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पंचेन्द्री जीवों की हिंसा से बचो-साध्वी रमणीककुंवरजी म.सा.
महावीर अग्रवाल
मन्दसौर २० अगस्त ;अभी तक ; जैन धर्म व दर्शन में हिंसा से बचने की प्रेरणा दी गई है। संसार मे एक इन्द्रीय से लेकर पंच इन्द्रीय पांच प्रकार के जीव बताये गये है। वे सूक्ष्म जीव जो आंखों से दिखाई नहीं दे वे एक इन्द्रीय जीव है ये जीव सामान्यतः जल, वायु व वनस्पति में पाये जाते है। पंच इन्द्रीय जीव वे जीव है जो आंखों से भी दिखाई देते है और शरीर, वाणी, त्वचा, श्वास, नेत्र, श्रवण वाले होते है। ऐसे जीवों की यदि हम हिंसा करते है तो यह जानबूझकर की गई हिंसा की श्रेणी में आती है और इसका परिणाम हमें अपनी दुर्गति के रूप में भोगना पड़ता है, इसलिये पंचन्द्री जीवों की हिंसा से हमें बचना चाहिये।
उक्त उद्गार परम पूज्य जैन साध्वी श्री रमणीककुंवरजी म.सा. ने नईआबादी शास्त्री कॉलोनी स्थित जैन दिवाकर स्वाध्याय भवन में कहें। आपने मंगलवार को यहां धर्मसभा में कहा कि मनुष्य को पुण्य कर्म व पापकर्म के भेद को समझना ही चाहिय। जानबूझकर पापकर्म का कार्य करने से हमें आगामी भव में तिरयन्च या नरक गति मिल सकती है। जीव हिंसा भी ऐसा ही पापकर्म है। जीवों की हिंसा में पंच इन्द्रीय जीवों की हिंसा को बहुत अधिक पापकर्म के बंधन का कारण माना गया है। इसलिये पंचेन्द्री जीवों की हिंसा से बचना चाहिये। मांसाहार के लिये पंचेन्द्री जीवों की हिंसा उचित नहीं है।
भगवान नेमीनाथजी से प्रेरणा ले- भगवान नेमीनाथजी ने पंचेन्द्री जीवों की हिंसा से अपने को दूर रखने व प्राणियों की रक्षा की खातिर विवाह करने से मना कर दिया और दीक्षा लेकर वन गमन को चले गये। जब उन्होंने विवाह में आने वाले मेहमानों के भोजन में प्राणियों के मांस का उपयोग होने की सूचना मिली तो उन्होंने बंधक बनाये गये जीवों को मुक्त कराया और हजारों प्राणियों का जीवन बचाया। जीवन में हमें भी भगवान नेमीनाथजी के जीवन से प्रेरणा लेनी चाहिये।
भगवान नेमीनाथजी से प्रेरणा ले- भगवान नेमीनाथजी ने पंचेन्द्री जीवों की हिंसा से अपने को दूर रखने व प्राणियों की रक्षा की खातिर विवाह करने से मना कर दिया और दीक्षा लेकर वन गमन को चले गये। जब उन्होंने विवाह में आने वाले मेहमानों के भोजन में प्राणियों के मांस का उपयोग होने की सूचना मिली तो उन्होंने बंधक बनाये गये जीवों को मुक्त कराया और हजारों प्राणियों का जीवन बचाया। जीवन में हमें भी भगवान नेमीनाथजी के जीवन से प्रेरणा लेनी चाहिये।
कर्तव्यों को समझे- साध्वीजी ने धर्मसभा में कहा कि जीवन में हमारा कर्तव्य क्या है इसे हमें समझने की जरूरत है। जीवन में कर्तव्य व अकर्तव्य का बोध हमें होना ही चाहिये। हमने मनुष्य भव में जन्म लिया है तो माता, पिता, गुरू, धर्म, देश सभी के प्रति हमारा क्या कर्तव्य है, इसे हमें समझना चाहिये। कर्तव्य को समझने वाला व्यक्ति पद प्रतिष्ठा पाता है। धर्मसभा में साध्वी श्री चंदना श्रीजी म.सा. ने भी अपने विचार रखे।