बुंदेलखंड की डायरी ; जल के जाल में बुंदेलखंड
रवीन्द्र व्यास
कुप्रबंधन के चलते एमपी का बुंदेलखंड इलाका गंभीर जल संकट से जूझ रहा है। आग बरसते इस मौसम में हमेशा की तरह इस बार भी बुंदेलखंड की नदियां, कुएं और तालाब सूखते जा रहे हैं।परिणामतः गांव ही नहीं शहरी क्षेत्रों में भी पानी की गंभीर समस्या लोगो के सामने है | जल प्रबंधन एक ऐसा तंत्र है जिसे हर समय सक्रिय रहने की जरूरत है पर हालात ये हैं कि प्यास लगने पर कुआँ खोदने की | उस पर भी दूषित पानी लोगों की जान ले रहा है |
टीकमगढ़ जिले के दरी पंचायत के नगारा गांव में कुएं का गंदा पानी पीने से ४० से अधिक लोग उल्टी दस्त के शिकार हुए और भागीरथ अहिरवार के पांच वर्षीय पुत्र राजेश की मौत हो गई थी ।इस गांव के अहिरवार मोहल्ला के लोग नाला के पास बने कुएं से अपने पीने का पानी की पूर्ती करते थे | २० मई की शाम आधा दर्जन से ज्यादा लोग उल्टी दस्त के शिकार हुए। इसकी जानकारी लगने पर दूसरे दिन स्वास्थ्य विभाग, प्रशासनिक अमला जाग्रत हुआ | गाँव के अहिरवार मोहल्ला का नजारा देख प्रशासन खुद सकते में आ गया | प्रशासन ने कुंए के पानी की जांच के लिए सैपल लिया और उसमें दवाओं का छिडक़ाव किया ।गाँव के स्कूल को अस्पताल बनाकर उपचार शुरू कर दिया। गंभीर पीडि़त मरीजों को जिला अस्पताल रेफर कर दिया गया । ये अलग बात है कि अटल भू जल योजना के तहत ना सिर्फ तालाब ,नदी को संरक्षित और साफ़ सुथरा बनाने पर जोर दिया जा रहा है ,बल्कि कुँए और बावड़ी के रख रखाव की बात भी की जा रही है | परन्तु बुंदेलखंड में काजगी घोड़े ज्यादा दौड़ते हैं | गाँव और शहरों के हेंड पम्प , कुआं , बावड़ी के पानी की जांच और साफ़ सफाई नियमित तौर पर होती रहती तो यह हालात नहीं बनते |
कागजो में सुहाने सपने : केन बेतवा लिंक परियोजना से जुड़े हर लोकसभा क्षेत्र में इस बात को बड़ी जोर शोर से बीजेपी के नेता पिछले कई वर्षो से उठाते रहे हैं कि केन बेतवा लिंक परियोजना से बुंदेलखंड की तक़दीर और तस्वीर बदल जायेगी | इससे ना सिर्फ 10. 62 लाख हेक्टेयर भूमि सिंचित होगी ,बल्कि ६२ लाख परिवारों तक पिने का शुद्ध पानी भी पहुंचेगा | जमीनी हालात किसी से छिपे नहीं हैं ,कागजों में यह योजना तेजी से काम कर रही है ,जमीनी धरातल पर इसका कोई आता पता नहीं है |
हर घर नल योजना बनाम अमृत धारा योजना भी नकारा व्यवस्था की भेंट चढ़ रही है | जल जीवन मिशन नाम तो मिशन का काम ला फीताशाही का है | इस मिशन ने ने ही माना है कि बुंदेलखंड के पन्ना और टीकमगढ़ जिले जल कनेक्शन के नाम पर पिछड़ा जिला की सूचि में हैं | इन जिलों में ४५ फीसदी नल कनेक्शन माने गए हैं | २०२३ के चुनाव के पहले गाँव में लगाई गई पानी की टंकियों से हर घर तक पानी पहुंचाने की योजना भी कागजी साबित हो रही है अधिकाँश गाँवों में टंकियों में पानी ही नहीं पहुँच रहा तो घरों तक कैसे पहुंचेगा |
बड़ामलहरा जल के लिए मानव
बुंदेलखंड के पठार वाले क्षेत्रो में शामिल छतरपुर जिले का बड़ामलहरा क्षेत्र तो दोहरी समस्या से ग्रस्त है | यहां के प्राकृतिक जल स्त्रोत नदी नाले झरना सूख चुके है हैण्डपम्प भी जबाब दे चुके है | क्षेत्र के पचास फीसदी हैण्डपम्प खराब पड़े जिनकी कोई सुध लेने बाला नहीं ।
इस क्षेत्र के पूर्व जनपद पंचायत सदस्य और पत्रकार राम कृपाल शर्मा बताते हैं कि बड़ामलहरा नगर में ही नियमित पानी की सप्लाई नहीं होती है | ग्रामीण इलाकों के आधे से ज्यादा हैण्डपम्प खराब पड़े है , ग्राम पंचायतों द्वारा संचालित नल जल योजना बन्द पड़ी है । इसकी बड़ी वजह भी बताते हैं कि जब से बान सुजारा बाँध बना और इसकी जल आवर्धन योजना से बिकासखण्ड क्षेत्र के एक सौ बीस गांव मे पेयजल उपलब्ध करवाने का कागजी दावा किया गया | जिसके चलते पीएचई ने हेण्डपम्पों के रख रखाव से मुंह मोड़ लिया | अब अगर १२० गावों तक पेयजल सप्लाई की बात की जाए तो अजब नाजारा देखने को मिलता है | गांव मे १० -१५ मिनट ही पानी प्रदाय किया जा रहा है | नलो से बूद बूद पानी टपकने के साथ मटमैला पानी आ रहा है । जल मिशन ने गाँव के चलनियों के लिए जरूर बेहतर व्यवस्था की है , पाइपलाइन के पांइटो कें बाजू मे बनी हौदी को पाइपलाइन से भरकर चलनियों के घरो तक पानी पहुंचाया जाता है । मिशन की पाइप लाइनों को गाँव में तोड़ा भी जाता है जिसकी पुलिस रिपोर्ट होने के बावजूद कोई कार्यवाही नहीं होती |
