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जीवन में सम्यक ज्ञान, दर्शन व चरित्र का महत्व समझे- संत श्री पारसमुनिजी

महावीर अग्रवाल

मन्दसौर १२ जुलाई ;अभी तक;  प्रतिदिन प्रातः 8.45 बजे से 10 बजे तक शास्त्री कॉलोनी स्थित नवकार भवन में आचार्य श्री विजयराजजी म.सा. के आज्ञानुवर्ती शिष्य श्री पारसमुनिजी म.सा., श्री अभिनवमुनिजी म.सा. व श्री दिव्यमुनिजी म.सा. के प्रवचन हो रहे है। कल बुधवार को संतश्री पारसमुनिजी म.सा. ने धर्मसभा में कहा कि मनुष्य को सम्यक ज्ञान व मिथ्या ज्ञान के अंतर को समझना जरूर है। जीवन में सम्यक, ज्ञान, दर्शन व चरित्र ही मोक्ष मार्ग की ओर प्रवृत्त कर सकते है। प्रभु महावीर ने ज्ञान-दर्शन चरित्र की महत्ता बताई है और कहा है कि यदि इन तीनों में से एक की भी कमी रहेगी तो मनुष्य के मोक्ष में बाधा आयेगी इसलिये जीवन में सम्यक ज्ञान, दर्शन व चरित्र की महत्ता को समझो।
श्री पारसमुनिजी ने कहा कि ज्ञान के पांच भेद है। केवल ज्ञान भी उसमें से एक है जब कोइ तीर्थंकर केवलज्ञान

 प्राप्त कर लेता है तो समझो उसने भूतकाल, वर्तमान काल व भविष्यकाल तीनों काल का ज्ञान प्राप्त कर लिया है, इसलिये केवल ज्ञान को ही परिपूर्ण ज्ञान माना गया है। आपने यह भी कहा कि अपूर्ण ज्ञानी व्यक्ति अज्ञानी से अधिक नुकसानदायक है वह आधे अधुरे ज्ञान को परोसकर अपनी जेब तो भर सकता है लेकिन वह किसी की आत्मा का कल्याण नहीं कर सकता।
श्री पारसमुनिजी ने यह भी कहा कि आज से 2600 वर्ष पूर्व जब संसाधनों की कमी थी वैज्ञानिक साधन नहीं थे तब प्रभु महावीर ने हमें बता दिया था कि पेड़ पौधों में भी जीवन है। कई प्रकार के सूक्ष्म जीव होते है जो आंखों से दिखाई नहीं देते। यह बात बाद में वैज्ञानिकों ने भी कही। अर्थात प्रभु महावीर ने मनुष्य को एकेन्दी से लेकर पंच इन्द्रीय जीवों का भेद बताया था जो बाद में वैज्ञानिकों ने भी सिद्ध किया। कहने का तात्पर्य यह है कि प्रभु महावीर को वर्तमान, अतीत व भविष्यकाल तीनों का ज्ञान था इसलिये वे केवल ज्ञानी कहलाये। हमें जीवन में इसी प्रकार सम्यक ज्ञान, दर्शन चारित्र को समझना होगा।
दूसरों को दुखी नहीं करे- संत श्री दिव्यममुनिजी ने कहा कि यदि दूसरे प्राणी को दुख दोगे तो तुम्हें दुख ही मिलेगा। दुख देकर सुख की कामना करना व्यर्थ है। यदि हम दूसरों की सेवा करेंगे उनकी सहायता करेंगे तो हमें सुख स्वतः ही प्राप्त हो जायेगा। जीवन में हमें 18 प्रकार के पापकर्म से बचना चाहिये। मर्यादित जीवन जीना चाहिए इसी में स्वयं का एवं दूसरों का हित है। धर्मसभा में बड़ी संख्या में श्रावक श्राविकाओं ने सामाजिक में भी सहभागिता की धर्मसभा के पश्चात संतों की मांगलिक भी हुई

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