आनंद ताम्रकार बालाघाट से
जबलपुर ५ मई ;अभी तक; हत्या के आरोप में आजीवन कारावास से दण्डित मेडिकल छात्र को हाईकोर्ट ने दोषमुक्त करार दिया है। हाईकोर्ट जस्टिस अतुल श्रीधरन तथा जस्टिस सुनीता यादव ने अपने फैसले में कहा है कि याचिकाकर्ता को आरोपी सिध्द करने में अभियोजन व पुलिस द्वारा जल्दीबाजी में कार्यवाही की है। युगलपीठ ने अपने फैसले में कहा है कि डॉक्टर बनने के बाद याचिकाकर्ता प्रतिसाल 3 लाख रूपये कमाई करता। उसने अपने जीवन के 14 साल जेल में काटे है, सरकार उसे 42 लाख रूपये मुआवजे के तौर पर प्रदान करें।
याचिकाकर्ता चंद्रेष मर्सकोले की तरफ से दायर की गयी अपील में कहा गया था कि वह गांधी मेडिकल कॉलेज अस्पताल में एमबीबीएस अंतिम साल का छात्र था। एक लडकी की हत्या के आरोप में उसे न्यायालय ने जून 2009 में आजीवन कारावास की सजा से दण्डित किया था। दायर अपील में कहा गया था कि वह निर्दोष है और अस्पताल के रेजिडेंट डॉक्टर हेमंत वर्मा के इषारे पर पुलिस ने उसे फंसाया है। डॉक्टर हेमंत वर्मा के तत्कालीन आईजी भोपाल षैलेन्द्र श्रीवास्तव के अच्छे संबंध थे।
युगलपीठ ने सुनवाई के दौरान पाया कि हत्या का कोई चष्मदीष गवाह नहीं है। प्रकरण में डॉ हेमंत वर्मा तथा उसना डायवर मुख्य गवाह है।
युगलपीठ ने सुनवाई के दौरान पाया कि हत्या का कोई चष्मदीष गवाह नहीं है। प्रकरण में डॉ हेमंत वर्मा तथा उसना डायवर मुख्य गवाह है।
अभियोजन के अनुसार याचिकाकर्ता ने 19 सितम्बर 2008 को होषंगाबाद जाने के लिए रेसिडेंट डॉक्टर हेमंत वर्मा से उनकी टोयोटा क्वालिस गाडी मांगी थी। डॉ वर्मा ने अपने डायवर राम प्रसाद को याचिकाकर्ता के साथ जाने के लिए कहा था। हॉस्टल से याचिकाकर्ता के अपना बिस्तरबंद गाडी की डिक्की में रखा था। इसके बाद वह होषंगाबाद जाने के लिए रवाना हुए। बुधनी घाटी के पास याचिकाकर्ता ने डायवर को पचपढी चलने के लिए कहा। षाम लगभग 4 बजे डायवर ने पचपढी स्थित दर्षन मजार के समीप लधुषंका के लिए गाडी रोकी। जब लधुषंका कर रहा था तभी उसे गिरने की आवाज आई। उसने देखा कि गाडी की डिक्की खुली थी और बिस्तरबंद नहीं था। इसके बाद वह रात लगभग 10 बजे वापस लौट आये थे। लौटने के बाद डायवर ने पूरे घटनाक्रम की जानकारी डॉ वर्मा को दी थी।
डॉ वर्मा ने घटना का उल्लेख करते हुए आईजी भोपाल को पत्र लिखा था। इसके अलावा पत्र में इस बात का उल्लेख किया गया था कि पिपरिया निवासी एक लडकी का याचिकाकर्ता मेडिकल छात्र के हॉस्टल स्थित कमरे में आना-जाना था। लडकी छात्र के कमरें में रूकती थी। संभवता याचिकाकर्ता मेडिकल छात्र ने लडकी की हत्या कर लाष को ठिकाने लगाया है।
युगलपीठ ने पाया कि डॉ वर्मा ने सीधे आईजी भोपाल से संपर्क किया,जिसका स्पस्ष्ट है कि वह दोनों परिचित है। डॉ वर्मा ने अपने वयान में कहा है कि पुलिस याचिकाकर्ता छात्र को छात्रावास से 20 सितम्बर 2008 को ले गयी थी,जबकि उसकी गिरफतारी 25 सितम्बर 2008 को प्रदर्षित की गयी है। इसके अलावा डॉ वर्मा ने अपने वयान में कहा है कि वह 19 सितम्बर 2008 को इंदौर गये थे। विवेचना अधिकारी ने उसने किस कार्य और किस तरह इंदौर गये थे,इस संबंध में कोई पूछताछ नहीं की। जब उन्हें इंदौर जाना था तो उन्होने अपना वाहन व डायवर याचिकाकर्ता को क्यो दिया। डायवर ने अपने वयान में कहा है कि बिस्तरबंद भारी था। डायवर ने जब डिक्की में रखने व फैकने में सहयोग नहीं किया तो उसे कैसे पता चला की बिस्तदबंद भारी है। इसके अलावा एक वयान ने अपने वयान में कहा है कि पचपढी टोल नाका में गाडी में चार व्यक्ति बैठे थे।
युगलपीठ ने पाया कि गवाह डॉ हेमंत वर्मा व उसके डायवर से विवेचना अधिकारी व अभियोजन ने सही तरीके से पूछताछ नहीं की। उन्होने सिर्फ याचिकाकर्ता को दोषी साबित करने के लिए कार्यवाही की सत्य जाने का प्रयास नहीं किया। युगलपीठ ने बुधवार पारित आदेष में जिला न्यायालय के आदेष को खाजिर करते हुए अपने आदेष में कहा है कि याचिकाकर्ता ने चार हजार सात सौ से अधिक दिन जेल में गुजारे है। युगलपीठ ने सर्वोच्च न्यायालय के आदेषों का हवाला देते हुए याचिकाकर्ता को मुआवजा प्रदान करने के लिए दिये है। युगलपीठ ने अपने आदेष में कहा है कि 90 दिनों में याचिकाकर्ता को मुआवजे की रकम प्रदान की जाये। निर्धारित समय सीमा में भुगतान नहीं करने पर 9 प्रतिषत प्रतिसाल के हिसाब से ब्याज देना होगा। युगलपीठ ने याचिकाकर्ता को स्वतंत्रता दी है कि वह संबंधित व्यक्तियों के खिलाफ कानूनी कार्यवाही के लिए स्वतंत्र है।