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चेटीचंड पर विशेष- *इस्लामिक देश और मुस्लिम परिवेश के बीच में भी हिंदू धर्म को सुरक्षित रखा सिंधु समाज ने
-रमेशचन्द्र चन्द्रे
*भगवान* झूलेलाल को वरुण देव भी कहा जाता है तथा वह जल के देवता है,और जल शीतलता का प्रतीक है, किंतु उसके अंदर विद्युत उत्पन्न करने की प्रचंड शक्ति है ठीक उसी प्रकार भारत के सिंधी समाज का स्वभाव भी जल की तरह शीतल है किंतु उसके बाद भी परिश्रम तथा व्यवसायिक सूझ-बूझ का आंतरिक विद्युत प्रवाह (अंडर करंट ) उनके तन मन में सक्रिय रहता है।
भारत विभाजन के पूर्व, सिंध प्रांत में सिंधी समाज के लोग एक अच्छे और जमे हुए व्यवसायी थे। जब भारत पर मुगल आक्रमण हुए तथा मुगलों का शासन काल जब अत्याचारों से भरपूर था उस समय भी मुस्लिम परंपराओं का आंशिक निर्वाह करके भी सिंधी समाज ने अपने हिंदुत्व और हिंदू धर्म को सुरक्षित रखते हुए आता- तायी मुस्लिम शासकों एवं समाज के बीच में भी सामंजस्य स्थापित करते हुए अपने व्यवसाय को सुरक्षित रखकर सिंध प्रांत में बड़े व्यापारी होने का गौरव प्राप्त किया था। क्योंकि विपरीत परिस्थिति में अपने धर्म की रक्षा करना और व्यवसायिक श्रेष्ठता प्राप्त करना दोनों ही बहुत कठिन कार्य है।
भारत विभाजन के पूर्व भी अपनी धार्मिक कट्टरता के कारण सिंधी समाज को मुस्लिमों का कोप भाजन बनना पड़ा और इसके पूर्व भी विदेशियों के भारत में जितने भी आक्रमण हुए वह सबसे पहले पंजाब और सिंध के दर्रों पर ही होते थे, इसके कारण उक्त दोनों प्रांतों के लोगों ने विदेशी आक्रमणकारियों की मार को बहुत झेला किंतु ऐसे सभी आक्रमणों का अपनी क्षमता और शक्ति के अनुसार निरंतर जवाब दिया और संघर्षरत रहे।
आज से 1177 साल पहले संवत 1007 में मिरक शाह नामक एक क्रूर शासक ने सिंध क्षेत्र और आसपास के इलाके में अत्याचारों की अति कर दी थी तथा अनेक निरपराध लोगों का कत्ल कर खून की नदियों को ऐसा बहाया जैसे वह मनुष्य जाति को पूरी तरह समाप्त करना ही चाहता था। उसके राज्य में ना तो धर्म का स्थान था और ना हीं मानवीय मूल्यों की सोच थी।
उक्त स्थिति में सिंध प्रांत के अनेक साधु- संत जो अत्यंत धर्मात्मा थे बनाई जमीदारों ने प्यासे रहकर सिंधु नदी के तट पर ईश्वर की आराधना करने लगे उन लोगों का दुख भरा आर्त- नाद सुनकर भगवान वरुण देव ने एक “नर मत्स्य” के ऊपर विराजमान दिव्य स्वरूप का दर्शन कराया और उसी समय एक आकाशवाणी हुई कि, “मैं ठाकुर रतन राय जी के यहां जन्म लेकर आपको “मीरक शाह” के अत्याचार से मुक्त करूंगा और इसी प्रकार चैत्र माह के कृष्ण पक्ष में संवत 1007 को मां देवकी के गर्भ से भगवान झूलेलाल ने जन्म लिया जिसे मारने के लिए मिरक शाह ने बहुत प्रयास किए किंतु झूलेलाल जी के प्रताप से शाह का महल जल कर राख हो गया और उसके अत्याचारी सैनिक भी ईश्वरीय चमत्कार से निस्तेज हो गए यह देख कर मिरक शाह को अपनी गलती कहा एहसास हुआ और वह भगवान झूलेलाल के समक्ष नतमस्तक होकर उनका भक्त बन गया।
सन 1947 में भारत विभाजन के समय पाकिस्तानी मुसलमानों ने सिंधी समाज के ऊपर बहुत अत्याचार किए, कत्लेआम किया, उनकी संपत्ति लूट ली गई और स्थाई संपत्ति पर बलात कब्जा कर लिया तथा उन्हें भागने पर मजबूर कर दिया। चारों तरफ अराजकता का माहौल देखकर उस समय सिंधी समाज के लोगों ने हिंदुस्तान की सीमा में प्रवेश करने का निश्चय किया तथा ट्रेन, बैलगाड़ी या अन्य कोई जो भी वाहन मिला उसमें बैठकर भारत आए तथा जिस परिवार को जो भी शहर अच्छा लगा उसमें वे बिना किसी सहारे उतर गए।
इस प्रकार गुजरात, राजस्थान तथा मध्य प्रदेश में उन्होंने अधिकांशत शरण ली थी।
जब ये यहां आए तब यहां के हिंदू समाज ने इन पर तत्काल विश्वास नहीं किया, किंतु उस समय राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, आर्य समाज, हिंदू महासभा और अन्य हिंदू संगठनों ने इनकी यथोचित सहायता की तथा इन्हें किराए से मकान भी दिलवाए।
उस समय संपूर्ण सिंधी समाज भयंकर गरीबी और बेरोजगारी के दौर से गुजर रहा था किंतु उन्होंने छोटे- मोटे व्यवसाय करके अपने परिवार का पोषण किया किंतु उस समय भी किसी सिंधी परिवार में भिक्षावृत्ति का सहारा नहीं लिया।
आज उनके परिश्रम और पुरुषार्थ का परिणाम है कि, सिंधी समाज एक उच्च वर्गीय व्यवसायी समाज के रूप में स्थापित हो गया है और राष्ट्रीय आय में उनका 11% का योगदान है।
वर्तमान समय में भारत के सिंधी समाज के अनेक लोग बड़े उद्योगपति तथा बड़े बड़े कारखानों के मालिक होने के साथ-साथ छोटे बड़े अनेक व्यवसाय करके मान- सम्मान और स्वाभिमान का जीवन व्यतीत कर रहे हैं। इसके साथ ही धार्मिक राजनैतिक तथा सामाजिक क्षेत्रों में भी सिंधी समाज के लोग नेतृत्व कर रहे है।
अपनी राष्ट्रवादी मानसिकता और हिंदुत्व के संस्कारों के साथ भारत में हिंदू धर्म की रक्षा में सदैव योगदान करने के लिए तत्पर रहते हैं इसलिए आज के इस चेटीचंड त्यौहार के अवसर पर संपूर्ण सिंधु- समाज का अभिनंदन है, स्वागत है!