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बैहर विधानसभा क्षेत्र में पिछले 5 दशकों से केवल 2 परिवारों का ही राज चला आ रहा

आनंद ताम्रकार
बालाघाट २१ अक्टूबर ;अभी तक; बालाघाट जिले की 6 विधानसभा क्षेत्र में बैहर विधानसभा क्षेत्र जो की जिले की एक मात्र आरक्षित अनुसूचित जनजाति के लिये सुरक्षित है में पिछले 5 दशकों से केवल 2 परिवारों का ही राज चला आ रहा है। भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस में केवल नेताम और उइके 2 परिवारों का वर्चस्व बना हुआ है।
                                      वर्ष 1972 से लेकर 2018 के अंतराल में हुए 11 विधानसभा चुनाव में सत्ता के सूत्र इन्ही 2 परिवारों के हाथ में रहे है।  आखिरकार इन दो परिवारों के अलावा इस क्षेत्र में और कोई अन्य चेहरा राजनीतिक परिदृश्य में ना तो सामने आया ना ही कोई अन्य इन परिवारों को आगे उभर पाया।
                                      1956 में मध्यप्रदेश के पूर्ण गठन के पूर्व इस आदिवासी बाहुल्य नक्सल प्रभावित क्षेत्र में 1951 में पहली बार विधानसभा चुनाव हुआ था जिसमें कांग्रेस की ओर नैन सिंह विधायक बने उसके बाद 1967 तक हुये चुनाव में मुरलीधर असाटी,महिपाल सिंह मसराम और एमसिंग विधायक चुने गये। उसके बाद से आज तक भाजपा और कांग्रेस परिवारवाद के चलते बारी बारी से चुने आ रहे है।
यह उल्लेखनीय है की नेताम परिवार की ओर स्व.सुधन्वा सिंह नेताम 3 बार विधायक रहे उनके बाद उनके बेटे भगत सिंह नेताम 2 बार विधायक बने इसी तर्ज पर उइके परिवार की ओर से पहली बार स्व.गणपत सिंह उइके 4 बार विधायक बने और उन्होंने मंत्री पद भी संभाला उनके बाद पुत्र संजय सिंह उइके 2 बार से विधायक बने।
इन विसंगतियों के बावजूद बैहर विधानसभा क्षेत्र में इस मुद्दे को लेकर ना तो कोई असंतोष या विरोध के स्वर सुनाई नहीं दिये।
जिले के बैहर विधानसभा क्षेत्र में वन संपदा,खनिज का बाहुल्य है लेकिन अभी भी कई क्षेत्र ऐसे भी है जहां दुर्गम क्षेत्र में आदिवासी निवास कर रहे है जो पहुंचविहीन है और बुनियादी सुविधाओं से वंछित है।
यह क्षेत्र नक्सलवादियों की शरण स्थली बना हुआ है। वे अपनी मौजूदगी का एहसास कराते रहते है।

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