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अम्बरीष त्रिपाठी पी एच डी उपाधि से सम्मानित पत्रकारिता जगत के साथ वरिष्ठ साहित्यकारों ने दी बधाई

अम्बरीष त्रिपाठी पी एच डी

अम्बरीष त्रिपाठी आत्मज श्री राम सुशील त्रिपाठी जो पत्रकारिता के क्षेत्र में अपनी उत्कृष्ट पत्रकारिता के लिए जाने जाते हैं उन्होंने ” मध्यप्रदेश में जैवविविधता के संरक्षण में मीडिया की भूमिका (पन्ना बायोस्फियर रिजर्व के विशेष संदर्भ में)” विषय पर
जागरण लेकसिटी विश्वविद्यालय, भोपाल, (म.प्र.) ,पत्रकारिता एवं जनसंचार विषय में डॉक्टर ऑफ फिलॉसफी उपाधि प्रदान की गई है। अम्बरीष त्रिपाठी ने अपना शोध कार्य डॉ. जयंत कुमार पंडा,एसोसिएट प्रोफेसर जागरण लेक सिटी विश्वविद्यालय की निगरानी में पूरा किया है।
अम्बरीष त्रिपाठी को पी एच डी की उपाधि मिलने पर जे एल यू
पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग के अध्यापकों के साथ कुलपति प्रोफेसर डॉ पी के विश्वास , विभाग के डीन प्रोफेसर दिवाकर शुक्ला, प्रोफेसर डॉक्टर विवेक खरे,वरिष्ठ पत्रकार एस पी त्रिपाठी सहित पत्रकार बंधुओं ने बधाई दी है।

