महर्षि परशुरामजी जन्मोत्सव पर विशेष- ब्राह्मणों का स्वाभिमान महर्षि वीर परशुराम
महावीर अग्रवाल
मंदसौर २१ अप्रैल ;अभी तक; महर्षि ऋचीक और सत्यवती के पुत्र ऋषि जमदग्नि बड़े ही तेजस्वी थे इनका विवाह रेणु ऋषि (एक नाम प्रसेन जीत) की कन्या रेणुका से हुआ इनके 5 पुत्र हुए जिसमें सबसे छोटे पुत्र का नाम परशुराम था बाल्यकाल से ही वे अत्यंत ही तेजस्वी क्रोधी और स्वाभिमानी स्वभाव के थे किंतु इसके साथ ही वे बहुत बुद्धिमान तथा माता-पिता के आज्ञाकारी पुत्र थे इसमें पिता की आज्ञा का पालन वह अक्षरशः करते थे परशुराम बड़े पराक्रमी एवं शिव के भक्त होने के कारण उन्हें शिव जी ने एक परशु प्रदान किया था वह सदैव धर्म आचरण में रहते हुए भी सदैव कंधे पर परशु तथा पीठ पर धनुष बाण धारण करते थे।
एक बार की बात है कि है वंश के क्षत्रिय राजा अर्जुन ने भगवान दत्तात्रेय को कठोर तपस्या करके प्रसन्न कर लिया और कई प्रकार की अजेय शक्ति प्राप्त की तथा विशेष रूप से सहस्त्र भुजाओं की शक्ति का वरदान उसे प्राप्त था एक बार शक्ति के मद में उसने उसकी राजधानी माहिष्मति वर्तमान में महेश्वर के निकट नर्मदा नदी के प्रवाह को अपनी सहस्त्र भुजाओं के बल से रोकने का प्रयास किया जिसमें वह सफल हुआ इसी नदी के किनारे रावण ने अपनी छावनी लगा रखी थी उसमें पानी घुस गया जिससे क्रोधित होकर वह सहस्त्रार्जुन से भीड़ गया फलस्वरूप रावण को उसने बंदी बना दिया इसके पश्चात रावण के पिता पुलस्त्य ऋषि के कहने पर उसे छोड़ा। यही सहस्त्रबाहु एक दिन अपनी सेना की टुकड़ी के साथ जंगल में शिकार खेलने गया थका हारा वह अनजाने में जमदग्नि ऋषि के आश्रम में पहुंच गया जहां ऋषि ने राजा का सम्मान करते हुए समस्त सैनिकों को भी अच्छा स्वादिष्ट भोजन कराया। अब इस सहस्त्रबाहु के मन में यह विचार आया की जंगल में एक छोटी सी कुटिया में रहते हुए ऋषि ने इतने भोजन की व्यवस्था कैसे कर ली । जिज्ञासावश उसने ऋषि से ही पूछा तो उन्होंने कहा यह सब इस कामधेनु गाय का प्रताप है यह सुनकर सहस्त्रबाहु के मन में पाप आ गया और उसने ऋषि की बगैर अनुमति के आंगन में बंधी गाय और बछड़े को खोलकर ले गया। इसकी जानकारी जब परशुराम जी को हुई तो वह क्रोधित होकर माहिष्मती नगरी की ओर चल पड़े जब तक राजा वहां पहुंचा उसके पहले ही परशुराम ने उस पर आक्रमण कर दिया। भयंकर युद्ध और इस युद्ध में सहस्त्रबाहु का वध कर दिया गया एवं बहुत सारी सेना का भी विनाश परशुरामजी ने करके कामधेनु गाय और बछड़ा दोनों छुड़ा लिए और अपने पिता के आश्रम में सौंप दिए।
आमतौर पर पुत्र की सफलता के लिए पिता द्वारा उसे शाबाशी दी जाती है किंतु ऋषि जमदग्नि ने अपने पुत्र परशुराम की प्रशंसा नहीं की और यह कहा कि हम ब्राह्मण है और क्षमा करने भाव से ही हम सारे संसार में पूजनीय है निजी स्वार्थ के लिए तुम्हें उसका वध नहीं करना था इसलिए प्रायश्चित स्वरूप तुम 1 वर्ष तीर्थ यात्रा पर चले जाओ। पिता की आज्ञा सुन परशुरामजी 1 वर्ष के लिए तीर्थ यात्रा चले गए अनेक स्थानों पर तीर्थयात्रा संपन्न कर वे वापस आश्रम पर आ गए।
