दूसरों के साथ अपनी तुलना न करे, जो प्राप्त है उसी में संतुष्ट रहना सिखे ; आचार्य श्री विजयराजजी म.सा.

महावीर अग्रवाल
मन्दसौर २१ मार्च ;अभी तक;  आचार्य श्री विजयराजजी म.सा. का साधु-साध्वी मण्डल सहित मंदसौर नगर में आगमन हो गया है। आचार्य श्री एवं अन्य जैन साधु-साध्वियों का होली चातुर्मास (होली पर्व पर स्थिरता) मंदसौर में ही रहेगी। आचार्य श्री नवकार भवन शास्त्री कॉलोनी में विराजित है तथा उनके प्रतिदिन प्रातः 9.15 से 10.45 बजे तक प्रवचन हो रहे है।
                                   कल गुरुवार को आचार्य श्री विजयराजजी म.सा. ने कहा कि मनुष्य को किसी और प्राणी के साथ तुलना नहीं की जा सकती उसी प्रकार हर मनुष्य का स्वभाव, प्रकृति अलग-अलग होती है, इसलिये मनुष्य को भी एक दूसरे के साथ अपनी तुलना नहीं करना चाहिये। हम जो दूसरे के साथ अपनी तुलना करते है यही हमारे दुखी रहने का कारण है। दूसरे के पास मुझसे ज्यादा धन है या दूसरे की दुकान या मकान बड़ा है, मेरा छोटा है ऐसा चिंतन हमें दुखी करता है। हमें यह चिंतन करना चाहिये कि जो प्राप्त है वही पर्याप्त है। अर्थात जो वस्तु हमारे पास है उसी में खुश रहो। अप्राप्त वस्तु का चिंतन करके दुखी मत रहो यदि जीवन में यह पंक्ति समझ ली तो समझो जीवन में खुश रहने का मंत समझ लिया।
                             आचार्य श्री ने कहा कि संसार परिवर्तनशील है जो वस्तु आपके पास है वह दूसरे के पास जा सकती है तथा जो दूसरों के पास है वह आपके पास आ सकती है। आवश्यकता केवल लक्ष्य की प्राप्ति के लिये कठोर परिश्रम करने की है, दुखी होने की नहीं। यदि दुखी होने की बजाय आपने कठोर परिश्रम किया तो जीवन में सफलता प्राप्त कर लेंगे लेकिन दूसरों के साथ तुलना करने से मन को दुखी करना ठीक नहीं है। जीवन में हम जो अपेक्षा रखते है वे सभी अपेक्षाएं पूरी नहीं होती है। अपेक्षाओं के पूरा नहीं होने से मन दुखी रहता है। एक दूसरे के साथ तुलना करने का भाव ही हमें अशांति का अनुभव कराता है। जीवन में सुखी रहना चाहते हो तो किसी  के साथ अपनी तुलना मत करो।
                               आचार्य श्री विजयराजजी ने कहा कि जीवन में यह चिंतन जरूर करे कि हमें जो मिला प्रभु कृपा से अपनी योग्यता से ज्यादा मिला है। यदि यह चिंतन किया तो तुम सुख अनुभव जरूर करोग। जीवन में यदि प्रतिदिन हेप्पीनेस डे मनाना है तो तुलना करना छोड़ो। अपने परिश्रम पर ध्यान दो। जीवन में  सकरात्मक सोचो। धर्मसभा में संत श्री दिव्यममुनिजी ने भी अपने विचार रखे। र्धमसभा में बड़ी संख्या में श्रावक श्राविकाओं ने आचार्य श्री की वाणी का लाभ लिया।