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अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस से पूर्व विशेष लेख – योग द्वारा स्वस्थ एवं सुखी जीवन का उपहार

  ( बीके उषा, संचालिका आत्म कल्याण भवन )
मंदसौर १९ जून ;अभी तक;  जीवन में सुख, शान्ति और खुशी की चाह में मनुष्य ने एक लम्बा सफर तय किया है, परन्तु भौतिक साधनों में सुख, शान्ति और खुशी के खोज की अतृप्त यात्रा में मनुष्य का जीवन पहले की अपेक्षा और अधिक अशान्त और दुःखमय होता जा रहा है। संचार क्रान्ति के बर्तमान युग में मनुष्य के हाथ में जब मोबाइल आया, तो जैसे उसे लगा कि सारी दुनिया उसकी मुट्ठी में कैद हो गई। इंटरनेट और ई-मेल ने मनुष्य की जिन्दगी में दखल देकर उसके जीवन से सुख, शान्ति और खुशी को तो एकदम बेदखल ही कर दिया है। वर्तमान समय आत्म-मूल्यांकन करके जीवन में सुख, शान्ति और खुशी की खोज के प्रति दृष्टिकोण को समकोण अर्थात् समदर्शी बनाने की आवश्यकता है, तभी जीवन में आध्यात्म और भौतिकवाद में समन्वय स्थापित करके जीवन को सुखमय बनाया जा सकता है।
अत्यन्त प्राचीन वैदिक काल से ही भारतीय तत्वदर्शी ऋषियों और मनीषियों ने उद्घोष किया है कि सुख, शान्ति और खुशी का स्रोत मनुष्य के मन में व्याप्त है। भौतिक वस्तुओं और साधनों में खुशी तथा शान्ति की खोज करना अपनी परछाई को पकड़ने जैसा है। संचार क्रान्ति ने मानवीय सम्बन्धों की मर्यादा और परिभाषा को बदल दिया है। सामाजिक, आर्थिक और मानसिक उथल-पुथल मच गई है और इससे मानवीय मूल्यों का सबसे अधिक हास होने से जीवन में समस्याएं, दुःख और नकारात्मक विचार तेजी से बढ़े हैं। यही कारण है कि मनुष्य के जीवन से सुख, शान्ति और चैन छिन-सा गया है। मनुष्य का मन ही उसके जीवन में चलने वाली सम्पूर्ण गतिविधियों जैसे सुख और दुःख, हार और जीत तथा आशा और निराशा इत्यादि का मुख्य कारण है। इसलिए मनुष्य के जीवन को सुखी और स्वस्थ बनाने के लिए वर्तमान समय में ऐसे योगाभ्यास की आवश्यकता है जो मन को स्वस्थ और निरोगी बना सके।
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नकारात्मक मनोदशा ही सर्व समस्याओं का कारण है
यह बड़ी खुशी की बात है कि 21 जून, 2015 को संयुक्त राष्ट्र संघ ने ‘अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस’घोषित करके जीवन में योग के महत्व को पुनर्स्थापित किया है। प्राचीन काल से ही योग हमारी संस्कृति और दिनचर्या का अभिन्न अंग रहा है परन्तु धीरे-धीरे भौतिकवादी संस्कृति के विकास के साथ ही योग के प्रति
हमारा दृष्टिकोण भी बदल गया है। सबसे बड़ी भौतिकता है- ‘स्वयं को पाँच तत्वों से निर्मित शरीर समझना।’ जब मनुष्य स्वयं को आत्मा भूलकर शरीर समझने लगा तो योग के प्रति उसका दृष्टिकोण भी बदल गया। इसलिए योग के नाम पर शरीर को निरोग बनाने वाले विभिन्न शारीरिक योगासन, शारीरिक मुद्राएं और हठयोग प्रचलित हो गए।
वर्तमान समय में प्रचलित अधिकांश योगाभ्यास केवल शारीरिक योगाभ्यास बन कर रह गए हैं परन्तु योग का वास्तविक अर्थ होता है- दो अलग-अलग अस्तित्व वाली संख्या का योग।’ आज ऐसे योग की आवश्यकता है जो इस भौतिक शरीर को संचालित करने वाली चैतन्य सत्ता ‘आत्मा’ को स्वस्थ और पवित्र बनाते हुए परमात्मा से मिलन कराकर सच्ची सुख, शान्ति और खुशी की अनुभूति करा सके।
भारत का प्राचीन सहज राजयोग
ब्रह्माकुमारीज़ संस्था में सिखाया जाने वाला राजयोग भारत का सबसे प्राचीन और परमात्मा द्वारा सिखाया गया योग है। यह आत्मा में व्याप्त दुःख और पाप के पाँच मूल कारणों- काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार को दूर करने वाला एकमात्र योगाभ्यास है, जबकि कोई भी प्रचलित योगासन ऐसा नहीं है जो मन को मोह या अहंकार से मुक्त कर सके। वर्तमान समय में ऐसे ही योगाभ्यास की आवश्यकता है जो मनुष्य के मन को स्वस्थ और निरोग बना सके। क्योंकि श्रीमद् भगवद्गीता में एक बात बहुत ही स्पष्ट रूप से कही गई है- ‘मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु और सबसे बड़ा मित्र उसका मन ही होता है।’
