प्रदेश
विवाह आदि कार्यक्रमों में अन्न की अपमान न हो इसके लिये आयोजक उठाये सार्थक कदम-रविन्द्र पाण्डेय
महावीर अग्रवाल
मन्दसौर एक दिसंबर ;अभी तक; वर्तमान समय में विवाह आयोजनों में हम देखते हैं कि कई लोग आवश्यकता से अधिक भोजन अपनी थाली में ले लेते हैं और फिर उसको झूठा छोड़ देते हैं यह बहुत ही दुखद और शर्मनाक बात है । जहां एक ओर कई निर्धन भूखा सोने पर मजबूर है वहीं दूसरी और जो व्यक्ति अन्न का अपमान करता है वह सबसे बड़ा दरिद्र है । ऐसे कार्यक्रमों में मेजबान/आयोजक द्वारा भोजन का अपमान व बर्बादी न हो इसके लिये सार्थक कदम उठाया जाना जरूरी है।
सक्षम के प्रांतीय सचिव रविन्द्र पाण्डेय ने बताया कि हिन्दू शास्त्रों में कहा गया है कि भोजन में स्वयं मां अन्नपूर्णा विराजमान रहती है और उसमें कभी भी झुठा छोडना बहुत ही गलत बात है। भोजन का व भोजन बनाने वाले का दोनों का ही अपमान करना मां अन्नपूर्णा अपमानित करने की समान है।
आपने कहा कि एक मां, एक बहन व एक पत्नी घर-परिवार के सदस्यों के लिये भोजन बनाती है। उस भोजन में कमियां वही निकालते हैं जिन्होंने अपने वास्तविक जीवन में कभी कुछ अर्जित ना किया हो क्योंकि यदि किया होता तो उसे हर व्यक्ति के कठिन परिश्रम का आभास होता। माताएं-बहनें कठिन परिश्रम कर अपने पूरे परिवार के लिए भोजन तैयार करती है। कोशिश कर हर किसी का पसंदीदा व्यंजन बनाती है चाहे कैसा भी मौसम हो क्यों ना हो कड़ी धूप हो, तेज़ बारिश हो या कडकडाती सर्दी हो वह अपना कार्य बड़ी ही निष्ठा व श्रद्धा से पूर्ण करती है। उन्हें कभी भी अपने कार्य से छुट्टी नहीं मिलती। फिर भी बिना कोई शिकायत किए अपने कार्य में मग्न रहती है और इस निष्ठा व समर्पण का अपमान करने वाले व्यक्ति वो है जिन्हें भोजन में कमियां नजर आती है, अपमानित इसलिए करते हैं क्योंकि उन्हें बड़ी सरलता से सब कुछ मिल जाता है या प्राप्त हो जाता है। सम्मान वह मनुष्य करता है जिसने अपने जीवन में सब कुछ परिश्रम से अर्जित किया हो क्योंकि कमियां ढूंढना बहुत ही सरल कार्य है ,परंतु परिश्रम करना उतना ही कठिन।
आजकल बफेट (खड़े-खड़े खाने का) चलन चल पड़ा है। जो भारतीय संस्कृति के अनुकूल नहीं है फिर भी इसे मान्य करते हुए सोचा जाये तो हम बफेट का सदुपयोग कर सकते है याने उतना ही ले थाली जो व्यर्थ ना जाये नाली में। देखा जाता है कि शादी ,सगाई या किसी भी अन्य कार्यक्रम में महिलाएं-पुरुष जाते हैं तब वह अपनी थाल में एक साथ ही कई सारे पदार्थ अधिक मात्रा में भर लेते हैं जबकि उन्हें पता होता है कि इतना सब कुछ वह ग्रहण नहीं कर पाएंगे परंतु फिर अपनी संतुष्टि के लिए पूरा थाल सजा देते हैं और यदि थाल में जगह ना हो तो भी वह उसे समायोजित कर देते हैं व अन्न ग्रहण करते समय उन्हें आभास होता है कि उनसे इतना अधिक भोजन नहीं खाया जाएगा। फिर वह संपूर्ण खाना कुल अपशिष्ट हो जाता है। थाल भरने से पहले हर किसी व्यक्ति को यह विचार अवश्य करना चाहिए कि कितना भोजन उनकी क्षुधा (भूख) मिटाने के लिए पर्याप्त है। वह केवल उतना ही अपनी थाल में ले ताकि वह झूठा ना हो और उसे फेकना ना पडे़।
रविन्द्र पाण्डेय ने सभी महानुभावों से विनंती की है कि हमेशा अपनी थाल में उतना ही भोजन ले जितनी आपकी भूख हो और कभी भी अन्न का अपमान न करें क्योंकि यदि उसे ठोकर मार दी, तो भगवान ना करे कि जीवन में कभी ऐसी स्थिति जन्म ले की दो रोटी के लिए भी दरबदर भटकना पड़े और फिर भी यदि आपको यह बाद झूठी लगती है तो पूछिए उन गरीब लोगों से व उन परिवारो से जो दो रोटी के लिए कितना तरसते व हैं उनकी जीवन में दो रोटी की क्या कीमत है। कृपया अन्न का अपमान न करें व उसे बरबाद भी न करें ।