महावीर अग्रवाल
मंदसौर 18 मार्च अभीतक । 18 मार्च शनिवार को पूर्व विधायक बाबू श्री शिवदर्शन लाल अग्रवाल की 34 वी पुण्यतिथि मनाई गई। पशुपतिनाथ मंदिर परिसर स्थित श्री शिवदर्शनलाल अग्रवाल धर्मशाला पर बाउजी की मूर्ति पर दीप प्रज्वलन कर माल्यार्पण कर श्रद्धांजलि अर्पित की गई। इस अवसर पर परिवार द्वारा अपना घर बाल गृह पर बच्चों को सुरुचिपूर्ण भोजन करवाया गया। इस अवसर पर परिवार के विश्व मोहन अग्रवाल ,रवि अग्रवाल एवं स्नेहीजनों में घनश्याम खत्री, देवेंद्र शर्मा, राजेश सोनी, प्रमोद जैन, अभिषेक भट्ट, राकेश भट्ट ,शुभम शर्मा ,आयुष शर्मा, पीयूष शर्मा ,अजय शक्तावत,पार्थ अग्रवाल, अंकित भारती गोस्वामी आदि उपस्थित थे।
इस अवसर पर विश्वमोहन अग्रवाल ने बाबू श्री शिवदर्शन लाल अग्रवाल के जीवन पर प्रकाश डालते हुए बताया कि आदरणीय बाउजी का धार्मिक क्रांति में सदा से ही दशपुर (मन्दसौर) नगर का महान योगदान रहा है। दशपुर को धार्मिक क्षेत्र में जो गौरव में स्थान प्राप्त है अधिकांश श्रेय बाबू शिवदर्शन लाल अग्रवाल को जाता है जिन्होंने जीवन पर्यंत उच्च विचार एवं आदर्शों से जनता की सेवा की है।
आपका जन्म मगसर बदी 3 संवत 1951 में हुआ। आपके पिता श्री हजारीलाल जी अग्रवाल थे, आपकी माता आपको 8 वर्ष का छोड़कर स्वर्ग सिधार गई थी। आप अपने बाल्यकाल से ही जन सेवा में रत थे। अनेक धार्मिक एवं सामाजिक कार्य आपने किए हैं। आपने मंदसौर नगर में खादी भंडार की स्थापना की तथा भारत को अंग्रेजों की दासता से मुक्ति हेतु प्रयत्न किए आपका विचार था कि भारत स्वतंत्र होने पर हिंदू धर्म तथा गौ माता की रक्षा होगी और देशवासी सुखी व संपन्न होंगे।
नगर में कट्टर सांप्रदायिक विनाशकारी तत्वों से आपने सदैव लोहा लिया और धर्म को अनेक बार गंभीर खतरों से बचाया ,जब-जब भी हिंदू धर्म पर संकट आया आपने डटकर मुकाबला किया। सन 1927 में जाटों के मंदिर के पास विधर्मी ने मुर्दा गाड़ दिया था तो आपने रियासत की मदद से मंदिर को शुद्ध किया व विधर्मियों को सजा दिलवाई, इसी प्रकार दुदना सैय्यद के मेले में महिलाओं के साथ छेड़खानी और अभद्र व्यवहार को आप सहन नहीं कर सके और इस मेले को समाप्त करने का प्रण किया जो ईश्वर कृपा और मित्रों के सहयोग से वह मेला नरसिंह घाट पर फिर से शुरू हुआ उसके पश्चात जंगली हनुमान जी में मेले को प्रारंभ किया। आपने गनेड़ीवाल जी व बाफना जी के सहयोग से महावीर व्यायाम शाला की नींव रखी। सन 1929 में नाहर सैय्यद तालाब से महान और विशाल चपटी एक ही पत्थर की गणपति जी की 5 सुंडी मूर्ति जिसके दोनों और मुख हैं ,लाई जाकर 17 जुलाई 1929 को अपने अन्य मित्रों के सहयोग से गणपति चौक में स्थापित करवाई। मंदसौर नगर की होली की अश्लीलता को गन्दापन दूर करने हेतु आपने सन 1932 से प्रयत्न किये। जिस पर शरारती गुंडा तत्वों ने आपके ऊपर पत्थर फेंके ,धूल उछाली और नकली अर्थी तक निकाली पर आपने इसकी परवाह नहीं की।
