जातीय समीकरणों वाला विधानसभा क्षेत्र बंडा 

8:08 pm or July 30, 2023

रवीन्द्र व्यास

                                                          बंडा   विधानसभा क्षेत्र   जातीय समीकरणों  वाला विधान सभा क्षेत्र है |   यहाँ  के  राजनैतिक  हालात  बीजेपी के लिए अनुकूल जनसंघ के समय से ही रहे  है |  बीजेपी भले ही कांग्रेस को परिवारवाद के लिए कोसती नजर आये पर यहां परिवारवाद को बीजेपी द्वारा ही प्रोत्साहन दिया गया है इस बात का बड़ा असर २०१८ के चुनाव में भी दिखा |  तरबर सिंह लोधी ने कांग्रेस से टिकट लेकर बीजेपी के वोट बैंक में बड़ी सेंध लगाईं और विधायक बने बीते एक वर्ष से यहां  के मतदाताओं में जातीय आधार पर घृणा का वातावरण बनाने का कार्य किया जा रहा है इसके पीछे सीधा उद्देश्य यही बताया जा रहा है कि एक बिरादरी का ही इस सीट पर कब्जा हो दरअसल इस विधान सभा क्षेत्र में विकाश से ज्यादा जातीय समीकरण अधिक प्रभावी हो गए हैं |

                                         मध्यप्रदेश के  सागर   जिले का   बंडा  विधानसभा  क्षेत्र दमोह लोकसभा की विधान सभा सीट है   1952 से  ही  इस  विधानसभा सीट पर जनसंघ ने अपनी उपस्थिति का अहसास करा दिया था    1977 से अब तक हुए दस चुनावों में यहां बीजेपी का  पलड़ा भारी  रहा है 6  बार बीजेपी तो 4  बार कांग्रेस चुनाव जीती है १९५२ और १९६७ में यहाँ से कांग्रेस ने चुनाव जीता था | 1962 से 1967  तक लगातार यहां से जनसंघ के प्रत्याशी चुनाव जीतते रहे |  इस विधानसभा सीट पर बीजेपी के राठौर परिवार का ही कब्जा रहा है चार बार हरनाम सिंह राठौर और एक बार उनके  पुत्र हरवंश राठौर ने चुनाव जीता  77 में यहाँ से बीजेपी नेता शिवराज सिंह चुनाव जीते थे | 2018 में कांग्रेस के तरबर सिंह ने बीजेपी के हरवंश सिंह राठौर को 24164 मत  से हराया था   2018  में  यहां से कांग्रेस के तरबर सिंह लोधी चुनाव  जीत  कर विधायक बने कभी उमा भर्ती के ख़ास रहे तरबर सिंह की भी बीजेपी में वापसी की ख़बरें खूब चली थी यहाँ तक कि  उमा भारती ने भी उनकी वापसी की उम्मीद जताई थी कांग्रेस में वे अकेले लोधी नेता माने जाते हैं |

                                          बंडा विधानसभा क्षेत्र  सागर जिले का और बुंदेलखंड का खनिज सम्पदा से सम्पन्न क्षेत्र माना जाता है |   यहाँ काले पत्थर की खदाने हैं यहां से निकला काला पत्थर  दुनिया के अनेकों देशों में जाता  हैं ,| यहां के शाहगढ़ और हीरापुर क्षेत्र में रॉक फास्फेट ,और लोह अयस्क के भंडार हैं |  कुछ वर्ष पहले इस इलाके में यूरेनियम भण्डार की खोज के लिए भी कार्य हुए थे ग्रामीण क्षेत्र  वाले  बंडा  विधानसभा क्षेत्र   में बंडा और शाहगढ़ ही   नगर पंचायत क्षेत्र हैं |  यह विधान सभा क्षेत्र छतरपुर टीकमगढ़ और दमोह जिले से लगा हुआ है |   2 लाख 37 हजार 762  मतदाता वाले इस विधान सभा क्षेत्र में

                                              1 लाख 2 7 हजार 280 पुरुष 1 लाख 10  हजार 482 महिला और ३ अन्य मतदाता हैं। पिछड़ा वर्ग बाहुल्य इस विधानसभा क्षेत्र में  हर चुनाव में जातीय समीकरण चरम पर रहे  कांग्रेस से जहां वर्तमान विधायक तरवर सिंह लोधी प्रबल दावेदार हैं वही यहां से पूर्व विधायक नारायण प्रजापति भी दावेदारी ठोक  रहे हैं बीजेपी से हरवंश सिंह राठौर सुधीर यादव के नाम प्रमुखता से लिए जा रहे हैं २०१८ का चुनाव सुधीर यादव ने सुरखी  से लड़ा था जहां वे गोविन्द सिंह से चुनाव हार गए थे  बंडा के जातीय समीकरण को देख कर वे अब यहां से दावे दारी कर रहे हैं  