जब मनुष्य की मनोदशा अर्थात् मन की दशा सकारात्मक होती है, तो मन परमात्म अनुभूति का माध्यम बनकर जीवन के महान लक्ष्य जीवनमुक्ति की अनुभूति कराने का साधन बन जाता है! परन्तु जब मनुष्य के मन की दशा नकारात्मक होती है तो मन जीवन में रोग, शोक और दुःख का कारण बन जाता है, इसलिए मन को स्वस्थ और प्रसन्न बनाने वाला योग ही यथार्थ योग है और इससे ही जीवन में सच्ची सुख, शान्ति और खुशी आती है।
श्रीमद् भगवद्गीता में ही है सच्चा समाधान
आज समाज में चारों ओर नकारात्मक वातावरण उत्पन्न करने वाले कारण विद्यमान हैं। अतः नकारात्मक प्रवृत्ति वाले मनुष्य ही दुर्जन हैं, जिनकी बात को सुनने तथा उनके संग को शास्त्रों में नर्क का मार्ग बताया गया है। वर्तमान समाज में ऐसा कोई एक भी व्यक्ति नहीं है जिसका मन नकारात्मक वृत्तियों जैसे- काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार, व मानसिक तनाव, दुःख, निराशा इत्यादि से पूर्णतः मुक्त हो। इसलिए किसी भी मनुष्य द्वारा दिए गए उपदेश, प्रवचन या धर्म की बातों का मन पर सकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ सकता है। सम्भवतः इसलिए श्रीमद् भगवद्गीता में परमात्मा ने स्पष्ट कहा है कि कलियुग में मैं यज्ञ, जप, तप, दान इत्यादि से नहीं प्राप्त हो सकता। नकारात्मक मनोदशा की अवस्था में धर्म के अनुकूल आचरण करना असम्भव होता है।
अतः वर्तमान समाज में विद्यमान घोर नकारात्मक वातावरण ही श्रीमद् भगवद्गीता में वर्णित अति धर्मग्लानि का समय है, और परमात्म-अवतरण का कालखण्ड है। श्रीमद् भगवद्गीता में इस बात का स्पष्ट उल्लेख किया गया है कि स्वयं परमात्मा ही मनुष्य को राजयोग सिखाकर मुक्ति और जीवनमुक्ति का मार्ग बताते हैं।
सकारात्मक मनोदशा ही सच्चा योग है
‘अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस’ के अवसर पर पुनः सर्व मनुष्यात्माओं को स्वयं परमात्मा द्वारा सिखाए गए राजयोग के माध्यम से, सकारात्मक मन की अनुभूति करने के लिए ब्रह्माकुमारी संस्थाओं में एक विशेष अनुभूति सत्र आयोजित किया गया है। इस पूर्णतः निःशुल्क कार्यक्रम में समाज के सभी वर्ग के लोगों को सम्मिलित होने के लिए सादर ईश्वरीय निमंत्रण है।
राजयोग सीखने हेतु बढ़ाया गया यह कदम जीवन में बहुत बड़ा सकारात्मक परिवर्तन लाकर आपको सुख, शान्ति और खुशी की अनुपम सौगात प्रदान कर सकता है और आपके जीवन की दशा और दिशा को बदल सकता है। कर्म के परिणाम से मुक्त होकर जीवन को सुखमय बनाने के लिए पुरूषार्थ करना प्रत्येक मनुष्यात्मा का ईश्वरीय जन्म-सिद्ध अधिकार है। योग के प्रयोग का जीवन पर बहुत ही चमत्कारिक प्रभाव पड़ता है। राजयोग का साप्ताहिक कोर्स करने तथा कुछ दिनों तक इसका नियमित अभ्यास करने से जीवन में मानसिक तनाव, दुःख, निराशा, सम्बन्धों में टकराव इत्यादि सभी समस्याओं के उत्पन्न होने का मूल कारण स्पष्ट रूप से समझ में आ जाता है।
हमारे जीवन में वर्तमान समस्याएं और सम्बन्धों में तनाव और टकराव का मूल कारण कोई व्यक्ति या परिस्थिति नहीं है, बल्कि सकारात्मक मनोदशा का अभाव है। राजयोग का जीवन में अभ्यास प्रारम्भ करते ही मन में व्याप्त नकारात्मक मनोवृत्तियों की पहचान होने लगती है। प्रत्येक मनुष्य में नकारात्मक कर्म और व्यर्थ चिन्तन के अनुसार उसके मन में नकारात्मक मनोवृत्तियों का निर्माण होता है। अतः राजयोग द्वारा आत्म- अनुभूति ही मन को नकारात्मक वृत्तियों से मुक्त करने का सर्वश्रेष्ठ मार्ग है।
तो आइये, इस सृष्टि के महापरिवर्तन की पावन वेला में स्वयं को नकारात्मक वृत्तियों से परिवर्तन कर एक नए सुखमय समाज की पुनर्स्थापना के लिए कदम बढ़ायें। सर्व मनुष्यात्माओं को ‘अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस’ के अवसर पर परमात्मा की ओर से यही ईश्वरीय संदेश है।

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