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धन से सदैव तिजोरी भरी रहती है और मां लक्ष्मी कृपा प्राप्त होती है
महावीर अग्रवाल
मन्दसौर ३० अक्टूबर ;अभी तक ; दीपोत्सव की शुरुआत धनतेरस से होती है। छोटी दिवाली से एक दिन पहले धनतेरस के पर्व को मनाया जाता है। भारतीय ज्योतिष परिषद के जिला अध्यक्ष एवंं रतन श्री ज्योतिष एवं शोध संस्थान के संस्थापक प्रसिद्ध ज्योतिशाचार्य पं शिव प्रकाश जोशी ने बताया कि सनातन शास्त्रों में धनतेरस के पर्व का विशेष महत्व है। धार्मिक मान्यता है कि इस दिन भगवान धन्वंतरि, मां लक्ष्मी और भगवान कुबेर की उपासना करने से जातक को जीवन में कभी भी पैसों की कमी का सामना नहीं करना पड़ता है। साथ ही धन से सदैव तिजोरी भरी रहती है और मां लक्ष्मी कृपा प्राप्त होती है।
पंचांग के अनुसार, कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि की शुरुआत 29 अक्टूबर को सुबह 10 बजकर 31 मिनट पर होगी। वहीं, इसका समापन 30 अक्टूबर को दोपहर 01 बजकर 15 मिनट पर होगा। सनातन धर्म में सूर्योदय से तिथि की गणना की जाती है। ऐसे में 29 अक्टूबर को धनतेरस मनाया जाएगा|
धनतेरस पूजा विधि
धनतेरस के दिन सुबह जल्दी और उठें और स्नान करने के बाद साफ वस्त्र धारण करें। इसके बाद मंदिर की सफाई करें। सूर्य देव को जल अर्पित करें। चौकी पर मां लक्ष्मी, भगवान धनवंतरी और कुबेर जी की प्रतिमा को विराजमान करें। दीपक जलाकर चंदन का तिलक लगाएं। इसके बाद आरती करें। संग में भगवान गणेश की भी पूजा करें। कुबेर जी के मंत्र ओम ह्रीं कुबेराय नमः का 108 बार जप करें और धनवंतरी स्तोत्र का पाठ करें। इसके पश्चात मिठाई और फल समेत आदि चीजों का भोग लगाएं। श्रद्धा अनुसार दान करें। धार्मिक मान्यता है कि ऐसा करने से धन लाभ के योग बनते हैं और जातक को आर्थिक तंगी से छुटकारा मिलता है।
धनतेरस पर सामान खरीदारी के लिए उत्तम मुहूर्त दिन के सुबह 11 बजकर 09 मिनट से दोपहर 01 बजकर 22 मिनट तक रहेगा। इसके बाद खरीदारी का शुभ मुहूर्त दोपहर 02 बजकर 47 मिनट से शाम 07 बजकर 08 मिनट तक भी रहेगा। उसके बाद रात 08 बजकर 47 मिनट से पूरा रात आप घरेलू सामान को खरीद सकते हैं।
धनतेरस पर वृषभ काल और प्रदोष काल का समय- धनतेरस पूजा को करने के लिए इस दिन चौघड़िया मुहूर्त का विचार नहीं किया जाता है, क्योंकि वे मुहूर्त यात्रा के लिए उत्तम माने जाते हैं। धनतेरस के दिन लक्ष्मी-कुबेर पूजा को प्रदोष काल के दौरान करना अत्यंत शुभ माना गया है। प्रदोष काल सूर्यास्त के बाद प्रारंभ होता है और करीब ढाई घंटे तक रहता है। प्रदोष काल शाम 05:37 से रात 08:12 तक रहेगा। वृषभ काल शाम 06:30 से रात 08:26 तक रहेगा।
धनतेरस पर लक्ष्मी-कुबेर पूजन का समय- धनतेरस पर लक्ष्मी-कुबेर पूजन का शुभ मुहूर्त शाम 05 बजकर 34 मिनट से रात 07 बजकर 08 मिनट तक अति उत्तम रहेगा।
रूप चौदस, कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मनाई जाती है। यह दिवाली के पांच दिनी उत्सव का दूसरा दिन होता है। इसे छोटी दिवाली और नरक चतुर्दशी भी कहते हैं। हनुमान जयंती भी रहती है। 30 अक्टूबर 2024 बुधवार के दिन नरक चतुर्दशी का पर्व मनाया जाएगा। अगले दिन 31 अक्टूबर गुरुवार को सुबह 05:33 से 06:47 के बीच रूप चौदस का अभ्यंग स्नान होगा जिसका मुहूर्त है।
नरक चतुर्दशी और रूप चौदस के शुभ मुहूर्त:-
चतुर्दशी तिथि प्रारम्भ- 30 अक्टूबर 2024 को दोपहर 01:15 बजे से।
चतुर्दशी तिथि समाप्त- 31 अक्टूबर 2024 को दोपहर 03:52 बजे तक।
