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पाप कर्म ही दुख का कारण है, पापकर्म से बचो- साध्वी श्री अर्हताश्रीजी

महावीर अग्रवाल 

मन्दसौर २६ अक्टूबर ;अभी तक;  मनुष्य को पापकर्म करने से बचना चाहिए क्योंकि पापकर्म की दुख का कारण है जब भी हमारे जीवन में दुख के क्षण आते है। हम दूसरों को दोष देने लगते है। दूसरों को दोष देने की बजाय स्वयं की क्रियाकलापों पर चिंतन करें और विचार करो कि यह जो दुख आया है पापकर्म के उदय के कारण आया है। इसलिये जीवन में पूण्य कर्म का खाता बढ़ाओं, पापकर्म का नहीं ।
                                उक्त उद्गार परम पूज्य जैन साध्वी श्री अर्हताश्रीजी म.सा. ने चौधरी कॉलोनी स्थित रूपचांद आराधना भवन में कहे। आपने गुरूवार को यहां धर्म सभा में कहा कि जीवन में राग द्वेष मानव को पापकर्म की ओर प्रवृत्त करते है। इसलिये सर्वप्रथम राग द्वेष से बचने का प्रयास करें हम अपने जीवन में जो कर्म करते है उसी के अनुसार फल भोगते है। यदि उत्तम कर्म करेंगे तो उत्तम फल मिलेगा लेकिन यदि पापकर्म करें तो पापकर्म का फल हमें दुख के रूप में ही भोगना पड़ेगा इसी कर्म सिद्धांत को समझे इसलिये जीवन में पुण्यकर्म का खाता बढ़ाये, पापकर्म का नहीं।
                                 पतिव्रता स्त्री केवल पति के लिये श्रृंगार करती है-साध्वी श्री अर्हताश्रीजी ने कहा कि विवाहित स्त्री को सुहाग की सभी निशानियां आभूषण पहनने ही चाहिए लेकिन उसका सजना संवरना दूसरों को दिखाने के लिये नहीं बल्कि पति के लिये होना चाहिय। शास्त्रों को भी मत है कि पतिव्रता स्त्री को लेकर अपने पति के लिये श्रृंगार करना चाहिये। यदि पति कई दिनों से घर से बाहर है या व्यापार कार्य से बाहर गये है तो श्रृंगार से बचना चाहिये। मैना सुंदरी ने भी श्रीपाल के बाहर जाने पर श्रृंगार का त्याग किया।
                                    औलीजी की तपस्या का धर्मालुजन ले रहे धर्मलाभ– साध्वी श्री अर्हताश्रीजी म.सा. आदि ठाणा 4 की पावन प्रेरणा व निश्रा में 9 दिवसीय नौपद की औलीजी की तपस्या रूपचांद आराधना भवन में चल रही है। 20 अक्टूबर से प्रारंभ हुई यह तपस्या 28 अक्टूबर तक रहेगी। लगभग 45 श्रावक श्राविकाएं यहां औलीजी की तपस्यायें कर रहे है। 29 अक्टूबर को औलीजी के तपस्वियों का पारणा होगा।

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