प्रदेश
मतदान का प्रतिशत बढ़ाने के लिए अनुचित दबाव नहीं बनाये – नाहटा
महावीर अग्रवाल
मन्दसौर ७ मई ;अभी तक; पूर्व मंत्री नरेंद्र नाहटा ने मंदसौर संसदीय क्षेत्र के मंदसौर और नीमच जिला प्रशासन से मतदान बढ़ाने के लिए जा रहे प्रयासों पर पुनर्विचार करने का आग्रह किया है।
पिछले दिनो नीमच जिला प्रशासन ने व्यापारियों को मतदान करने वाले नागरिकों को उनके माल पर डिस्काउंट देने केलिए तैयार किया l एक सिनेमा हाल को सिनेमा देखने पर टिकिट में डिस्काउंट देने के लिए तैयार किया गया । श्री नाहटा ने कहा उनके पास यह सोचने का कारण है कि यह प्रशासनिक दबाव में किया गया है। ये व्यापारी स्वयं भी इसी घोषणा कर सकते थे।परंतु ऐसा तो नही हुआ ।अब मंदसौर जिला प्रशासन ने घोषणा की है कि जिन कारखानों में मजदूर वोट डालने नही जाएंगे उन पर ताला लगा दिया जाएगा। मतदान दिवस पर कारखाने में छुट्टी रखना कानूनन अनिवार्य है। यदि कोई कारखाना छुट्टी नहीं रखे तो उसके ऊपर वैधानिक कार्यवाही की जा सकती है।परंतु वह मजदूर को मतदान करने के लिए कैसे बाध्य कर सकता है। श्री नाहटा ने कहा उन्हें पूरा विश्वास है कि जिला प्रशासन ने ऐसा कोई लिखित आदेश नहीं निकाला होगा।
श्री नाहटा ने कहा मंदसौर संसदीय क्षेत्र में मतदाताओं की जागरूकता प्रदेश में एक उदाहरण रही है। 1998 के लोकसभा चुनाव में जब वे स्वयं कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार थे मंदसौर संसदीय क्षेत्र में हुआ मतदान ,प्रदेश में सर्वाधिक था। परंतु उसके बाद हुए विधान सभा चुनाव में मतदान का प्रतिशत उससे भी ज्यादा था।कांग्रेस पार्टी ने सदैव सर्वाधिक मतदान के लिए प्रशासन द्वारा किए गए प्रयासों का समर्थन किया है। परंतु इस बार का लोकसभा चुनाव पिछले चुनाव से भिन्न है।समूचे देश में मतदान का प्रतिशत गिरा है।गर्मी तो पिछले चुनावों में भी रही है।परंतु कभी भी मतदाता का मनोबल कमजोर नहीं हुआ। ऐसा इस बार ही क्यों हो रहा है।
प्रजातंत्र में मतदाता को अपनी भावना व्यक्त करने का तरीका है कि वह मतदान में भाग ले और अपनी राय को व्यक्त करे।फिर चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर नोटा की व्यवस्था की जिससे वह मतदाता जो किसी उम्मीदवार को भी पसंद नहीं करता वह भी अपनी राय व्यक्त कर सके।
परंतु भय और आतंक के वातावरण में मतदाता ने अपनी राय व्यक्त करने का एक और तरीका निकाला है कि वह वोट ही नहीं दे। इस परिस्थिति को चुनाव आयोग और राजनैतिक दलों को समझना पड़ेगा। इस परिस्थिति का संज्ञान लेते हुए चुनाव आयोग इस तथ्य को समझे कि उसकी भूमिका केवल आचरण संहिता लागू करने और चुनाव संपादन कराने की नही है इसके आगे भी है। भय के सामान्य वातावरण के अतिरिक्त अनेक स्थानों पर, सत्तारूढ़ दल के निर्वाचित या पराजित उम्मीदवार उन्हें मत नहीं देने वाले मतदाता को प्रताड़ित कर रहे है l मतदान नहीं करने का यह भी एक कारण है।मतदान का प्रतिशत बढ़ाने के लिए आंगनवाड़ी, आशा और उषा कार्यकर्ताओं का सहयोग लिया जा रहा है l कौन नहीं जानता कि किस तरह इन छोटे कर्मचारियों का उपयोग राजनैतिक हितों के लिए किया जाता रहा है। यह बात जनता भूली नहीं है कि पूर्व मुख्य मंत्रीजी की सभा में उपस्थिति बढ़ाने के लिए विभाग ने इन कार्यकर्ताओं को निजी साड़ी पहन कर आने के लिखित आदेश दिए थे. अब ये ही कार्यकर्ता महिलाओं को जाकर कह रही है कि यदि उनने वोट नहीं डाला तो उनकी शासकीय योजनाएं बंद कर दी जाएंगी.
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भले ही मुख्य चुनाव आयुक्त ईवीएम के बारे में संदेह व्यक्त करने वाले व्यक्तियों की अपने गढ़े गए शेर से मजाक उड़ा ले, परंतु इस तथ्य से इंकार नहीं कर पाएंगे कि, भले ही वह बहुमत में नहीं हो , मतदाताओं के एक बड़े वर्ग की विश्वसनीयता मशीनों को लेकर घटी है। चुनाव आयोग का दायित्व है कि वह उसे विश्वास में लेने के सार्थक प्रयास करें। चुनाव आयोग सुप्रीम कोर्ट के फैसले की आड़ मे इस तथ्य को नहीं छिपाए कि सुप्रीम कोर्ट ने सिंबल लोडिंग यूनिट को चुनाव के बाद 45 दिन तक नष्ट नही करने का आदेश देकर किसी संदेह की गुंजाइश तो स्वीकार की है।
श्री नाहटा ने कहा कि वे जानते है कि स्थानीय जिला प्रशासन मतदान बढ़ाने के लिए ऊपर से आए निर्देशों का पालन कर रहा है जो उसका दायित्व भी है।परंतु दायित्व निभाने के लिए मतदाताओं पर दबाव अनुचित होगा।
श्री नाहटा ने कहा वे और कांग्रेस पार्टी मतदान का प्रतिशत बढ़ाने के प्रयासों का समर्थन करते है।उनने मतदाताओं से आग्रह किया है कि जिस भय की चिंता में वह वोट नही डाल रहा ,उस भय को दूर करने की परिस्थितियां भी मतदान के ही माध्यम से ही दूर की जा सकती है । मतदान का प्रतिशत बढ़ाने के लिए पूर्व में जागरूकता बढ़ाने के उपाय तक ही सीमित रहना चाहिए , उत्साह के अतिरेक में लिए जा रहे उपाय बंद होने चाहिए।