बीना विधानसभा क्षेत्र _ आसान नहीं है बीजेपी के इस गढ़ को तोड़ना
रवींद्र व्यास
छतरपुर ७ जून ;अभी तक; मध्यप्रदेश के सागर जिले की बीना विधानसभा अजा के लिए सुरक्षित सीट है | बुंदेलखंड की सबसे चर्चित सीटों में शुमार यह विधानसभा क्षेत्र एक अलग राजनैतिक चरित्र के लिए जाना जाता है | 2003 तक यह विधानसभा क्षेत्र सामान्य रहा इस दौरान यहां से अनेकों दिग्गज विधान सभा में पहुंचे | जनसंघ के भगीरथ बिलगैया , श्याम नारायण मुश्रान , सुधाकर बापट , प्रभु सिंह ठाकुर , और ब्रजकिशोर पटेरिया जैसे राजनेता विधानसभा पहुंचे इनमे से ज्यादातर मंत्री भी बने | परिसीमन के बाद 2008 में इसे अजा के लिए सुरक्षित कर दिया गया | 1977 के बाद से ही यह बीजेपी के बर्चस्व वाली विधानसभा सीट बन गई | अजा के लिए सुरक्षित सीट होने के बाद भी यहाँ बीजेपी का ही कब्जा रहा | पिछले दस चुनावों में यहां से एक बार जनता पार्टी ,दो बार कांग्रेस और ७ बार बीजेपी जीती है | 2018 के चुनाव में बीजेपी के महेश राय ने कांग्रेस के शशि कथोरिया से मामूली अंतर से जीतने के कारण अब हर कोई यहां से अपनी दावेदारी जाता रहा है |
बीना का अपना एक अलग राजनैतिक और ऐतिहासिक महत्व है | यहाँ लगी बीना रिफाइनरी के कारण इसे देश दुनिया में जाना पहचाना जाता है | इसी विधानसभा क्षेत्र की ऐतिहासिक धरोहर एरण है , जिसका वर्णन पुराण में भी मिलता है , यह भी कहा जाता है कि देश में पहली सति यहाँ के एरण में ही हुई थी | बीना के निकट खिमलासा का किला एक महत्वपूर्ण स्थल है | बीना भी गेहूं की श्रेष्ठ फसलों के लिए प्रसिद्ध है | बीना रेलवे जंक्शन के कारण यहां की अपनी एक अलग पहचान है | राजनैतिक तौर पर यह इलाका गुना अशोक नगर क्षेत्र से लगा होने के कारण यहाँ सिंधिया राजघराने का भी वर्चस्व माना जाता है | ग्रामीण क्षेत्र वाले इस विधानसभा क्षेत्र में बीना तहसील और खुरई तहसील के खिमलासा आर आई सर्कल के गाँव आते हैं |
1962 में अस्तित्व में आई बीना विधानसभा सीट से पहला विधायक जनसंघ पार्टी के भागीरथ रामदयाल बिलगैया को चुना गया , हालांकि वे 1977 में जपा के टिकट पर भी चुनाव जीते || 1962 से 2003 तक यह सामान्य सीट रही | परिसीमन के बाद २००८ के चुनाव में यह अजा के लिए सुरक्षित विधानसभा सीट हो गई | 1977 से अब तक हुए विधानसभा के दस चुनावों में यहाँ से कांग्रेस के अरविंद भाई 1980 और प्रभु सिंह ठाकुर 1993 में चुनाव जीते | बीजेपी के सुधाकर बापट यहाँ से तीन बार विधायक चुने गए १९८५. 1990 और 1998 में , 2003 में सुशीला राकेश सिरोठिया यहां से चुनाव जीती |2008 में अजा के लिए सुरक्षित होने के बाद यहां से बीजेपी ही लगातर चुनाव जीत रही है | इसे एक तरह से बीजेपी का गढ़ माना जाने लगा है | 1998 से यहाँ बीजेपी लगातार चुनाव जीत रही है | 2013 और 2018 में बीजेपी के महेश राय जीते , परन्तु 2018 में उनके मत प्रतिशत में बड़ी गिरावट देखने को मिली वे कांग्रेस के शशि कथोरिया से मात्र 460 मत के अंतर से चुनाव पाए ,| मत के आधार पर अगर कहा जाए तो इस विधानसभा क्षेत्र में एक राजनैतिक परिवर्तन की आहट सुनाई दे रही है | जमीनी धरातल पर यहाँ के लोगों का मानना है की बीजेपी विधायक सहज सरल हैं | जबकि कांग्रेस के जिन प्रत्यासी शशि कथोरिया ने जबरदस्त टक्कर दी थी वे भी सिंधिया के साथ बीजेपी में आ आगये | इस समय उन्हें बीजेपी का बड़ा दावेदार माना जा रहा है |
अतीत को देखे तो 1998 के विधानसभा चुनाव में 5. 66 % वोट पाने वाली बीएसपी ने 2003 के चुनाव में 19. 96 फीसदी वोट लेकर त्रिकोणीय संघर्ष की स्थिति बना दी थी | उस समय यह सामन्य सीट ही थी , दोनों ही दलों के सामने एक बड़ी चुनौती बीएसपी के रूप में खड़ी हो गई थी | हालंकि मत प्रतिशत को लेकर बना यह संशय 2008 के चुनाव में भी देखने को मिला था | 2008 में यह सीट अजा के लिए सुरक्षित हो गई थी और बीएसपी ने 20 . 74 फीसदी वोट लेकर कांग्रेस के सारे समीकरण बिगाड़ दिए थे | बीते २५ वर्षों से जिस विधानसभा सीट पर कांग्रेस लगातार हार का सामना कर रही है अब उस पर फिर कब्जा करने की जुगत में लगी है
