भगवान बिरसा मुंडा जी की जयंती के उपलक्ष्य में बुन्देलखण्ड के आदिवासी राजाओं के राजवंश एवं नागवंशीय क्षत्रियों का इतिहास द्वारा सुर्यभान सिंह परमार पर्यावरण एवं बुन्देलखडं इतिहास बेत्ता
दीपक शर्मा
पन्ना १७ नवंबर ;अभी तक ; पौराणिक साक्ष्य के अनुसार तीसरी तथा चौथी सदी में नागवंशीय राजाओं का अधिकार क्षेत्र विदिशा से लेकर मथुरा तक का समूचा क्षेत्र था इन्होनें कुषाणों का प्रतिरोध किया था तथा उनके उनमूलन के लिए 10 अश्वमेघ यज्ञ किये थे प्राचीन जन श्रृति के अनुसार भारत के गौढ़ राजा अपने आप को नागवंशीय क्षत्रिय मानते थे जो कि यर्थात किसी हद तक सत्य है।
नागवंशीय क्षत्रिय उत्थान और पतन पृकृति के दो अटल नियम हैं पहले प्राचीन समय के इतिहास के अनुसार हर्षवर्धनकाल से ही तथा उसके पूर्व से ही पूरा भारत सहित विश्व के सभी देश राजाओं के आधीन थे इसी तारतम्य में हजारों राज्यबंशों का उत्थान हुआ और पतन हुआ और कुछ तो राज्यबंश समूल नष्ट हो गये इसी प्रकार चौथी सदी के बाद नागबंशीय क्षत्रीयों का पतन हो गया जो फिर से 13वीं शताब्दी में संगठित होकर उदित हुआ। 13वीं शताब्दी पश्चात चन्द्रवंशी चन्देल राजाओं का पतन प्रारंभ हो गया उनकी राजसत्ता के खण्डहरों पर गौड़बशी राजाओं की नई पौध जमने लगी थी तथा गौड़ बशी राजा अपने को नागबंशीय क्षत्रीय मानते थे मध्य युग में बुन्देलखण्ड जनपद में धसान नदी से लेकर नर्मदा तक अर्थात धसान नदी के पूर्व-दक्षिण भू भाग में गौड़वानी सत्ता स्थापित हो गई थी.
गौड़ राज्य की मूल राजधानी तो (गढ़ा जबलपुर) में स्थापित थी परन्तु उत्तर पश्चिमी गौड़वानी राज्य बुन्देलखण्ड क्षेत्र में था उसकी राजधानी खटोला नगर थी खटोला राज्य की बोली खटोली गौड़वानी थी राजा बटुलिया राजगौड़ कहलाते थे वर्तमान समय में खटोलानगर एवं किला ध्वस्त एवं खण्डहर हाल में है यह किला 15वी शत्बादी में सूरजशाह गौड़ राजा ने बनवाया था यह किला छतरपुर जिले में बड़ा मलहरा से लगभग 20 कि. मी. की दूरी पर स्थित है खटोला राज्य धसान एवं सोनार नदी के मध्य भू भाग तक फैला था सूरजशाह गौड़ राजा ने धामोनी, शाहगढ़, गढ़पहरा, राहतगढ़, बटियागढ़, जोधपुर और हटा में किलों की स्थापना की खटोला राज्य गौड़ों की गढ़ियों इस बात का प्रतीक है कि गौड़वानी राज्य में भी मऊसहानिया शक्ति का केन्द्र रहा है।
मऊसहानिया 1649 ईशवी से लेकर 1731 ईशवीं तक महाराजा छत्रसाल बुन्देला की कर्मभूमि रही है। मुगल सम्राट औरंगजेब ने अपने सेनापति फिदाई खीं को 75 हजार फौजों के साथ बुन्देलखण्ड के हिन्दू मन्दिरों को गिरवाने का आदेश जारी किया तथा हिन्दूओं को मुसलमान बनाना एवं स्लाम धर्म कबूल करवाने का फरमान जारी कर दिया इस पर बुन्देलखण्ड के गौड़ राजा तथा जागीरदार एवं समाज के प्रत्येक वर्ग ने महाराजा छत्रसाल का साथ दिया तथा ग्वालियर के पास कालीसिंध नदी के तट पर मुगलों का तथा महाराजा छत्रसाल सहित हिन्दूओं का भारी युद्ध हुआ जिसमें 23 हजार मुगल सैनिक तथा 17 हजार बुन्देला सैनिक मारे गये।
