां संत निवास करते हैं वहां भी दीवारें सीलन से भरी हुई है कहीं दीवार पर पोपडे निकल रहे हैं तथा सामने का मुख्य मैदान उबड़ खाबड़ हो रहा है जहां अनचाहा सामान इधर उधर बिखरा पड़ा हुआ है। यद्यपि वर्तमान में यहां पर एक संत श्री विराजमान है किंतु उन्हें भी प्रवास पर जाना पड़ता होगा!
श्री चन्द्रे ने बताया कि जब वह दर्शन के लिये वहां गये तो वहां की दुर्दशा एवं अव्यवस्था देखकर ऐसा प्रतीत हो रहा है की मंदसौर नगर के सक्षम वर्ग अथवा उस आश्रम के प्रबंधन से जुड़े या धर्म स्थानों की चिंता करने वाले लोगों का ध्यान इस आश्रम पर कम दिखाई दे रहा है। श्री चन्द्रे ने इस लेख के माध्यम से जवाबदारों से आग्रह किया है कि एक सशक्त, धार्मिक परंपरा वाले आश्रम को उजाड़ होने से बचाने के लिए लगातार सक्रिय होने की आवश्यकता है एवं वहां पर संतों के निवास तथा प्रवचन माला और धार्मिक एवं सामाजिक चेतना की कार्यक्रमों की निरंतरता बनाए रखना आवश्यक है एवं आश्रम को आश्रम के स्वरूप में सुसज्जित करने की आवश्यकता है जहां पर स्वतः जाते ही आनंद की अनुभूति होने लगे।