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खनन लाबी के विरोध एवं दबाव के चलते लालबर्रा वारासिवनी वन परिक्षेत्र में प्रस्तावित सोनेवानी अभ्यारण नहीं बनेगा

आनंद ताम्रकार
बालाघाट ७ जून ;अभी तक;  मध्यप्रदेश के बालाघाट  जिले में वारासिवनी अनुविभाग के अंतर्गत दक्षिण वन मंडल सामान्य बालाघाट के लालबर्रा वारासिवनी वन परिक्षेत्र में प्रस्तावित सोनेवानी अभ्यारण नहीं बनेगा।
                       वन मंत्री विजय शाह ने उक्त अभ्यारण को ना बनाने का निर्णय लिया है।  यह निर्णय अभ्यारण क्षेत्र में स्थित संरक्षित वन क्षेत्र में खनिज उत्खनन की गतिविधियों में संलग्न खनन लाबी के विरोध एवं दबाव के चलते लिया गया है।
                          यह उल्लेखनीय है कि मुख्यमंत्री की अध्यक्षता वाली स्टेट वाइल्डलाइफ बोर्ड ने निर्णय लिया था की बालाघाट के दक्षिण सामान्य वनमंडल अंतर्गत कान्हा पेंच टाइगर कॉरिडोर में स्थित सोनेवानी आरक्षित वन खण्ड के 163.195 किलोमीटर वन क्षेत्र को सोनेवानी अभ्यारण बनाया जायेगा। इस निर्णय के बाद वहां की खनिज लाबी ने विरोध शुरू कर दिया और उनके पक्ष में भाजपा विधायक गौरीशंकर भी आ गये जिन्होने सोनेवानी अभ्यारण नहीं बनाये जाने के लिये अपनी सिफारिश का पत्र शासन को प्रेषित किया था।
                        सोनेवानी अभ्यारण बनाये जाने के लिये सांसद ढालसिंह बिसेन सहित जिले के सभी विधायक पूर्व विधायक जिला पंचायत अध्यक्ष सहित विभिन्न संस्थाओं के प्रमुख पदाधिकारियों ने अपनी सहमति दी थी।
                        इस अभ्यारण को बनाये जाने के लिये वारासिवनी के विधायक प्रदीप जायसवाल पक्ष़्ा में हैं तो वहीं गौरीशंकर बिसेन ने इस अभ्यारण बनाये जाने के संबंध में यहां तक कह दिया की सोनेवानी अभ्यारण नहीं बनेगा यदि बनेगा तो मेरी लाश पर बनेगा।
                    राजनेताओं के वर्चस्व की लडाई एवं खनिज लाबी का विरोध इन विसंगतियों के चलते मुख्यमंत्री ने इस अभ्यारण के गठन की सूचना को स्थागित रखने के निर्देश वनविभाग को दिये है।
                        यह उल्लेखनीय है की सोनेवानी अभ्यारण क्षेत्र में लगभग 28 टाइगर सहित अन्य दुर्लभ वन्यप्राणी जिसमें तेंदुआ नीलगाय,बायसन,भालू,संाभर,चीतल,पेंगोलिन, सेही,जंगली सुअर, लोमडी,खरगोश,वाइल्ड डोग,लकडबग्गा नेओला, कबरबिज्जू, जंगली बिल्ली, अजगर, सहित अन्य वन्यप्राणियों की बहुतायत है।वहीं 150 पक्षीयों की दुर्लभ प्रजातियां मौजूद है तथा प्रवासी पक्षी भी दिखाई देते है।
इस अभ्यारण के वन क्षेत्र में अनेक बहुमूल्य और दुर्लभ औषधियां पाई जाती है।
                       कान्हा पेंच कॉरिडोर में स्थित सोनेवानी अभ्यारण के बन जाने से वनों एवं वन्य प्राणियों की सुरक्षा के साथ राजस्व में भी वृद्धि होने की उम्मीद जताई गई थी जो अब सरकार के फैसले के बाद धूमिल होते दिखाई दे रही है।
                         सोनेवानी अभ्यारण क्षेत्र के संरक्षित वन क्षेत्र में विगत वर्ष 2015 से 2060 की अवधि तक वन संरक्षण अधिनियम 1980 के अंतर्गत भारत सरकार के पर्यावरण वन्य एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा परियोजना प्रोजेक्ट में मैंगनीज ओर उत्खनन हेतु वन कक्षों के वनक्षेत्र में व्यपवर्तित की गई है।जिसके अनुसार मेसर्स पेसिफिक मिनरल्स बालाघाट 20 हेक्टर कक्ष क्रमांक 464।मेसर्स जे.के. मिनरल्स बालाघाट कक्ष क्रमांक 467,468 में 18 हेक्टर कक्ष क्रमांक 464,466 में 15 हेक्टर।  जे.के मिनरल्स बालाघाट कक्ष क्रमांक 460,461,466 में रकबा 10 हेक्टर । मेसर्स ए.पी. त्रिवेदी संस बालाघाट कक्ष क्रमांक 468 में रकबा 4.30 हेक्टर।
                            इस प्रकार स्वीकृत लीज क्षेत्र में उत्खनन की अनुमति 2060 तक प्राप्त कर लेने के बाद सोनेवानी अभ्यारण बन जाने से खनन लाबी पर विपरीत प्रभाव पडने की संभावना को दृष्टिगत रखते हुए शासन ने अभ्यारण ना बनाये जाने का निर्णय लिया है।
                           यह भी उल्लेखनीय है कि शासन की ओर यह स्पष्ट भी नही किया गया है की किन कारणों से सोनेवानी अभ्यारण बनाये जाने की अधिसूचना को रद्द किया जा रहा है। शासन के इस फैसले पर वन्यजीव प्रेमी पर्यावरण संरक्षण में लगे कार्यकर्ताओं ने असंतोष व्यक्त किया है।

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