भावसा डैम में अचनाक हुई बारिश का पानी भरने के चलते बंदरों की जान पर बनी
मयंक शर्मा
खंडवा २२ नवंबर ;अभी तक; बुरहानपुर में पिछले साल ही वन क्षेत्र में बने भावसा डैम में अचनाक हुई बारिश का पानी भरने के चलते कुछ बंदरों की जान पर बन आई है। हालांकि वन अमले सहित जिला प्रशासन इन बंदरों का रेस्क्यू करने की कोशिश तो जरूर कर रहा है। लेकिन अब तक कोई कारगर उपाय न होने के चलते अभी तक ये बंदर जंगल में पानी भरने से टापू बने एक क्षेत्र के कुछ पेड़ों पर फंसे रह गए हैं। बंदरों की संख्या को लेकर भी अलग-अलग बातें कही जा रही हैं।ग्रामीणों का मानना है कि इस क्षेत्र में पिछले छह महीने से करीब 50 से अधिक बंदर फंसे थे, जिनका समय पर रेस्क्यू न किए जाने के चलते अब करीब चार से पांच वानर ही बचे हैं। बाकी सभी ने भूख से तड़प कर जान दे दी है।
हालांकि जिला प्रशासन ने पेड़ों पर फंसे इन वानरों का रेस्क्यू करने के लिए महाराष्ट्र से तैराक भी बुलाए। साथ ही वन अमले ने भी कोशिश की। लेकिन पेड़ों पर चढ़कर वानर को नीचे उतारना घातक साबित हो सकता है। ऐसे में वानर हिंसक होकर वन अमले को ही नुकसान पहुंचा सकते हैं। इसलिए यह तरीका भी कारगर साबित नहीं हुआ। इसके बाद वन अमले ने वहां नाव छोड़कर उस पर वानरों के बैठने का इंतजार भी किया। लेकिन वानर नीचे उतरकर नाव पर भी नहीं बैठे। इस वजह से यहां मौजूद तीन से चार बंदरों का अभी तक रेस्क्यू का काम नहीं हो पाया है।
क्षेत्र के वन अधिकारी एसडीओ फॉरेस्ट अजय सागर ने बताया कि यहां 50 बंदर होने की बात गलत है। केवल तीन से चार बंदर हैं जो की भावसा डैम बनने के समय वहां बैठे हुए थे और अचानक पानी भरने के चलते वहीं फंस गए हैं। वन अधिकारी के अनुसार इन पेड़ों की भी कटाई होना थी, लेकिन ग्रामीणों ने अपनी धार्मिक आस्था के चलते इन पेड़ों को काटने नहीं दिया था। जिन पर अब यह वानर फंस गए हैं। उन्होंने कहा कि इन्हें बचाने के लिए तैराक भी बुलाए थे और नावें भी रखवाई थीं। लेकिन यह वन्य प्राणी हैं इसलिए उछल कूद करते रहते हैं।
हालांकि उनके अनुसार ग्रामीणों ने उन्हें भी वानरों की मौत का बताया है, पर अभी मौके का मुआयना नहीं हो पाया है। हालांकि इनके रेस्क्यू के प्रयास वन अमले द्वारा किए जा रहे हैं। ये वानर करीब सात-आठ दिन पहले हुई बारिश के बाद से यहां फंसे हुए हैं।
करीब 104 करोड़ रुपये की लागत से अमरावती नदी पर जिले की अब तक की सबसे बड़ी परियोजना बनी है। इससे उम्मीद तो थी कि आसपास के करीब सात गांवों के 3,750 हेक्टेयर के क्षेत्र में सिंचाई होगी और इन गांवों के किसानों की फसलें लहलहाएंगी। लेकिन लगभग छह महीने पूर्व बने इस बांध में अचानक हुई जोरदार बारिश के चलते पानी भर गया। इससे आसपास के क्षेत्र में भी टापू जैसी स्थिति बन गई। इन्हीं टापू बने क्षेत्रों में से डैम के करीब के एक टापू पर लगे कुछ पेड़ों पर बारिश के समय वन क्षेत्र में घूम रहे बंदर फंस गए, जो कि जलभराव को पार नहीं कर सके। उसके बाद वे पेड़ों की छाल खाकर जीवन के लिए संघर्ष करने लगे। लेकिन ग्रामीणों के अनुसार अब समय गुजरने के साथ-साथ पेड़ों की छाल भी खत्म हो चली है। इसलिए वहां फंसे वानरों की अब जान के लाले पड़ने लगे हैं।