                                     देखा जाए तो  बंडा   विधानसभा क्षेत्र   जातीय समीकरणों  वाला विधान सभा क्षेत्र है |   यहाँ  के  राजनैतिक  हालात  बीजेपी के लिए अनुकूल जनसंघ के समय से ही रहे  है |  बीजेपी भले ही कांग्रेस को परिवारवाद के लिए कोसती नजर आये पर यहां परिवारवाद को बीजेपी द्वारा ही प्रोत्साहन दिया गया है इस बात का बड़ा असर २०१८ के चुनाव में भी दिखा |  तरबर सिंह लोधी ने कांग्रेस से टिकट लेकर बीजेपी के वोट बैंक में बड़ी सेंध लगाईं और विधायक बने बीते एक वर्ष से यहां  के मतदाताओं में जातीय आधार पर घृणा का वातावरण बनाने का कार्य किया जा रहा है इसके पीछे सीधा उद्देश्य यही बताया जा रहा है कि एक बिरादरी का ही इस सीट पर कब्जा हो दरअसल इस विधान सभा क्षेत्र में विकाश से ज्यादा जातीय समीकरण अधिक प्रभावी हो गए हैं | 2003 से इस विधान सभा में बसपा ने भी अपनी प्रभावी उपस्थिति दर्ज कराई है | 2003 में 4. 6 फीसदी वोट पाने वाली बीएसपी ने जब   2008 के चुनाव में 15. 51 फीसदी वोट लिए तो कांग्रेस और बीजेपी दोनों के ही वोट बैंक में जबरदस्त कमी देखने को मिली थी इस समीकरण के कारण बीजेपी हार भी गई थी |

  बंडा  विधानसभा सीट पर  जातीय समीकरण किस तरह से प्रभावी होते हैं इसकी बानगी 1985 में देखने को मिली  |  1977 में यहां से चुनाव जीते शिवराज सिंह लोधी (शिवराज भैय्या) जब 1980 का चुनाव हार गए तो   बीजेपी ने 1985 में यहां के बड़े कारोबारी हरनाम सिंह राठौर को टिकट दिया था हरनाम सिंह को टिकट देने के बाद भी बीजेपी को यह डर  था कहीं यहां के बहुसंख्यक लोधी मतदाता  पार्टी से दूर ना हो जाए  ,जिन पर शिवराज सिंह की गहरी पकड़ है , |  इसी के चलते बीजेपी ने शिवराज सिंह को पड़ोस की छतरपुर जिले की  बड़ामलहरा सीट से बीजेपी का प्रत्यासी बनाया  | बड़ामलहरा सीट भी लोधी बाहुल्य मानी जाती है जिसका लाभ बीजेपी को दोनों विधान सभा सीट पर मिला |

खनिज सम्पदा से परिपूर्ण  बंडा विधानसभा क्षेत्र  अपनी उपेक्षा का दंश  दशकों से झेल रहा है   |  यहाँ के काले पत्थर की खदानो से  निकला  पत्थर  दुनिया के अनेकों देशों में जाता  हैं यहां के शाहगढ़ और हीरापुर क्षेत्र में रॉक फास्फेट ,और लोह अयस्क के भंडार हैं कुछ वर्ष पहले इस इलाके में यूरेनियम भण्डार की खोज के लिए भी कार्य हुए थे यहां के  ग्रामीण क्षेत्र की आबादी पूर्णतः कृषि और  मजदूरी पर आश्रित है |  विधान सभा क्षेत्र में व्यापार मुख्यतः जैन कारोबारियों का है  || मजदूरी के लिए यहाँ से बड़ी संख्या में लोग पलायन  करते हैं |

 बंडा के अब तक के विधायक 

 2018    तरबर सिंह    _ कांग्रेस  

 2013,    हरवंश  सिंह राठौर बीजेपी

  2008:   नारायण प्रजापति  _कांग्रेस

2003 :– हरनाम सिंह राठौर बीजेपी

1998: हरनाम सिंह राठौर  _ बीजेपी

1993 _ संतोष कुमार साहू कांग्रेस

 1990 _ हरनाम सिंह राठौर  _ बीजेपी

1985 _हरनाम सिंह राठौर  _ बीजेपी

 1980 प्रेम नारायण _कांग्रेस

1977 शिवराज सिंह जपा

1972 श्री कृष्ण सेलट कांग्रेस

1967: रामचरण .पुजारी, _ जनसंघ

1962 _ रामचरण पुजारी जनसंघ

1957 _ स्वामी कृष्णानंद रामचरण, _ कांग्रेस

195२ स्वामी कृष्णानंद रामचरण, _ कांग्रेस

 लोकतंत्र का महापर्व  यहां भी सिर्फ मत देने तक ही सीमित रहा है  | आजादी के बाद से ही यह इलाका  ,बेरोजगारी की  समस्या से जूझ रहा है शिक्षा स्वास्थ्य ,और बिजली की समस्या अपनी जगह है स्वास्थ्य के मामले में तो यहां यह कहा जाने लगा है की यहां का सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र सिर्फ रेफर करने के लिए है बाईट दो दशकों में यहां काम तो हुए ,पर प्रशासनिक उदासीनता के बाद यहां के लोगों को उसका लाभ उतना नहीं मिल सका |

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