30 अक्टूबर पूजा का शुभ मुहूर्त:- शुभ मुहूर्त प्रात: 05:26 से 06:47 तक और इसके बाद शाम 05:41 से 07 बजे तक रहेगा।
31 अक्टूबर अभ्यंग स्नान का मुहूर्त:- प्रात: 05:33 से 06:47 बजे के मध्य।
31 अक्टूबर को चन्द्रोदय का समय- प्रात: 05:33 बजे।
अभ्यंग स्नान: प्रात: जल्दी उठकर अभ्यंग स्नान करने से सौंदर्य और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। इस दिन को रूप चौदस भी कहते हैं। इस दिन प्रातःकाल में सूर्योदय से पूर्व उबटन लगाकर नीम, चिचड़ी जैसे कड़ुवे पत्ते डाले गए जल से स्नान का अत्यधिक महत्व है। उक्त कार्य नहीं कर सकते हैं तो मात्र चंदन का लेप लगाकर सूख जाने के बाद तिल एवं तेल से स्नान किया जाता है। प्रात: स्नान के बाद सूर्यदेव को अर्ध्य दिया जाता है।
अभ्यंग स्नान 31 अक्टूबर को होगा। नरक चतुर्दशी पूजा: इस दिन शिव पूजा, माता कालिका, भगवान वामन, हनुमानजी, यमदेव और भगवान कृष्ण की पूजा करने से मृत्यु के बाद नरक नहीं जाना पड़ता है। विष्णु मंदिर और कृष्ण मंदिर में भगवान का दर्शन करना चाहिए। इससे पाप कटता है और रूप सौन्दर्य की प्राप्ति होती है।
कैसे करते हैं अभ्यंग स्नान?
प्रात:काल सूर्य उदय से पहले अभ्यंग (मालिश) स्नान करने का महत्व है।
इस दौरान तिल के तेल से शरीर की मालिश करनी चाहिए
उसके बाद अपामार्ग यानि चिरचिरा को सिर के ऊपर से चारों ओर 3 बार घुमाएं।
फिर उसको जल में मिलाकर उससे स्नान करें।
उबटन लगाकर नीम, अपामार्ग यानी चिचड़ी जैसे कड़ुवे पत्ते डाले गए जल से स्नान करें।
उक्त कार्य नहीं कर सकते हैं तो मात्र चंदन का लेप लगाकर सूख जाने के बाद तिल एवं तेल से स्नान किया जाता है।
स्नान करने के बाद दक्षिण दिशा में मुख करके हाथ जोड़कर यमराज से प्रार्थना करें।
ऐसा करने से मनुष्य द्वारा अब तक किए गई सभी पापों का नाश होकर स्वर्ग का रास्ता खुल जाता है।
लक्ष्मी पूजा दीपावली मुहूर्त 2024- 31 अक्तूबर
पंचांग के अनुसार हर वर्ष कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की प्रदोषव्यापिनी अमावस्या तिथि पर दीपावली का त्योहार मनाया जाता है। 31 अक्तूबर को लक्ष्मी-गणेश पूजन के लिए पहला शुभ मुहूर्त प्रदोष काल में ही प्राप्त हो रहा है।
31 अक्तूबर को प्रदोष काल शाम 05 बजकर 36 मिनट लेकर 08 बजकर 11 मिनट तक रहेगा। वहीं वृषभ लग्न (दिल्ली के समयानुसार) शाम 06 बजकर 25 मिनट से लेकर रात को 08 बजकर 20 मिनट तक रहेगा। ऐसे में गृहस्थ लोग इस समय के दौरान लक्ष्मी पूजन करें।
लक्ष्मी पूजा मुहूर्त ( निशीथकाल) 2024- 31 अक्तूबर
तंत्र-मंत्र साधना और तांत्रिक क्रियाओं के लिए निशीथ काल में पूजा करना ज्यादा लाभकारी माना जाता है। 31 अक्तूबर को निशीथ काल में पूजा करने लिए शुभ मुहूर्त रात 11 बजकर 39 मिनट से लेकर 12 बजकर 31 मिनट तक रहेगा।
स्थिर लग्न और प्रदोष काल में लक्ष्मी पूजन का महत्व
मां लक्ष्मी का प्रादुर्भाव प्रदोष काल में हुआ था और स्थिर लग्न में मां लक्ष्मी की पूजन करने से महालक्ष्मी स्थिर रहती हैं। ऐसे में दिवाली पर प्रदोष काल में पड़ने वाले वृषभ लग्न में ही महालक्ष्मी और भगवान गणेश का पूजन करना अति उत्तम रहेगा। पंचांग के अनुसार 31 अक्तूबर को वृषभ लग्न शाम को 6:25 से लेकर रात्रि 8:20 तक रहेगा। साथ ही इस समय प्रदोष काल भी मिल जाएगा। प्रदोषकाल, वृषभ लग्न और चौघड़ियां का ध्यान रखते हुए लक्ष्मी पूजन के लिए 31 अक्तूबर की शाम को 06:25 से लेकर 7:13 के बीच का समय सर्वोत्तम रहेगा। कुल मिलाकर 48 मिनट का यह मुहूर्त लक्ष्मी पूजन के लिए सर्वश्रेष्ठ रहेगा।
कब है गोवर्धन पूजा?
