प्रदेश

जातीय समीकरणों का इलाका दमोह लोकसभा क्षेत्र, अतीत के दोस्त आज के प्रतिद्वंदी 

रवीन्द्र व्यास
तीन जिलों में फैले  दमोह लोकसभा क्षेत्र बुंदेलखंड के उन क्षेत्रों में से एक है जिसका अपना एक ऐतिहासिक और पुरातात्विक महत्व है | बुंदेलखंड का होने के बावजूद यह इलाका बुंदेला शासकों के आधीन ज्यादा समय तक नहीं रहा | दमोह जिले का स्कन्द पुराण में भी  वर्णन मिलता है | कहते हैं कि स्वर्णमुखी (सुनार ) और व्याघ्रमा (व्यारमा ) नदियों के संगम पर  उदक्कल ( उड़ला )नामक स्थान पर भगवान् श्री कृष्ण के दीक्षा गुरु उपमन्यु के पिता  व्याघ्रपाद  ऋषि का  आश्रम था | आल्हा  के रचयिता जगनिक का जन्म स्थल भी दमोह जिले के सकौर गाँव  (12 वी सदी में ) था | आदमकाल से वर्तमान काल के समृद्ध इतिहास को समेटे दमोह जिला सियासत के बनते बिगड़ते समीकरणों का केंद्र है |

दमोह लोकसभा सीट जीतने के लिए 35 वर्ष से तरस रही कांग्रेस  

1962 में अस्तित्व में आई दमोह संसदीय सीट शुरुआत में  में  अनुसूचित जाति के आरक्षित की गई थी |  देश में यह कांग्रेस का दौर था और यहां से  कांग्रेस की सहोद्रा बाई राय  सांसद चुनी गई थी  |  1967 में यह   सीट सामान्य हो गई कांग्रेस के मणिभाई  जे पटेल सांसद चुने गए |  1971  का लोकसभा चुनाव यहाँ दिलचस्प रहा इस चुनाव में कांग्रेस ने पूर्व राष्ट्रपति वी वी गिरी के पुत्र वराहगिरी शंकर गिरी  को  प्रत्याशी बनाया वे एक दिन सिर्फ चुनाव प्रचार के लिए आये और चुनाव जीत  कर चले गए स्थानीय लोग बताते हैं कि  चुनाव प्रचार भी उन्होंने उड़न खटोले से किया था ,और ऊपर से पर्चे फेके थे |  आपातकाल के बाद  1977 में हुए  चुनाव में   जनता पार्टी के नरेंद्र सिंह जू  देव  सांसद चुने गए |  1980 में  कांग्रेस के प्रभुनारायण  और   1984  में कांग्रेस के ही डालचंद जैन यहां से सांसद चुने गए | १९८४ कांग्रेस की जीत का अंतिम चुनाव था , इस चुनाव में कांग्रेस को 51. 41 फीसदी और बीजेपी के नरेंद्र सिंह को 40 . 06 फीसदी वोट मिले थे |

 
 1989 के चुनाव से बीजेपी ने यहाँ जीत का जो सिलसिला शुरू किया अब तक बरकरार है |  1989 में बीजेपी  के लोकेंद्र सिंह(56. २९%) ने कांग्रेस के डालचंद्र जैन (३४.४९ %)को हराया था | 1991 में बीजेपी ने जातीय समीकरणों का गणित  साधना शुरू किया  और  रामकृष्ण कुसमरिया को प्रत्याशी बनाया | वे १९९१, १९९६ ,१९९८ ,और 1999 में यहां से चुनाव जीते | इन चार चुनावों में उन्हें औसतन ४६. फीसदी मत मिले | 2004 में बीजेपी ने चंद्रभान सिंह को प्रत्याशी बनाया उन्होंने 45. 98 फीसदी मत पाकर कांग्रेस के तिलक सिंह लोधी (29 . ९८%) को हराया | 2009 में बीजेपी के  शिवराज सिंह लोधी ने कांग्रेस के चंद्रभान भैया  को पराजित किया | असल में चंद्रभान जी टिकट ना मिलने से बीजेपी से नाराज हो गए थे और कांग्रेस के टिकट पर चुनावी मैदान में आ गये थे | 2014 और 2019 में यहां से बीजेपी के  प्रहलाद  पटेल ने कांग्रेस के प्रताप सिंह को  बड़े अंतर से हराया था | 
 
