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श्रीकृष्ण पर 16108 स्त्रियों के साथ विवाह करने का मिथ्या आरोप लगाने वालों पढो, सच यह है कि- *”स्त्रीजाति के सम्मान एवं सुरक्षा के प्रणेता थे युगंधर श्री कृष्ण*
*रमेशचन्द्र चन्द्रे*
मन्दसौर २५ अगस्त ;अभी तक ; कंस के वध के पश्चात श्री कृष्ण ने अपने नाना राजा उग्रसेन को मथुरा का राजा बनाया, क्योंकि राजा उग्रसेन अतिवृद्ध एवं दुर्बल थे। इसलिए राज कार्य की संपूर्ण जिम्मेदारी श्री कृष्ण, बलराम और अक्रूर जी ने संभाली।
कंस- वध के पश्चात कंस का ससुर जरासंध लगातार मथुरा पर आक्रमण कर रहा था और उसका एक सहयोगी राजा नरकासुर वह भी मथुरा पर अत्याचार करता था। नरकासुर ने हर आक्रमण के समय, मथुरा राज्य की स्त्रियों को उठाकर ले जाना शुरू किया। इस प्रकार लगभग 16100 लड़कियां एवं विवाहित स्त्रियों को उठाकर वह ले गया एवं अपने राज्य में उन्हें बंदी बना दिया। इस घटना से संपूर्ण मथुरा में हाहाकार मच गया तथा वहां की जनता, अपनी बहन, बेटी, पत्नी और माता के लिए श्रीकृष्ण पर दबाव बनाने लगे। श्रीकृष्ण ने न्याय सिद्धांत के आधार पर मथुरा की जनता की पुकार को महत्व देकर नरकासुर पर आक्रमण कर दिया तथा उसे हराकर उसके कब्जे से सभी 16100 स्त्रियों को मुक्त करा दिया।
किंतु अपहृत स्त्रियों के माता-पिता, भाई- बंधु, पति एवं अन्य सगे- संबंधी जो उन्हें वापस लाने के लिए आंदोलन कर रहे थे वह सभी उनके लौटने पर उन स्त्रियों को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं हुए, उनका मानना था कि- जो स्त्री पराये स्थान पर रहकर आ गई है वह दुषित है वह पवित्र नहीं हो सकती। इसलिए वह हमारे परिवार में रहने काबिल नहीं! अतः हम उन्हें स्वीकार नहीं कर सकते।
उक्त बात सुनकर श्री कृष्ण ने उन्हें विभिन्न शास्त्रों के उदाहरण देकर बहुत समझाने की कोशिश की किंतु वह लोग समझने के लिए तैयार नहीं थे। अब कृष्ण के सामने बड़ी विकट और असमंजस की स्थिति उत्पन्न हो गई। किंतु उक्त विकट या विकराल स्थिति को देखकर श्रीकृष्ण भी यदि उन स्त्रियों को अनाथ छोड़ देते या अपने दायित्व से मुक्त हो जाते तो संपूर्ण मथुरा राज्य में वे स्त्रियां, जीविका उपार्जन के लिए दर-दर भटकती या पथ- भ्रष्ट हो सकती थी ? अतः एक न्याय प्रिय राजा की तरह विचार करते हुए उनके उद्धार हेतु श्रीकृष्ण ने यह घोषणा की कि- जिसका कोई स्वामी नहीं उसका मैं स्वामी रहूंगा अर्थात यह सभी स्त्रियां मेरे संरक्षण में रहेगी और उनके पति के नाम के रूप में मेरा नाम उनके जीवन के साथ जुड़ा रहेगा। इसके साथ ही मथुरा राज्य के खर्चे से उनके निवास, जीविकोपार्जन और संरक्षण की व्यवस्था की गई।
चुंकि कंस वध के पश्चात श्री कृष्ण एक शक्तिशाली व्यक्तित्व के रूप में उभरकर आए थे इसलिए उनके सामने बोलने की हिम्मत किसी की नहीं थी अतः पूरे मथुरा राज्य में उनके इस निर्णय को सहर्ष स्वीकार कर लिया गया।
इसके अतिरिक्त उनकी आठ रानियां, रुक्मिणी, सत्यभामा, जामवंती, कालिंदी, मित्रबिंदा, सत्ता, भद्रा एवं लक्ष्मणा थी, जिसमें रुक्मणी और सत्यभामा पटरानी थी उन्होंने भी कृष्ण के इस निर्णय को सहर्ष स्वीकार किया।
इसलिए श्रीकृष्ण पर 16108 रानियों के साथ विवाह करने का आरोप लगाने वाले लोगों को उक्त सच को समझ लेना चाहिए।
इसके अतिरिक्त एक जानकारी और दे रहा हूं कि राधा से उनका विवाह कभी नहीं हुआ वैसे भी “राधा” का शाब्दिक अर्थ एवं भाव यह है कि, जो प्राणी मुक्ति के भाव से ईश्वर की आराधना करता है उसे “राधा” कहते हैं। इस प्रकार भगवान श्री कृष्ण की आराधना करने वाले सभी भक्त राधा की श्रेणी में आते हैं।
उक्त प्रकार से भगवान कृष्ण ने निराश्रित नारी- जाति के उद्धार के लिए एक साहस भरा कदम उठाया था और आगे चलकर महाभारत के समय धर्म की रक्षा के लिए अनेक नीतिगत एवं कूटनीतिक चालों से दुष्ट और राक्षसों को मरवा कर भारत में धर्म की स्थापना की। इसीलिए उन्हें “युगंधर कृष्ण” के नाम से संबोधित किया जाता है।
उन पर यह मिथ्या आरोप लगाने वाले तथा उन्हें बदनाम करने वाले लोग यह कहते हैं कि “वह इतने रंगीले मिजाज़ के थे कि उनकी 16108 रानियां थी उनको उक्त घटना पढ़ लेना चाहिए।
अतः हिंदू धर्म के मानने वालों को एवं अन्य लोगों को भी इस सच्चाई से अवगत होना चाहिए।