प्रदेश
पशुपतिनाथ महादेव की प्रतीमा पर कुमकुम तिलक नहीं लगाने के तुगलकी निर्णय से श्रद्धालुओं की भावनाएं हो रही है आहत-सुरेश भावसार
महावीर अग्रवाल
मन्दसौर १९ जून ;अभी तक; पूर्व पार्षद व वरिष्ठ पत्रकार सुरेश भावसार ने कहा कि कोई भी धार्मिक आयोजन हो तो कंकू, अक्षत, अबीर, गुलाल का चढ़ाने का अपना अलग ही महत्व है। हिन्दू धर्म में जहां भगवान को कंकू, अबीर, चावल चढ़ाए जाते हैं वहीं कंकू व कुमकुम का तिलक का भी अपना महत्व है लेकिन इन दिनों अष्टमुखी भगवान पशुपतिनाथ मंदिर की प्रबंध समिति ने तुगलकी निर्णय ले लिया है कि कुमकुम में केमिकल होता है और मूर्ति का शरण होता है इसलिए भगवान की मूर्ति को कुमकुम नहीं चढ़ाया जाएगा। इस बात को लेकर पुजारीजी ने भी कुमकुम चढ़ाना बंद कर दिया है साथ ही आने वाले भक्त जिन्हें कुमकुम का तिलक लगाया जाता है वह भी लगाना बंद कर दिया गया है।
श्री भावसार ने कहा कि क्या शुद्ध कुमकुम नहीं मिल सकता है ? क्या प्रबंध समिति इतना भी कार्य नहीं कर सकती है या इसके पीछे उनकी मंशा कुछ और है जो भी हो लेकिन भक्तों की धार्मिक भावनाओं श्रद्धालुओं को प्रबंध समिति ठेस पहुंच रही है क्योंकि भक्त तिलक मंदिर में नहीं तो क्या कहीं और जाकर लगाएगा ? क्या उनकी धर्म की आस्था के साथ पशुपतिनाथ प्रबंध समिति का यह खिलवाड़ कहां तक उचित है क्योंकि भक्त मंदिर में आता है और कुमकुम तिलक लगाकर अपनी आस्था को प्रकट करता है लेकिन शायद उसकी आस्था को ठेस पहुंचती है।
श्री भावसार ने कहा कि पशुपतिनाथ मंदिर समिति के इस तुगलक की निर्णय की जानकारी जिला प्रशासन के अधिकारी कर्मचारी जनप्रतिनिधि आदि को दी गई है या नहीं यह विचारणीय प्रश्न है। अगर दी गई तो आखिर वह मोन क्यों है और नहीं दी गई तो आखिर क्यों नहीं दी गई। क्या प्रबंध समिति नहीं होने के कारण पशुपतिनाथ मंदिर के कर्मचारी अपने मनमर्जी का राज इस मंदिर पर चलायेगे, क्योंकि पूर्व में भी शरण को लेकर जल चढ़ाना बंद करवा दिया गया उसके बाद भी आप देख सकते हैं कि अष्टमुखी भगवान पशुपतिनाथ के मंदिर की मूर्ति के नीचे वाले मुख मे शरण जो पहले था वह आज भी बरकरार है क्या भक्तों को भगवान से दूर करने का निर्णय पशुपतिनाथ मंदिर के कर्मचारियों ने ठेका ले रखा है। अपने वेद पुराणों में उक्त श्लोक का भी वर्णन किया गया है की,
तिलकं विप्र हस्तेन, मातृ हस्तेन भोजनम्।
पिण्डं पुत्र हस्तेन, न भविष्यति पुनः पुनः ।।
इसका अर्थ है कि ब्राह्मण के हाथ से तिलक, माता के हाथ से भोजन एवं पुत्र के हाथ से पिण्डदान का बार बार सौभाग्य प्राप्त नहीं होता।
तिलकं विप्र हस्तेन, मातृ हस्तेन भोजनम्।
पिण्डं पुत्र हस्तेन, न भविष्यति पुनः पुनः ।।
इसका अर्थ है कि ब्राह्मण के हाथ से तिलक, माता के हाथ से भोजन एवं पुत्र के हाथ से पिण्डदान का बार बार सौभाग्य प्राप्त नहीं होता।