शोध सारांश
प्रस्‍तुत शोध अध्‍ययन “मध्‍यप्रदेश में जैव विविधता के संरक्षण में मीडिया की भूमिका का अध्‍ययन (पन्‍ना बायोस्‍फीयर रिजर्व के विशेष संदर्भ में)” पर केंद्रित है। अध्‍ययन के दौरान संकलित किये गये प्राथमिक और द्वितीयक आंकड़ो का विश्‍लेषण करने के बाद इस निष्‍कर्ष पर पहुंचा जा सकता है, कि जैव‍विविधता के संरक्षण में सोशल मीडिया महत्‍वपूर्ण भूमिका का निर्वहन कर सकता है। अध्‍ययन के दौरान अध्‍ययन क्षेत्र में संचार के एक अन्‍य माध्‍यम टेलीविजन की सार्थक भूमिका का पता चला है, लेकिन ग्रामीण दूरस्‍थ अंचलों में टेलीविजन की कनेक्‍टिविटी की समस्‍या के कारण सोशल मीडिया पर निर्भरता ग्रामीणों या वन वासियों की ज्‍यादा है। सरकारी तौर पर जैव विविधता संरक्षण की जागरूकता के लिये जो भी प्रचार-प्रसार के माध्‍यम अपनाये जा रहे हैं या उपयोग में लाये जा रहे हैं वे संचार माध्‍यम ग्रामीणों की पहुंच से दूर हैं, यही वजह कही जा सकती है कि सरकारी तौर पर संचालित अभियानों का जैव विविधता के संरक्षण में कोई खास योगदान मैदानी तौर पर नजर नहीं आता है। शोध अध्ययन के दौरान विभागीय अधिकारियों से साक्षात्कार के दौरान यह निष्कर्ष निकला कि जिम्मेदार भी स्वीकार करते हैं, कि वर्तमान दौर में वन संरक्षण या बायोस्फीयर रिजर्व क्षेत्र में जैव विविधता के संरक्षण के लिये जो प्रचार-प्रसार के साधन अपनाये जा रहे है, वे नाकाफी है और इसमें बदलाव की प्रक्रिया विभागीय तौर पर चल रही है।
इस बात से भी इंकार नहीं किया जा रहा है, कि बायोस्फीयर रिजर्व क्षेत्र में रहने वाले वनग्राम वासी कम पढ़े-लिखे या अशिक्षित हैं, लेकिन जैव विविधता संरक्षण को लेकर जागरूक हैं। सरकार के द्वारा गठित की गयी जैव विविधता संरक्षण प्रबंध समितियों के सदस्यों के जागरूकता के स्तर का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है, कि रिजर्व क्षेत्र में होने वाली गतिविधियों के बारे में नियमित जानकारी संबंधित अधिकारियों को प्रबंध समितियों के सदस्य समय-समय पर देते रहते हैं। इसके अलावा जैव विविधता संरक्षित क्षेत्र में होने वाली संभावित अनैतिक गतिविधियों पर भी नजर रखते हैं। इसकी जानकारी भी संबंधित जिम्मेदारों को प्रबंध समितियों के सदस्यों के माध्यम से ही पहुंचती है।
अध्ययन के दौरान यह भी देखने में मिला है, कि संरक्षित क्षेत्र के स्थानीय रहवासियों में सिर्फ पुरूषों में ही नहीं बल्कि महिलाओं में भी जागरूकता का स्तर उच्च है। महिलायें वनों को धार्मिक आधार और रोजी-रोटी का जरिया समझती हैं। यही वजह है, कि स्थानीय रहवासी या वन ग्रामवासी वनों को नुकसान पहुंचाने से डरते हैं। संरक्षित क्षेत्र में होने वाली अनैतिक गतिविधियों के लिये स्थानीय नहीं बल्कि आसपास के शहरी क्षेत्रों के ही लोग जिम्मेदार होते हैं।
वनों के सरंक्षण के लिये, सेव टाईगर समेत अन्य प्रकार के वन संबंधी सरंक्षण के लिये संचालित किये गये या संचालित किये जा रहे मीडिया अभियानों का मैदानी असर नहीं देखा गया है। शोध के दौरान पता चला है कि इन मीडिया अभियानों ने सिर्फ शहरी क्षेत्रों या पढ़े-लिखे लोगों के बीच जरूर प्रसिद्धि प्राप्त की है, लेकिन वन संरक्षण, सेव टाईगर समेत जैव विविधता के संरक्षण के लिये जागरूकता लाने में स्थानीय स्तर पर कोई प्रभाव इन मीडिया अभियानों का नहीं देखा गया है।
अध्ययन के दौरान यह भी पता चला है कि भले ही सरकार और सरकारी तौर पर जैव विविधता संरक्षण के लिये सोशल मीडिया की विभिन्न सोशल नेटवर्किंग साइट्स (व्हार्टसअप) का प्रयोग फिलहाल नहीं किया जा रहा हो, लेकिन संरक्षित क्षेत्र समेत अन्य स्थानों पर कार्य कर रहे गैर सरकारी संगठनों ने सोशल मीडिया साईट्स (व्हार्टसअप) का बेहतर उपयोग संरक्षित क्षेत्र में होने वाली गतिविधियों के बारे में किया है। गैर सरकारी संगठन ने ही स्थानीय रहवासियों को जागरूक किया और उनके माध्यम से जानकारी त्वरित गति से गैर सरकारी संगठनों को मिलने लगी। ये गैर सरकारी संगठन सरकार के जिम्मेदारों तक ये जानकारी मुहैया कराने का कार्य करते है।
शोध के दौरान सबसे महत्‍वपूर्ण तथ्‍य यह सामने आया है कि सरकार के द्वारा संचालित योजनाओं, प्रक्रियाओं और जागरूकता के लिये संचालित होने वाले अभियानों में प्रचार प्रसार के उन साधनों का उपयोग किया जा रहा है जिन साधनों तक ग्रामीणों की पहुंच न के बराबर है। यही वजह है कि सरकार के तमाम प्रयासों के बा‍बजूद भी ग्रामीणों के जागरूकता स्‍तर में समानुपात वृद्धि नहीं हो पा रही है। हालांकि जैव विविधता सरंक्षण के लिये सरकार ने पंचायत स्‍तर पर जैव विविधता सरंक्षण समितियों का गठन किया है, जिनका मूल उद्देश्‍य ग्रामीणों में जागरूकता के स्‍तर में बढ़ोत्‍तरी करने के अलावा नये नियमों, कानूनों की जानकारी देना है। इन समितियों की बैठकों को लेकर भी कई प्रकार की भ्रांतियां सामने आयी हैं। शोध के दौरान समितियों के सदस्‍यों के साथ किये गये समूह परिचर्चा के दौरान यह तर्क सामने आया है कि बिना मानदेय की होने वाली इन बैठकों से सार्थक निष्‍कर्ष नहीं निकल पा रहे हैं।

 

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