जीवन में स्वाध्याय का महत्व समझे-श्री पारसमुनि

6:09 pm or September 17, 2023

महावीर अग्रवाल

मन्दसौर १७ सितम्बर ;अभी तक;  मनुष्य को अपने जीवन में स्वाध्याय के महत्व को समझना चाहिये। अच्छे साहित्य केा पढ़ना और उस पर चिंतन मनन करने से मनुश्य के ज्ञान, दर्शन व चरित्र में वृद्धि होती है। आजकल जो शिक्षा पद्धति में बच्चां को पढ़ाया जा रहा है वह केवल किताबी ज्ञान है किताबी ज्ञान व स्वाध्याय में बहुत अंतर है।

                                 उक्त उद्गार परम पूज्य जैन संत श्री पारसमुनिजी म.सा. ने जैन दिवाकर स्वाध्याय भवन शास्त्री कॉलोनी में पर्युषण पर्व के छठवें दिवस आयोजित धर्मसभा में कहे। आपने रविवार को धर्मसभा में कहा कि जो शिक्षा मनुष्य को हित का उपदेश दे वही शिक्षा वास्तव में शिक्षा है। लेकिन आजकल हम शिक्षा का सही स्वरूप भुलते जा रहे है। ज्ञानीजनों ने कहा कि केवल पुस्तके पढ़ना ही स्वाध्याय नहहीं है। स्वाध्याय के पांच भेद है जो हम ज्ञान स्वाध्याय से प्राप्त करे हम वह दूसरांे को भी बताये ताकि दूसरों का भी हित हो। आपने कहा कि जो पड़ा है उसे चिंतन करो जो तुम्हें समझ में न आये उसे डायरी में नोट करे और ज्ञानीजनों से उस संबंध में पूछकर उसका समाधान करे। यदि हम ऐसा स्वाध्याय करेंगे तो निश्चित ही हमारे लिये स्वाध्याय हितकारी बन जायेगा।
                           जो जीवन में विकृतियां दिखाये वह शिक्षा नहीं अज्ञानता है- संतश्री ने कहा कि जो शिक्षा मनुष्य को हित का उपदेश दे वही शिक्षा है जो शिक्षा झूठ बोलना, केवल कमाना खाना सिखाये वह शिक्षा नहीं विकृति है। आज की शिक्षा पद्धति स्वार्थ को सिखाती है, विवेक रखे।
                              पूण्य व शुभ कामों को कल पर मत छोड़ो- पारसमुनिजी ने कहा कि श्री कबीरदासजी ने पुण्य व शुभ कामों को कल पर नहीं टालने व आज ही पूरा करने की बात कही है। जिन कामों को करने में पुण्य संचय हो तथा शुभ फल प्राप्त हो वह तत्काल करे।
                              अनासक्ति का भाव रखे- संत श्री अभिनंदनमुनिजी ने कहा कि आसक्ति जीवन को भटकाती है। जीवन में तुम जिससे मोह रखते हो वास्तव में वे दूसरे की अमानत मे है। बेटा बहू की, बेटी दामाद की, शरीर शमशान की अमानत है। इसलिये जीवन मे अनासक्ति के भाव जानने का प्रयास करे। इसी में मनुष्य का हित है। धर्मसभा के पश्चात् हीरालाल बापूलाल मेहता के द्वारा प्रभावना वितरित की गई।