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गुरू के प्रति विनय व समर्पण का होना जरूरी-साध्वी श्री अर्हताश्रीजी
महावीर अग्रवाल
मन्दसौर ३ जुलाई ;अभी तक; गुरू के प्रति विनय व समर्पण का भाव होना जरूरी है, गुरू के आदेश का पालन हमें पूर्ण विनय व समर्पण के भाव से करना चाहिये। गुरू के प्रति सच्ची श्रद्धा व समर्पण रखते हुए हम गुरू को अपना पूरा जीवन समर्पित करेंगे तो हमारा जीवन सार्थक होगा।
उक्त उद्गार परम पूज्य जैन साध्वी श्री अर्हताश्रीजी म.सा. ने चौधरी कॉलोनी स्थित रूपचांद आराधना भवन में आयोजित धर्मसभा में कहे। आपने सोमवार को गुरू पूर्णिमा पर्व के उपलक्ष्य में आयोजित विशेष धर्मसभा में कहा कि यदि जीवन में गुरू के प्रति समर्पण व आदर के भाव नहीं है तो जीवन सद्मार्ग की ओर प्रवृत्त नहीं हो सकता। हमें गुरू की आज्ञा का पालन किन्तु परन्तु किये बिना अक्षरतः करना चाहिये क्योंकि गुरू बिना कारण के कोई आदेश नहीं देते है। आपने कहा कि जिस प्रकार गिली मिट्टी को चाक पर रखकर कुम्हार सुंदर बर्तन बना देता है उसी प्रकार गुरू हमारे जीवन को अपनी परीक्षा की कसौटी पर परखकर उसे पवित्र पावन मनुष्य बना देता है। आपने कहा कि गुरू बिना ज्ञान की प्राप्ति संभव नहीं है इसलिये जीवन में गुरू का महत्व समझे। आपने कहा कि हमारे विनय एवं समर्पण में स्वार्थ नहीं होना चाहिये। गुरू के चरणों में अपने को समर्पित करते हुए उनकी आज्ञा का पालन करना चाहिए तभी हमारा जीवन सार्थक होगा। आपने कहा कि हम जब भी गुरू वंदन करे हमारे शरीर के हाथ पैर व मस्तक पृथ्वी और झूके होना चाहिये। तभी गुरू वंदन की विधि पूर्ण मानी जायेगी। धर्मसभा में बड़ी संख्या में श्रावक श्राविकाओं ने साध्वीजी की अमृतमयी वाणी का लाभ लिया। धर्मसभा में गुरू पूजा की बोली एवं कथा शास्त्र विराने की बोली का लाभ पूनमचंद दिलीप डांगी परिवार ने लिया। संचालन मनोज जैन ने किया।