नागपुर कार्यालय भी संघ के नाम पर नहीं–डॉ. मोहन भागवत
मयंक शर्मा
खंडवा/ बुरहानपुर १७ अप्रैल ;अभी तक; पूरे भारत में संघ के नाम से कुछ नहीं है। संघ का कुछ नहीं है। कोई प्रॉपर्टी नहीं है। सबके लिए अलग-अलग न्यास है। संघ का जो कार्यालय नागपुर में है जिसे प्रधान कार्यालय कहते हैं, वह डॉ. हेडगेवार भवन भी संघ के नाम पर नहीं है। जो भी सर संघचालक होता है उसके नाम पर आ जाता है। बदलते रहता है। इसका मतलब मालकियत का भाव नहीं है। मेरी प्रॉपर्टी है ऐसा नहीं है। यह एक आत्मीयता के कारण हमसे जुड़ा है। संघ तो पूरे समाज को अपना मानता है। श्रेष्ठ के कार्यकर्ता कहते हैं कि संघ एक दिन समाज का रूप हो जाएगा। हिन्दू समाज ही संघ बन जाएगा। हमें पूरे समाज को संगठित करना है समाज में अपना संगठन नहीं खड़ा करना है।
यह बात राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सर संघचालक डॉ. मोहन भागवत ने बुरहानपुर के सरस्वती नगर में सोमवार को संघ के नवीन कार्यालय भवन समर्थ के लोकार्पण अवसर पर कही। उन्होंने कहा कि समाज का केंद्र हिन्दू ळै। मानव के बार-बार भय का सामना होने से वह भय परिणाम शून्य हो जाता है। स्वयंसेवक किसी भय की प्रेरणा से काम नहीं करता। निर्भय बनो यह संघ कहता है। उन्होने कहा कि कार्य के लिए सुविधा का पूरा उपयोग करना चाहिए, लेकिन सुविधा के लिए अपनी क्षमता कम नहीं होना चाहिए। सुविधा हमारी मालिक नहीं होना चाहिए।
डॉ. मोहन भागवत ने कहा कि अपनत्व के आधार पर संघ का कार्य चलता है। अपनत्व का अनुभव कार्यालय में आने वाले प्रत्येक व्यक्ति को होना चाहिए। कार्यालय है तो नियम, अनुशासन रहे। बंधन प्रतीत हो ऐसा नहीं होना चाहिए। संघ का काम ईश्वरी काम है, क्योंकि समाज को उन्नत करना, जोड़ना संघ का काम है। कहीं बुराई दिखे तो गुस्सा, घृणा से ज्यादा करूणा आना चाहिए। अगर हमारे बस में है तो उसे दूर करने का प्रयास करना चाहिए, और अगर नहीं हो सके तो उपेक्षा करना चाहिए।
डॉ. मोहन भागवत ने कहा कि हिन्दू इस देश के लिए जिम्मेदार है, क्योंकि वह मैजोरिटी में है। मैजोरिटी अच्छी होगी तो देश अच्छा बनेगा। उसे अच्छा रहना चाहिए। जितने देश दुनिया में बड़े बने तो उनके बड़े बनने और नीचे गिरने का कारण सामान्य समाज की गुणवत्ता और एकता में जितनी कमी आई तब नीचे गिरे। एक समय था जब जापान दुनिया का राजा था। बाद में जापान को एक समय अमेरिका के नियत्रंण में चलना पड़ा था। दुनिया के दो समाज शास्त्रियों ने अध्ययन किया। एक पुस्तक लिखी। बाद में जापान के गिरकर फिर उठने के 9 कारण उन्होंने बताए। उन्र्हाने कहा समाज का व्यक्ति को देश को आगे बढ़ाने में योगदान देता है। यह महत्वपूर्ण बात है। देश का काम ठेके पर देने से नहीं होता। पूरे समाज को संगठित होकर भेद और स्वार्थ भूलकर एक होना पड़ता है तब देश बड़ा होता है। पूरे 130 करोड़ का समाज संगठित हो।