बेमौत मरते जंगली जानवर
रामकृपाल शर्मा कहते हैं कि यह इलाका जिले के प्रमुख वन क्षेत्रो में से एक माना जाता है | यहां बड़ी संख्या में जंगली जानवरों का बसेरा भी है | वे बताते हैं कि रियासत के समय से ही पालतू और जंगली जीवों के लिए पानी के श्रोतों यथावत बनाये रखा जाता था | पर इस बार तो मानो जंगली जानवरों से वन विभाग ने ही नाता तोड़ लिया है | गर्मी के प्रचंड प्रकोप और सूखे जलश्रोतो के कारण अकेले बाजना परिक्षेत्र में ही पांच निल गाय और एक भालू की मौत पानी के अभाव में हो गई |
इसके पीछे वे वन विभग की कार्यप्रणली को दोषी मानते हैं कहते हैं कि इलाके में पूर्व से ही छोटी नदियों नालों के अलावा तालाब , बेहर का इस तरह से निर्माण किया गया था कि जंगली जानवर भी उनसे पानी पी सकें | तीन वर्ष पहले वन विभाग ने एक आदेश जारी किया कि जंगलों मे जो बेंहर एवं बाबड़ी है उनमें सीड़ियाँ होने के साथ मुड़ेर नीची होने की वजह से उसमें गिरकर जंगली जानवरों की मौत हो रही है ।इसलिए इनकी सीड़ियों को बन्द कर मुड़ेर के चारों ओर चार फीट की दीबाल बना दी | अब जिन सीढ़ियों से उतरकर जानवर अपनी प्यास बुझाते थे उनपर दीवार खड़ी कर दी गई | इनके बगल मै हौदी बनाई गई ,और कहा गया कि इन होदीयो मे गर्मी के मौसम मे जंगली जानवरों के पीने के लिए पानी भर दिया जायेगा । जहाँ आदमियों के पीने के लिए तंत्र पानी की व्यवस्था में कोताही बरतता है वहां मूक पशुओं के लिए भला कौन भरेगा |इसीलिए वन विभाग ने शुरूआती वर्ष में पानी होदीयो मे भर कर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर ली | उन्होंने मान लिया कि हमने जो जल भरा है वह अक्षय पात्र की तरह हमेशा हमेशा के लिए भर गया |
जल संकट :
वैश्विक आंकड़े अगर देखें तो २०२५ तक दुनियाँ की आधी आबादी जल संकट से जूझ रही होगी। जिसके चलते 2030 तक बड़ी संख्या में विस्थापन और पलायन के हालात बनेंगे । दुनिया भर में हर दिन गंदे पानी से होने वाली बीमारी के कारण 800 बच्चे असमय काल के गाल में समा जाते हैं | अकेले भारत में ही हर साल लगभग दो लाख मौतें पानी के कारण होती हैं | भारत की ही 40 फीसदी आबादी २०३० तक पीने के पानी के लिए तरसेगी । दुनिया की १८ फीसदी आबादी वाला क्षेत्र भारत में अगर जल संसाधन को देखा जाए तो वह मात्र 4 फीसदी ही है। इनमे से अगर बुंदेलखंड के हालातों को देखा जाये तो स्थितियां कहीं ज्यादा भयावह दिखती हैं | बुंदेलखंड के सागर , दमोह टीकमगढ़ , निवाड़ी ,छतरपुर और पन्ना में के गाँवों के जल संकट की तस्वीरें बहुत ही चिंता जनक हैं |
हम ऐसा भी नहीं कह सकते की इस दिशा में सरकार कोई पहल नहीं कर रही है | केंद्र और राज्य सरकार दोनों ही पेयजल की उपलब्धता कराने के लिए प्रयासरत हैं | जो तंत्र इस कार्य को धरातल पर लाने में जुटा है वह आज भी उस ढर्रे से बाहर नहीं निकल पा रहा है जो वर्षो से चला आ रहा है | इसके साथ ही पानी की उपयोगिता और उसके बर्बादी पर संतुलन बनाना होगा | अकेले छतरपुर नगर में ही देखें तो अमृत धारा जल योजना के तहत नगर में हो रही पानी की सप्लाई में अलग नजारा देखने को मिलता है | पड़ा लिखा वर्ग और सभ्य समाज पाइप लाइनों में टोंटी नहीं लगवाता , पानी भरने के बाद वही पाइप लाइन का पानी नालियों में घंटो व्यर्थ बहता रहता है | दूसरी तरफ कई इलाकों में पानी की सप्लाई ही मात्र १५ मिनट होती है | समय रहते अगर हम नहीं जागे तो जल की विभीषका से बचना सम्बह्व नहीं होगा | सरकार बाँध बनवा देगी , पाइप लाइन डलवा देगी , टंकी बनवा देगी पर इसमें पानी आएगा कहाँ से इस दिशा में भी सबको सोचना होगा |