जीत के जतन                           

दमोह लोकसभा सीट को जीतने के लिए कांग्रेस ने  बंडा के पूर्व विधायक तरबर सिंह लोधी को प्रत्याशी बनाया है || यहां बीजेपी ने भी दमोह के पूर्व विधायक  राहुल भैया लोधी को प्रत्याशी बनाया है | दोनों ही माननीय २०१८ में कांग्रेस के टिकट पर विधायक चुने गए थे | सरकार बदली राहुल का दिल भी बदला और बीजेपी में आ गए , इसका उन्हें पुरस्कार भी मिला निगम के अध्यक्ष बन गए | उप चुनाव हुआ तो कांग्रेस के अजय टंडन से हार गए | बीजेपी ने उन्हें लोकसभा प्रत्याशी बनाया है , हालांकि इलाके में उनके प्रति लोगों की नारजगी कम नहीं  हुई है पर ये चुनाव मोदी के नाम पर लड़ा जा रहा है जिसका लाभ उन्हें मिल सकता है | 
 

 आठ विधानसभा क्षेत्रो वाले दमोह लोकसभा क्षेत्र में  सात विधान सभा क्षेत्रों में बीजेपी का कब्जा है तो मात्र छतरपुर जिले की बड़ामलहरा विधानसभा क्षेत्र में कांग्रेस का कब्जा है | सागर जिले की   देवरी रहली,  बंडा , दमोह जिले की पथरियादमोहजबेरा,और  हटा पर बीजेपी का कब्जा है | दमोह लोकसभा क्षेत्र को लोधी बाहुल्य सीट मानकर यहां कांग्रेस और बीजेपी दोनों ने ही लोधी बिरादरी के प्रत्याशी को मैदान में उतारा है |  जातीय समीकरणो में उलझे राजनैतिक दल यहां के सियासी समीकरणों  को  समझने में एक बड़ी चूक कर गए हैं | कांग्रेस के सामने एक अच्छा अवसर था जिसका वह प्रत्याशी चयन में लाभ लेने से चूक गई | 

तीन राहुल और दो तरबर चुनावी रण में 

 २६ अप्रैल को दूसरे चरण में होने वाले  चुनाव में यहां मतदान  होगा | नाम वापसी के बाद अब यहां १४ प्रत्याशी मैदान में रह गए हैं | जिनमे  बीएसपी  से इंजीनियर गोवर्धन राज ,भारत आदिवासी पार्टी से मनु सिंह मरावी ,गोंडवाना गणतंत्र पार्टी से राजेश सिंह सोयाम भारतीय शक्ति चेतना पार्टी से भैया विजय पटेल , निर्दलीय प्रत्याशी के टूर पर कांग्रेस और बीजेपी प्रत्याशी के मिलते जुलते नाम वाले  तरवर सिंह लोधी ,और  राहुल भैया , राहुल भैया , दुर्गा मौसी  नीलेश सोनी नंदन कुमार अहिरवाल  राकेश कुमार अहिरवार ,  वेद राम कुर्मी चुनावी मैदान में हैं |

कटनी जिले की  जनपद सदस्य   किन्नर अखाड़े की  पीठाधीश्वर दुर्गा मौसी भी यहां  से निर्दलीय चुनाव लड़ रही हैं |   कटनी जिले  मुड़वारा तहसील के कनवारा गांव से सरपंच चुनी गई थी सात साल सरपंच भी रही |  इसके बाद  दुर्गा  मौसी  मुड़वारा के क्षेत्र क्रमांक 11 चाका से जनपद सदस्य का चुनाव जीता था।

2019 में प्रयागराज में कुंभ के दौरान उन्हें किन्नर अखाड़े का पीठाधीश्वर बनाया था। इसके बाद हरिद्वार में महामंडलेश्वर की घोषणा की गई। किन्नर अखाड़े को जूना अखाड़े ने अपना समर्थन देकर शामिल किया था। इसमें बग्गी पर सवार होकर पेशवाई धूमधाम से निकाली गई थी। अमृत स्नान कराया गया था।

जीते सांसद 

1962   सहोद्रा बाई राय         कांग्रेस

1967   मणिभाई जे पटेल      कांग्रेस

1971   वराहगिरी शंकर गिरी  कांग्रेस

1977   नरेंद्र सिंह यादवेंद्र सिंह         जनता पार्टी

1980  प्रभु नारायण रामधन    कांग्रेस

1984  डाल चंद जैन   कांग्रेस

1989  लोकेंद्र सिंह    बीजेपी

1991   रामकृष्ण कुसमरिया   बीजेपी

1996  रामकृष्ण कुसमरिया   बीजेपी

1998  रामकृष्ण कुसमरिया   बीजेपी

1999  रामकृष्ण कुसमरिया   बीजेपी

2004  चंद्रभान सिंह लोधी    बीजेपी

2009  शिवराज सिंह लोधी    बीजेपी

2014   प्रहलाद सिंह पटेल    बीजेपी

2019   प्रहलाद सिंह पटेल    बीजेपी

Related Articles

Back to top button