विधान सभा क्षेत्र में एक बड़ा मुद्दा बीना को जिला बनाने की मांग को लेकर है | पिछले चुनाव के समय सीएम शिवराज सिंह ने यहां के लोगों को आशवस्त किया था कि बीना को जिला बनाया जाएगा | बीना वालों की यहाँ मांग बहुत पुरानी है | अब इस मांग को लेकर राजनीति भी खूब होने लगी है | पिछले दिनों पूर्व मुख्य मंत्री ने बीना ने बीजेपी सरकार को इसी मुख्य मुद्दे पर आड़े हाथ लिया था , उन्होंने घोषणा भी की कि कांग्रेस सरकार बानी तो बीना को जिला बनाया जाएगा जो उसका हक़ भी है | राजनीति में समय पर किया गया वार ज्यादा घातक होता है , कांग्रेस ने इसी मौके का फायदा उठाया | उसे मालुम था कि यहाँ के खुरई विधायक और मंत्री भूपेंद्र सिंह खुरई को जिला बनवाने के अभियान में जुटे हैं | पानी ,बिजली , स्वास्थ्य ,शिक्षा, बेरोजगारी जैसे बुनियादी मुद्दे हैं | बीना रिफायनरी में स्थानीय लोगों को रोजगार ना मिलना , सिचाई परियोजनाओ में विस्थापन का मुद्दा , एरण जैसे पुरातात्विक स्थल का विकाश ना हो पाना | ऐसे मुद्दे हैं जो लोगों को सोचने पर मजबूर कर देते हैं |
विधान सभा सीट पर जातीय समीकरण को लेकर क्षेत्र में लोगों की सक्रियता बड़ी है | पिछले कुछ समय से यहाँ अहिरवार समाज से प्रत्यासी बनाये जाने की मांग तेजी से उभरी है | इसके अलावा यहाँ इस बात को लेकर भी लोगों में नाराजगी देखने को मिल रही है कि यहां की बीना रिफायनरी से उन्हें प्रदूषण तो मिल रहा है पर स्थानीय लोगों को रोजगार की दिशा में कोई सार्थक पहल नहीं हुई है | सबसे बड़ी मांग और समीकरण बीना को जिला बनाये जाने की मांग को लेकर है जिसे लेकर यहाँ ज्ञापन बाजी होती रहती है |
लगभग पौने दो लाख मतदाता वाले इस विधानसभा क्षेत्र में समय के साथ जातीय समीकरण भी अपना असर दिखाने लगे हैं | हिन्दू बाहुल्य विधान सभा क्षेत्र में 96 . 66 फीसदी हिन्दू हैं | जिनमे सामान्य वर्ग में 38. 66 % ओबीसी- 35 %, एस सी. 21 % एस टी 2 % अन्य 1 % मुस्लिम 2. 34 %
यहां की अधिकाँश आबादी कृषि और कारोबार पर आश्रित हैं | बीना रिफाइनरी के कारण नगरीय क्षेत्र में बड़ी संख्या में लोग नोकरियो और व्यापार पर आश्रित हैं | वहीँ ग्रामीण क्षेत्र की आबादी पूर्णतः कृषि और कृषि मजदूरी पर आश्रित है | बीना रेलवे का एक बड़ा जंक्शन है , | यहाँ के ग्रामीण इलाके में अनाज के साथ दलहन और तिलहन का उत्पादन यहाँ के किसानो की आर्थिक समृद्धि का मुख्य आधार माना जाता है | |
बीना के अब तक के विधायक
1962 _ भागीरथ बिलगैया _ जनसंघ
1964 उप श्याम नारायण मुश्रान _ कांग्रेस
1967 ब्रज किशोर पटेरिया _ कांग्रेस
1972 डालचंद्र भगवानदास _कांग्रेस
1977 भागीरथ बिलगैया _ जनता पार्टी
1980 अरविन्द भाई _कांग्रेस
1985 सुधाकर बापट _ बीजेपी
1990 सुधाकर बापट _ बीजेपी
1993 प्रभु सिंह ठाकुर _ कांग्रेस
1998 सुधाकर बापट _ बीजेपी
2003 सुशीला राकेश सिरोठिया _ बीजेपी
2008 (सु) डॉ श्रीमती विनोद पंथी _बीजेपी
2013 (सु) महेश राय _बीजेपी
2018 (सु) महेश राय _बीजेपी
दावेदारों की दम :: बीजेपी से अब यहां कई दावेदार उभरकर सामने आने लगे हैं जिनमे शशि कथोरिया , पूर्व विधायक धरमु राय अपने पुत्र को टिकट दिलवाना चाहते हैं , इनके अलावा गजेंद्र राय का नाम भी सुर्ख़ियों में है | कांग्रेस से उमा का नाम प्रमुख तौर पर बताया जा रहा है | २०२३ की चुनावी बिसात इतनी आसान नहीं मानी जा रही है | इसके पीछे माना जा रहा है की बिना के सहज सरल महेश राय का अगर पार्टी टिकट काटती है तो इसका असर बिना के अलावा खुरई में सबसे ज्यादा देखने को मिलेगा | बीते २५ वर्षो में जहां कांग्रेस एक तरह से हांसिए पर पहुंच गई थी अब उसे फिर से पाने की जुगत में लगी है।यही कारण है इस इलाके का कांग्रेस के दिग्गज नेता लगातार दौरा कर रहे हैं।