रक्षाबंधन पर्व पर रक्षा सूत्र की महत्ता समझे- श्री पारसमुनिजी
महावीर अग्रवाल
मंदसौर ३१ अगस्त ;अभी तक; रक्षा बंधन पर्व केवल भाई बहन का ही पर्व नहीं है। जैन आगमों में भी इस पर्व की महत्ता बताई गई है। प्राचीनकाल से रक्षा सूत्र बांधने की परंपरा चली आ रही है। यह आवश्यक नहीं है कि बहन ही भाई की कलाई पर रक्षा सूत्र बांधे। रक्षा सूत्र एक भाई दूसरे भाई की कलाई पर भी बांधकर एक दूसरे की रक्षा का वचन दे सकता है। क्षत्रिय अपने शस्त्र पर रक्षा सूत्र बांधते है, क्योंकि शस्त्र ही क्षत्रिय की रक्षा का साधन है, इसलिये रक्षा सूत्र की महत्ता को समझे।
उक्त उद्गार परम पूज्य जैन संत श्री पारसमुनिजी म.सा. ने नवकार भवन शास्त्री कॉलोनी में कहे। आपने बुधवार को धर्मसभा में कहा कि वैदिक दर्शन में बताई गई राजा बलि व वामन अवतार की कथा की भाति जैन आगमों में विष्णुमुनिजी की कथा का वृतान्त है जो कि रक्षाबंधन पर्व से जुड़ा है। उन्होनंे जैन धर्म के श्रावकों व संतों की रक्षा की थी वे चक्रवर्ती सम्राट महापद्मजी के सांसारिक भाई थे और उन्हें कई लब्धियां प्राप्त थी।
डोर का नहीं रिश्तों का महत्व है- सत श्री कहा कि रक्षाबंधन पर्व पर रक्षा सूत्र बांधते समय भाई व बहन एक दूसरे की मदद करने का संकल्प लेंगे तो ही रक्षाबंधन पर्व मनाना सार्थक होगा। भाई यदि गरीब है तो बहने भी उसकी मदद कर सकती है। भाई को भी चाहिये कि वह बहनों में फर्म नहीं करे अर्थात जो बहन अमीर है उसे ज्यादा महत्व दो और गरीब बहन का सम्मान नहीं हो, ऐसा हमें नहीं करना चाहिए।