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*कश्मीर; नेहरू जी ने महाराजा हरि सिंह को ब्लैकमेल किया था * 

*रमेशचन्द्र चन्द्रे*
    मन्दसौर  ११ मार्च ;अभी तक;  भारत आजाद हुआ तो पाकिस्तान अलग देश बन गया। पाकिस्तान के संस्थापक मुहम्मद अली जिन्ना की नजर कश्मीर पर पहले से ही थी। उसे  लगता था कि कश्मीर मुस्लिम बहुल है, इसलिए उस पर पाक का हक होना चाहिए। उसने जम्मू-कश्मीर में कबायलियों से हमला करवाया। 24 अक्टूबर 1947 को तड़के हजारों कबायलियों ने राज्य पर हमला बोल दिया। ऐसे में, महाराजा हरि सिंह ने भारत से मदद मांगी। लेकिन तब तक क्योंकि जम्मू-कश्मीर का भारत संग विलय नहीं हुआ था, ऐसे में गवर्नर-जनरल माउंटबेटन ने साफ कर दिया कि भारतीय सेना कश्मीर की मदद नहीं कर सकती।
                                      इसलिए 26 अक्‍टूबर 1947 को तत्‍कालीन महाराजा हरि सिंह ने स्थितियों को देखते हुए राज्‍य के भारत में विलय के लिए एक कानूनी दस्‍तावेज पर साइन किया था। इस दस्‍तावेज, जिसे ‘इंस्‍ट्रूमेंट ऑफ एक्‍सेशन’ कहा गया, उन्‍होंने इस दस्‍तावेज को भारतीय स्‍वतंत्रता कानून 1947 के तहत ही साइन किया था। इसे साइन करते ही महाराजा हरि सिंह जम्‍मू-कश्‍मीर को भारत के प्रभुत्‍व वाला राज्‍य मानने पर सहमत हो गए थे।
                                इस विलय के साथ ही इंडियन आर्मी ने जम्‍मू-कश्‍मीर में मोर्चा संभाल लिया था। 27 अक्टूबर को भारतीय फौजें श्रीनगर पहुंच गईं। उन्होंने कश्मीर को हमलावरों से आजाद करवाया। महाराजा हरि सिंह 25 अक्‍टूबर की रात दो बजे श्रीनगर से जम्‍मू के लिए रवाना हुए थे। 26 अक्‍टूबर को एक कैबिनेट मीटिंग हुई, उस मीटिंग में तत्‍कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने कहा कि कश्‍मीर के विलय को लोगों का समर्थन भी मिलना चाहिए। बस यही से नेहरू जी ने ब्लैकमेलिंग शुरू की।
                         भारत में विलय को स्‍वीकार कर लिया किंतु नेहरू जी के इशारे पर 27 अक्‍टूबर को महाराजा हरि सिंह को एक चिट्ठी भेजी गई। इस चिट्ठी में उस समय के गर्वनर-जनरल लॉर्ड माउंटबेटन ने जम्‍मू-कश्‍मीर के भारत में विलय को स्‍वीकार कर लिया था। माउंटबेटन ने लिखा था कि उनकी सरकार चाहती है कि जैसे ही राज्‍य से घुसपैठियों को हटाया जाए, इस विलय को जनता के मत से मान्‍यता मिले। तब एक जनमत संग्रह पर राजीनामा हुआ जिसमें कश्‍मीर के भविष्‍य का फैसला होना था। और इसी जनमत संग्रह ने भारत और पाकिस्‍तान के बीच विवाद पैदा कर दिया । भारत आज भी कहता है कि विलय बिना किसी शर्त पर हुआ था और अंतिम था। वहीं पाक इस विलय को धोखा करार देता है।
                               जब महाराजा हरि सिंह ने  कश्मीर राज्य को भारत संघ में विलय का प्रस्ताव नेहरू के सामने रखा तो नेहरू जी ने उसे इसी शर्त पर स्वीकार किया था कि, उस समय राजा हरि सिंह के विरुद्ध के शेख अब्दुल्ला द्वारा जमीनों को लेकर आंदोलन चलाया गया था उससे क्रोधित होकर महाराज ने शेख अब्दुल्ला को जेल में डाल दिया था तो जवाहरलाल नेहरू ने उनकी रिहाई की शर्त पर ही  कश्मीर के विलय को स्वीकार किया और बाद में जवाहरलाल नेहरू ने महाराजा पर दबाव डालकर शेख अब्दुल्ला को 1948 में कश्मीर का प्रधानमंत्री बनवा दिया।
                            इस तरह प्रारंभ से ही पंडित जवाहरलाल नेहरू ने लॉर्ड माउंटबेटन से सांठ-गाँठ कर तथा हो सकता है कि मोहम्मद अली जिन्ना के अप्रत्यक्ष इशारे से सहमत होकर कश्मीर के महाराजा हरी सिंह जी को ब्लैक मेल करके शेख अब्दुल्ला पर मेहरबानी की इससे यह सिद्ध होता है कि नेहरू किस तरह तुष्टिकरण की हद तक जाने वाला व्यक्ति था। धारा 370 नेहरू की मजबूरी नहीं बल्कि शेख अब्दुल्ला की इच्छा से स्थापित की गई थी।

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