एक दिन परशुरामजी की माता रेणुका नदी के तट पर गई हुई थी वहां पर गंधर्वराज चित्ररथ सुंदर वस्त्र एवं फूलों की माला पहने हुए अप्सराओं के साथ विहार कर रहा था उसे देख रेणुका कुछ आकर्षित हुई किंतु तुरंत ही वह सचेत होकर आश्रम की ओर चली गई तथा जल कलश ऋषि के सामने रखकर हाथ जोड़कर खड़ी हो गई। महर्षि जमदग्नि ने अपनी पत्नी के मानसिक विकार को जान लिया और क्रोध के वशीभूत होकर अपने पुत्रों को कहां की इस पापिनी अपनी माता को मार डालो किंतु किसी भी पुत्र ने आज्ञा नहीं मानी इसके बाद पिता की आज्ञा से परशुरामजी ने अपनी माता एवं भाइयों का वध कर दिया। इस पर महर्षि जमदग्नि ने प्रसन्न होकर अपने पुत्र को वर मांगने को कहा तो श्री परशुराम ने अपनी माता रेणुका और अपने भाइयों को जीवित करने का वर मांगा और यह भी कहा कि इन्हें इस बात ज्ञान नहीं रहना चाहिए कि मैंने इनका वध किया था इस प्रकार वर फलीभूत हुआ और वह सब जीवित हो गए।
इधर सहस्त्रबाहु के पुत्र अपने पिता के वध को भूल नहीं पाए थे और एक दिन अपनी सेना के साथ उन्होंने जमदग्नि के आश्रम पर आक्रमण कर दिया उस समय ऋषि अग्नि शाला में हवन की तैयारी कर रहे थे सहस्त्रबाहु के पुत्रों ने उनका सिर काट दिया तथा आश्रम को तहस-नहस कर दिया एवं ऋषि का सिर अपने साथ ले गए उस समय परशुरामजी वन में भ्रमण कर रहे थे। जैसे ही वह वन से आए तो पिता के मृत शरीर को देखकर बहुत-बहुत भावुक हुए किंतु उन्होंने अपने पिता के धड़ को अपनी माता और भाइयों को सौंपकर तुरंत अस्त्र, शस्त्र एवं परशु धारण कर माहिष्मती नगरी की ओर चल पड़े तथा सहस्त्रार्जुन के अनेक पुत्रों को उन्होंने मार गिराया एवं उसके समर्थन में जो सेना आई थी उसका भी उन्होंने वध कर दिया और अपने पिता का सिर वापस लाकर धड़ से लगा दिया तत्पश्चात देवताओं की कृपा से स्मृति रूप संकल्प मय शरीर की प्राप्ति हुई तथा जमदग्नि सप्तर्षियों के मंडल में सातवें ऋषि हो गए। इस प्रकार परशुराम जी ने अपने पिता के वध को निमित्त बनाकर आततायी, अधर्मी एवं निर्बलो पर आक्रमण करने वाले ऋषि-मुनियों पर अत्याचार करने वाले ब्रह्म हत्यारों तथा दुराचारी क्षत्रियों का वध कर 21 बार इस पृथ्वी को क्षत्रिय विहीन कर दिया था।
तत्पश्चात कमल लोचन जमदग्नि नंदन भगवान परशुराम आगामी मन्वंतर मे शांत चित्त से महेंद्र पर्वत पर निवास करते हैं शुकदेव जी के अनुसार परशुरामजी के रूप में सर्वशक्तिमान भगवान श्री हरि ने इस प्रकार पृथ्वी पर भार भूत राजाओं का बहुत बार वध किया।
आज परशुराम जन्मोत्सव के उपलक्ष में हम भगवान परशुराम को प्रणाम करते हैं और उनसे चाहते हैं कि पृथ्वी पर रहने वाले प्रत्येक ब्राह्मण में आप जैसा तेज समाहित हो।
विशेष – वर्तमान में परशुरामजी के पिता महर्षि जमदग्नि का आश्रम महू के पास मानपुर की जानापाव पहाड़ी पर स्थित है वहां जाया जा सकता है तथा सहस्त्रबाहु की राजधानी महेश्वर है जो जमदग्नि के आश्रम से करीब 60 किलोमीटर दूर है।
-रमेशचंद्र चन्द्रे