बाघों को अब कुत्तों से ख़तरा,.बाघों को बचाने पन्ना टाइगर रिजर्व से सटे गाँवों में कुत्तों का टीकाकरण
रवीन्द्र व्यास
पन्ना १४ नवंबर ;अभी तक ; मध्यप्रदेश के पन्ना टाइगर रिजर्व में बाघों को आवारा कुत्तों से संभावित खतरे को देखते हुए सीमावर्ती गाँवों के कुत्तों का टीकाकरण किया जायेगा। कुत्तों से फैलने वाला केनाइन डिस्टेम्पर वायरस बाघों के लिए बड़ा खतरा बन गया है | बड़ी मुश्किल से पन्ना टाइगर रिजर्व में बाघ फिर से आबाद हुए थे | आबाद होने के कुछ वर्ष बाद ही इस वायरस के कारण २०१५ _२०१६ में एक बाघ और दो तेंदुआ की मौत हो गई थी | इसके चलते पार्क प्रबंधन इस मामले में कोई भी रिस्क लेने को तैयार नहीं है | १५ नवम्बर से ७ दिसंबर तक पहले चरण और और २ से २५ जनवरी तक दूसरे चरण टीकाकरण का कार्य शुरू होगा |
यह खतरनाक केनाइन डिस्टेम्पर वाइरस टाइगर रिजर्व के आसपास की बसाहटों में रहने वाले आवारा और पालतू कुत्तों में पाया जाता है | वायरस से संक्रमण की स्थिति सिर्फ पन्ना जिले तक सिमित नहीं है बल्कि इसके लक्षण छतरपुर ,और दमोह जिले के आवारा कुत्तों मे भी पाए गए हैं | पन्ना टाइगर रिजर्व में सितम्बर २०१३ में एक पागल कुत्ते ने बाघ को काट कर जख्मी कर दिया था.| जख्मी बाघ को इन्क्लोजर में रखकर उसे रैबीज के टीके लगाये गये जिससे उसे संक्रमण से बचा कर पार्क प्रबंधन नव जीवन दिया था | कुत्तों से फैलने वाले कैनाइन डिस्टेम्पर वाइरस के खतरे को देखते हुए बाघों के अस्तित्व को बचाना और भी चुनौती पूर्ण हो गया है | भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान भी इस वाइरस को बाघों के लिए गंभीर खतरा मानता है | बाघों के अस्तित्व में आये इस संकट के बाद राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण ;एनटीसीए भी हरकत में आ गया है एनटीसीए ने हाल ही में राज्यों के टाइगर रिजर्व के आसपास के इलाको में घूमने वाले पालतू या आवारा कुत्तों के टीकाकरण के निर्देश दिए हैं |
36 गांव 1150 आवारा कुत्ते
पन्ना पन्ना टाइगर रिजर्व की फील्ड डायरेक्टर अंजना सुचिता तिर्की ने बताया कि पन्ना टाइगर रिजर्व के समीपवर्ती लगभग 36 गांव में लगभग 1150 आवारा कुत्ते हैं उनका टीकाकरण किया जाना है | इसका उद्देश्य यह है की जो केनाइन डिस्टेंपर और रेबीज जैसी बीमारियां हैं जो कुत्तों से वन्य प्राणियों में फैल सकती हैं | इसके साथ अन्य बीमारियों की रोकथाम के लिए यह टीकाकरण अभियान चलाया जा रहा है | हमारे वन्य प्राणी हैं चिकित्सक डॉक्टर संजीव गुप्ता उन्हीं के निर्देशन में जो गौ सेवक हैं एएफओ हैं उनके माध्यम से यह कार्यक्रम चलाया जाएगा | केनाइन डिस्टेंपर वायरस काफी घातक बीमारी है इसमें शेर बाघ और कैट फैमिली के वन्य जीव काफी इन्फेक्टेड रहते हैं।
बाघों की मौत की वजह बनते
