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जो जैसा कर्म करता है, वैसा ही फल भोगता है- साध्वी श्री अर्हताश्रीजी

महावीर अग्रवाल

मन्दसौर २१ नवंबर ;अभी तक;  जैन धर्म कर्म सिद्धांत में विश्वास रखता है, प्रत्येक प्राणी कर्म बंधन से बंधा है जो जैसा कर्म करेगा उसे वैसा ही फल भोगना पड़ेगा। कोई भी प्राणी इससे मुक्त नहीं है यहां तक की तीर्थंकर भगवान को भी कर्म बंधन से मुक्त नहीं रखा है। प्रभु महावीर को अपने पूर्व भव के कर्म बंधन के कारण 27 भव लेने पड़े तथा अपनी दिशा के बाद साढ़े बारह वर्षों के अंतराल में जब तक उन्हें केवल ज्ञान नहीं हुआ, तब तक पूर्व भव के कर्मों के उदय के कारण कई उपसर्ग (कष्ट) सहन करने पड़े।
उक्त उद्गार परम पूज्य जैन साध्वी श्री अर्हता श्रीजी म.सा. ने रूपचांद आराधना भवन चौधरी कॉलोनी में आयोजित धर्मसभा में कहे। आपने रविवार को यहां आयोजित धर्मसभा में कहा कि प्रभु महावीर जब माता त्रिशला के गर्भ में आये उसके पूर्व उनके 27 भव हुये। वर्धमान के रूप में जन्मे महावीर को पूर्व भव के पापकर्म के कारण 27 बार जन्म मरण को प्राप्त होना पड़े। कोई भी मनुष्य कर्म बंधनों से नहीं बच सकता है। प्रभु महावीर ने पूर्व भव में अपने उच्च कुल का अहंकार किया तो उन्हें मरीची के रूप में निम्न कुल में जन्म लेना पड़ा। देवानंदा नाम की स्त्री के गर्भ में भी वे 82 दिन तक रहे इसलिये जीवन में अपने उच्च कुल में पैदा होने का अहंकार मत करो बल्कि उच्च कुल में जन्मे हो तो उसके अनुरूप आचरण करो। प्राणी मात्र के प्रति समता करूणा की भावना रखो। धर्मसभा में बड़ी संख्या में श्रावक श्राविकाओं ने साध्वी की अमृतमयी वाणी का धर्मलाभ लिया। धर्मलाभ के उपरांत संदीप कुमार नंदलाल धारीवाल परिवार की ओर से प्रभावना वितरित की गई। आयम्बिल कराने का धर्मलाभ अजीतकुमार सूरजमल छिंगावत परिवार ने लिया। संचालन प्रमोद जैन (नपा) ने किया।

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