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प्रभु महावीर से प्रेरणा ले, जीवन को नियम (व्रत) से चलाये-श्री पारसमुनिजी
महावीर अग्रवाल
मंदसौर २३ अगस्त ;अभी तक; जैन आगमों से हमें प्रेरणा मिलती है कि हम अपने जीवन को सम्यक दृष्टि बनाये अर्थात मिथ्या दृष्टि से बचे। प्रभु महावीर का जीवन चरित्र हमें धर्मपथ पर पुरुषार्थ करने की प्रेरणा देता है अर्थात मनुष्य को अपना जीवन नियम या अनुशासन से जीना चाहिये। जिन मनुष्यों के जीवन में नियम (व्रत) नहीं होते है वे अज्ञानी की श्रेणी में आते है। इसलिये जीवन को नियम (व्रत) के अनुसार चलाना चाहिये।
उक्त उद्गार प.पू. जैन संत श्री पारसमुनिजी म.सा. ने शास्त्री कॉलोनी स्थित नवकार भवन में कहे। आपने बुधवार को यहां आयोजित धर्मसभा में कहा कि जो लोग धर्म में पुरूषार्थ नहीं करते है उन्हें मोक्ष की प्राप्ति नहीं होती है। कई मनुष्य धर्म पथ पर बढ़ना तो चाहते है लेकिन नियम व्रत पंचकाण नहीं लेते। ऐसे मनुष्य जान बूझकर पापकर्म करने वाले बन जाते है। मनुष्य को संसार में जन्म मरण करने की अपनी श्रृंखला को छोड़ना है तो उसे धर्म पथ पर पुरूषार्थ करना ही होगा तभी वह मोक्षगामी बनेा।
संत श्री दिव्यममुनिजी ने कहा कि प्रभु महावीर को श्रमण भगवान भी कहते है क्योंकि उन्होंने धर्म के लिये श्रम किया जो ऐसा करता है वह श्रमणी कहलाता है। उन्होंने अपनी दीक्षा के बाद 42 वर्ष कासमय स्वयं की आत्मा के उद्धार व अन्य आत्माओं के उद्धार में लगाया। आपने धर्मसभा में कहा कि संसार में तीन प्रकार के मानव होते है। सामान्य मानव, शीर्ष मानव व विशिष्ठ मानव। हमें कौन सा मानव बनना है विचार करे।