केनाइन डिस्टेम्पर वायरस कुत्ते श्वांस , लार या मूत्र जैसे शरीर के तरल पदार्थों से ये वायरस छोड़ते हैं, | वायरस कई महीनों तक अपना असर दिखाते हैं | केट प्रजाति के लिए कैनाइन डिस्टेंपर का संक्रमण इतना खतरनाक माना जाता कि इससे बाघ और तेंदुए की मौत तक हो जाती है | ऐसे खतरनाक वायरस वाले कुत्ते अगर बिना टीकाकरण के वन्यजीवों के संपर्क में आते हैं तो ये संक्रमण के मुख्य स्रोत बन जाते हैं | अब तक की रिसर्च में इस वायरस से निपटने के लिए कोई एंटी वायरल दवा नहीं बन पाई है | ऐसे में सिर्फ टीकाकरण ही इसका निदान है |
केनाइन डिस्टेंपर खतरनाक बीमारी
पन्ना टाइगर रिजर्व के वन्य प्राणी चिकित्सक डॉ संजीव गुप्ता ने बताया की केनाइन डिस्टेंपर बीमारी बहुत खतरनाक बीमारी है और विशेषकर टाइगर और लेपर्ड में मृत्यु तक करती है। उन्होंने बताया कि 2015-16 में एक टाइगर और दो लेपर्ड इसी बीमारी के चलते खत्म हुए थे , उसके बाद वैक्सीनेशन चालू किया था । स्ट्रीट डॉग के संबंध में उन्होंने बताया कि। पेरी फ्री है उसमें टाइगर किल करता है और किल कुत्ते भी खाते हैं । यह जो वायरस होता है वह कुत्तों के द्वारा उस किल में चला जाता है। और किल के थ्रू टाइगर में चला जाता है। छतरपुर, पन्ना में केनाइन डिस्टेंपर काफी है यहां तक की दमोह में भी हैं । इसकी रोकथाम के लिए केवल वैक्सीनेशन कर सकते हैं । इसकी हिस्ट्री भी बहुत है कि केनाइन डिस्टेंपर टाइगर लेपर्ड में होता है। टीकाकरण के संबंध में उन्होंने बताया उसका एक तरीका होता है | पहले इंजेक्शन लगने के 21 से 30 दिन बाद दूसरा इंजेक्शन बूस्टर डोज लगता है। इसको चरणबद्ध तरीके से करना पड़ता है। बूस्टर डोज लगाने के बाद फिर दूसरे गांव का चयन करना पड़ता है। एक लेदर बेल्ट कुत्ते के गले में डालते हैं ,जिसमें आईडी नंबर डाला जाता है। जिससे हमें पता चल जाए कि इसमें बूस्टर डोज लगा है इसमें नहीं लगा है । अगर पहली बार लगाया है तो ब्लड सैंपल लेते हैं उनमें कोई ऐसी बीमारी है जो मानव के लिए घातक है या किसी दूसरे जानवर के लिए घातक है तो उसे कुत्ते को फिर हम अलग कर देते हैं। क्योंकि गले में आईडी नंबर पड़ा है तो उससे पकड़ में आ जाता है |
पन्ना टाइगर रिजर्व :
५७६ वर्ग किमी पन्ना और छतरपुर जिले में फैला पन्ना टाइगर रिजर्व १९८१ में पन्ना राष्ट्रीय उद्यान के रूप में स्थापित हुआ | १९९४ में इसे टाइगर रिजर्व के रूप में मान्यता मिली | २००८ में बाघ विहीन हो चुके इस रिजर्व में २००९ से बाघ पुनर्स्थापना का कार्य शुरू हुआ ,और आज यहाँ लगभग ९० बाघ हैं | जो इसके क्षेत्रफल से ज्यादा हैं | बाघ के साथ अब यह टाइगर रिजर्व तेंदुआ और गिद्धों के लिए भी जाना जाने लगा है | प्रदेश को तेंदुआ स्टेट का दर्जा दिलाने में यहां की प्रमुख भूमिका रही यहाँ ५७३ तेंदुआ पाए गए जो प्रदेश के किसी पार्क में सबसे ज्यादा हैं | बायोडायवर्सिटी के लिहाज से पन्ना दुनिया के प्रमुख टाइगर रिजर्व के रूप में जाना जाता है |