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*हिंदू परंपरा में बेटी और दामाद के भावपूर्ण सम्मान का परिचायक है “निमाड़  का गणगौर उत्सव*” 

*प्रस्तुति-रमेशचन्द्र चन्द्रे*
 मन्दसौर ११ अप्रैल ;अभी तक;   निमाड़ में अगर त्योहारों का शुभारंभ लोकपर्व जीरोती (हरियाली अमावस्या) से होता है तो समापन भी लोकपर्व गणगौर पर ही होता है। दोनों पर्व देवी पूजा के और बहू-बेटियों के विशेष त्योहार है। गणगौर महापर्व चैत्र ग्यारस से प्रारम्भ हो जाता है। निमाड़ लोकमाताओं की माता ‘गणगौर’ माता का पर्व मनाया जाता है।
                                  वह देवियों की भी देवी महादेवी है। वह समग्र लोक की भक्ति को आलोकित करने वाली परम शक्ति है। गणगौर माता लौकिक के साथ साथ अलौकिक देवी भी है। उनका महापर्व यहाँ की आत्मा है। तभी तो उनके निमाड़ी लोकगीत, रीति-रिवाज, प्रथा-परम्पराएँ, पूजा आराधना, संस्कार संस्कृति आदि लगभग ज्यों के त्यों है। सम्पूर्ण निमाड़ में गणगौर माता को सर्वोच्च सम्मान और प्रतिष्ठा प्राप्त है। निमाड़ में माता का अनुष्ठान पर्व नौ-दस दिनों तक उमंग और हर्सौल्लास से मनाया जाता है I निमाड़ में जिन घरों में माता को “पावणी” लाया जाता है I उन घरों की बहू-बेटियां आठ-दस दिन पूर्व से ही तैयारी करने लग जाती है I घर के कोने कोने को साफ स्वच्छ करती है I पूर्ण पवित्रता व उमंग से पूरे घर की लिपाई-छबाई व पुताई करती है I चौक-माणडनों से घर को संजाती-संवारती है अर्थात पूरे घर को स्वच्छ किया  जाता है।
                              जिस प्रकार बेटी को सम्मानपूर्वक कर लाया जाता है और उसकी सेवा की जाती है, इसी तरह भावपूर्ण तरीके से गणगौर माता की विदाई भी की जाती है इस अवसर पर अनेक श्रद्धालु अपनी आंखों से आंसू बहाते देखे जा सकते हैं।
                                 गणगौर का त्यौहार निमाड़ में  देवी के प्रति श्रद्धा की पराकाष्ठा है।  जिस प्रकार के भावपूर्ण दृश्य, गणगौर माता और धणियर राजा के रूप में आकर्षक पुतलों में  दिखाई देते  हैं और जिस तरीके से उनका श्रृंगार किया जाता है वे सभी प्राणवान नजर आते हैं ,क्योंकि उनके भीतर माता पार्वती एवं शिव की की शक्ति समाहित हो जाती है।

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