पंचांग के अनुसार, इस साल कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि का आरंभ 1 नवंबर 2024 को शाम 6:16 बजे से हो रहा है, और इसका समापन अगले दिन 2 नवंबर को रात 8:21 बजे होगा। ऐसे में उदयातिथि के आधार पर गोवर्धन पूजा का पर्व 2 नवंबर 2024 को ही मनाया जाएगा।
गोवर्धन पूजा का शुभ मुहूर्त
2 नवंबर 2024 को गोवर्धन पूजा का शुभ मुहूर्त प्रात: काल 6 बजे से लेकर 8 बजे तक है। इसके बाद दोपहर 03:23 बजे से लेकर 05:35 बजे के बीच भी गोवर्धन की पूजा की जा सकती है।
गोवर्धन पूजा के दिन प्रातःकाल स्नान आदि से निवृत्त होकर, गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत और श्री कृष्ण की मूर्ति बनाएं।
इसके बाद मूर्ति को फूलों और रंग से सजाएं और गोवर्धन पर्वत और भगवान श्री कृष्ण की पूजा करें।
इस दौरान भगवान को फल, जल, दीपक, धूप और उपहार अर्पित करें। साथ ही कढ़ी और अन्नकूट चावल का भोग लगाएं।
इस दिन गाय, बैल और भगवान विश्वकर्मा की पूजा का भी विधान है। पूजा करने के बाद गोवर्धन पर्वत की सात बार परिक्रमा करें। इस दौरान जल हाथ में लेकर मंत्र का जाप करें।
आखिर में आरती करके पूजा का समापन करें।
महत्व
पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार भगवान इंद्र ब्रिजवासियों से क्रोधित हो गए, जिसके बाद भारी बारिश होने लगी। ब्रजवासियों कोभगवान इंद्र के प्रकोप से बचाने के लिए श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी उंगली से उठा लिया और सभी ब्रजवासियों पर्वत के नीचे आकर संरक्षित हो गए। तभी से हर साल गोवर्धन पूजा का पर्व मनाया जाने लगा। इसे भगवान श्रीकृष्ण के प्रति आभार व्यक्त करने का दिन माना जाता है।
कार्तिक मास द्वितीया तिथि का आरंभ 2 नवंबर को रात में 8 बजकर 22 मिनट पर हो जाएगा और कार्तिक द्वितीया तिथि 3 नवंबर को रात में 10 बजकर 6 मिनट तर रहेगी। उदया तिथि में द्वितीया तिथि 3 नवंबर को होने के कारण भाई दूज का पर्व 3 तारीख को मनाया जाएगा। दरअसल, 3 तारीख को सुबह में 11 बजकर 39 मिनट तक सौभाग्य योग रहेगा। इसके बाद शोभन योग लग जाएगा। इसलिए भाई दूज के दिन पूजा के लिए सबसे उत्तम मुहूर्त 11 बजकर 45 मिनट तक रहेगा।
भाई दूज का महत्व
भाई दूज का पर्व हिंदुओं में प्रमुख और प्रसिद्ध त्यौहार है। भाई दूज भाई बहन के बीच मान सम्मान और प्रेम प्रकट करने का शानदार अवसर है। भाई दूज का धार्मिक महत्व भी है। भाई दूज का धार्मिक महत्व भी है। शास्त्रों के अनुसार, कार्तिक शुक्ल द्वितीया तिथि पर यम अपनी बहन के घर गए थे। वहां अपनी बहन द्वारा किए गए आदर सत्कार से प्रसन्न होकर वरदान दिया कि जो भाई बहन इस दिन यमुना में स्नान करके यम पूजा करेंगे। उसे मृत्यु के बाद यमलोक नहीं जाना पड़ेगा।