बुन्देलाओं नें मुगल सेना को पराजित किया तथा मुगल सम्राट की 11 तोपें ढेरों हथियार गोला बारूद हाथी घोड़े छीन लिए और बुन्देलखण्ड के हिन्दू धर्म की रक्षा हुई। उसी समय गौड़राजा नरेन्द्रशाह क्षत्रसाली सेना में शाहनगर से गौड़ मवासी कोल फौजों के साथ मिल गया उसके मिलने से महाराजा छत्रसाल को गढ़पहरा (सागर), हटवा. रहली, खिमलासा, शाहगढ़, शाहनगर, गढ़ाकोटा (दमोह) हटा और मढ़ियादीह के महत्वपूर्ण किले प्राप्त हुए क्यों कि गौड राजाओं के किलों तथा गढ़ियों पर उस वक्त मुगल सम्राट औरंगजेब के किलेदारों फौजदोरों सेनापतियों द्वारा कब्जा कर लिया गया था इसमें धामोनी का किला सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण था। 17वीं शताब्दी में चन्द्रनगर के पास गौड़ राजाओं द्वारा बनवाया गया राजगढ़ का महल गौड़ राजाओं के ऐशवर्य की गाथा गाता है। महाराजा छत्रसाल में एक रियाशत के राजा बनने की नियत से स्वामी प्राणनाथ के दिये गये निर्देशानुसार पन्ना के गौढ़ राजा सबलशाह पर चढ़ाई करके उसे रियाशत से बेदखल कर दिया था और स्वयं राजा बन गए तथा बुन्देली राज्य पन्ना रियासत को शक्तिशाली बनाकर बुन्देलखण्ड राज्य की सीमायें चारों दिशाओं में बढ़ाकर एक शक्तिशाली बुन्देला सम्राज्य स्थापित किया था। 110 ईसा पूर्व शेष दात नांग राज की राजधानी विदिशा थी ब्रिटिश म्यूजियम में स्खखे सिक्कों से पता चला है पुरातन समय में फैला था अमेरिका का दूसरा नाम पाताल लोक (नागलोक) कहा जाता था। नागवंशीय राजाओं का वर्णन इस प्रकार है। इन राजाओं का अधिकार क्षेत्र भारत मिश्र, जापान, चीन, आष्ट्रेलिया तथा अमेरिका तक शेष दत नाग राजा, तक्षक नाग राजा वासुकि नाग राजा, नागराज आर्य, नाग राज इरावन प्रश्न देव, गन्धर्व, यक्ष, किन्नर और नाग आदि कौन है तथा कहाँ रहते हैं। देब जो दिव्य गुणों से युक्त हो वह देवता है सर्व प्रथम दिव्यताओं से परिपूर्ण आदि सृष्टि हिमालय के काश्मीर, मान सरोवर एवं तिब्बत के भू-भाग में हुई. इसीलिए इस क्षेत्र को देवलोक की संग्या दी गई। भगवान विष्णु उस मानसरोवर झील में अपना निवास, बनाकर ध्यानावस्थित हो गये जिसे बर्फीले दूध के समान जल वाला होने के कारण क्षीर सागर कहा गया। शंकर जी ने कैलाश में अपनी समाधि लगाई तो बृम्हा जी भी हिमालय में अपनी ज्ञान एवं ध्यान साधना में तल्लीन हो गये देवराज इन्द्र ने इन्द्रपुरी, तो कुबेर में अपनी अलकापुरी बसाई। गन्धर्व-गान विद्या में निपुण लोग गर्न्धव कहलाये। यक्ष जब सृष्टि का विस्तार हुआ तो उसमें जो धनवान लोग थे वो यक्ष कहलाये। नाग किसी कारण से पतित हो जाने वाले आर्य दक्षिण भारत में भेज दिये जाते च जो धीरे-धीरे वैदिक संस्कारों से हीन हो गये। वे ही कालांतर में कपि, नाग, असुर, दैत्य, राक्षस आदि नामों से जान गये धीरे-धीरे ये समुद्र तटीय भागों, समुद्रीय द्वीपों तथा अमेरिका आदि तक में फैल गये इस प्रकार पौराणिक ग्रन्थों में नागों को पाताल वासी अर्थात अमेरिका वासी भी कहा गया है। नागवंशीय क्षत्रिय सारिक शरीर वाले मान जाते थे वे अपनी ईच्छा के अनुसार भोगेश्वर की कृपा से शरीर धारण कर लेते थे इन्हे साधारण करना एवं इसी रूप में विचरण करना पसंद था इसलिए इन्हे नागों की संज्ञा दी गई।