10 नवंबर सन 1935 को महादेव घाट पर दीप मालिका की रोशनी के अवसर पर विधर्मी तत्वों ने हिंदुओं के लगाए चिरागों पर थूका ,ठोकर मारी और झगड़े पर आमादा हो गए तो शिवदर्शन लाल जी ने कृष्ण राव कदम सुबा साहब तथा तहसीलदार साहब को लिखित सूचना दी तथा स्थिति से अवगत कराया किंतु किसी ने ध्यान नहीं दिया तथा 19 नवंबर को नगर का ऐतिहासिक मस्तराम कांड घटित हुआ जिसमें सैकड़ों उपद्रवी विधर्मी ने महादेव घाट पर स्थित प्राचीन तापेश्वर महादेव की प्रतिमा को तोड़ने का प्रयत्न किया जबकि रात्रि को मंदिर प्रांगण में हिंदू भजन कर रहे थे। अनेक व्यक्तियों को इस कांड में चोट आई मस्तरामजी पतली लकड़ी से विधर्मियों को मंदिर में प्रवेश करने से रोके हुए थे और अंततः इस कांड में मारे गए, जिसका मुकदमा चला कर और आपने स्पेशल अदालत लगवाई और अंत में गुंडे बदमाशों को सजा दिलवाई।
बाबूजी ने जिस उत्साह, परिश्रम, योग्यता व सेवा की भावना से कार्य किए हैं उसे नगर का हिंदू समाज कभी भुला नहीं सकता। आप सन 1947 में आजाद भारत के प्रथम नगर पालिका अध्यक्ष रहे। नगरपालिका उपाध्यक्ष ,पंचायत बोर्ड के सरपंच ,म्यु. ऑनरेरी मजिस्ट्रेट कॉपरेटिव बैंक के उपाध्यक्ष ,जिला औकाफ के मेंबर भी रहे। सन 1952 में विधानसभा उपचुनाव में आपने मध्य भारत के मुख्यमंत्री तख्तमल जी जैन को हराया। वर्तमान में महादेव घाट का जो स्वरूप हम देखते हैं वह आपके ही परिश्रम का फल है। महादेव घाट पर आपने 1936 मे खेती की जमीन खरीदी और क्षेत्र की रक्षा के लिए स्वयं की जान भी अनेक बार खतरे में डाली। सन 1940 में एक दिन उदाजी धोबी ने आपको सूचना दी एक बहुत ही सुंदर और विशाल मूर्ति चमन चिश्ती दरगाह के नीचे नदी में पड़ी है । आपने अपने साथियों के साथ जाकर उस मूर्ति को देखा और तहसील में औकाफ कमेटी को प्रार्थना पत्र देकर मूर्ति को अपने कब्जे में लिया और महावीर व्यायामशाला और सैकड़ों नागरिकों के सहयोग से रातभर में प्रतिमा को निकाला व बड़ी कठिनाइयों से महू नीमच मार्ग पर लाया गया और भव्य प्रतिमा को जनसहयोग से बाबूजी के खेत पर पहुंचाया जहां अनवरत 21 वर्षों तक बाबूजी ने अपनी जान पर खेलते हुए मूर्ति की सुरक्षा की व स्थापना करवाई। पशुपतिनाथ मंदिर शिखर पर स्वर्ण कलश स्थापना के अवसर पर मूर्ति संरक्षण व स्थापना में बाबूजी के योगदान के लिए राजमाता सिंधिया द्वारा सम्मानित किया गया।