मनोविकारों को जीतने का पुरूषार्थ करना ही नवरात्रि मनाना है, चैतन्य देवियों का सजा सच्चा दरबार
दीपक शर्मा
पन्ना २१ अक्टूबर ;अभी तक; प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय, पन्ना की ओर से झरकुआ, कालका मंदिर, तालाब के पास ’’चैतन्य देवियों की भव्य झांकियां’’ लगाई गयीं। जिसमें बहनजी ने देवियों का आध्यात्मिक रहस्य बताया कि नवरात्रि क्या है ? नौ देवियों का अवतरण काल नवरात्रि कहलाता है कारण कि, शिव और शक्ति का साथ-साथ गायन है अर्थात्् जब शिव परमात्मा कलयुगी पतित सृष्टि के उत्सर्ग के लिये अवतरित होते हैं तो शिव-शक्ति अर्थात् माताओं-बहनों को भी अपने साथ आसुरी शक्तियों के विनाश और दैवी शक्तियों के विकास के लिये सहभागी बनाते हैं। ऐसी ही पवित्र ब्रह्मचारिणी, ज्ञान और गुण द्वारा अवगुणों का विनाश करने वाली मातृशक्ति का गायन नवदुर्गा के रूप में है।
हमारे समाज में नारी को एक देवी का रूप माना जाता है लेकिन आज हमारा समाज एक ओर तो देवी को नवरात्रि के रूप में पूजता है और उसी देवी के वास्तविक स्वरूप नारी को कुछ समय बाद भूल करके नारी शक्ति का अपमान करता है और उस देवी के साथ हैवानियत कर उन्हें मौत के घाट उतार देता है भारत की परम्पराओं में नारी का स्थान सर्वोच्च है इसलिए कहा जाता है कि, नारी और नाड़ी अगर खराब हो जाए तो हर घर और जीवन खराब हो जाता है तो ना केवल नवरात्रि मनायें बल्कि अपने घर, पड़ोस और नारी जगत का सम्मान करने का व्रत लें कि, जितना हम नौ देवियों को सम्मान देते हैं, नमन करते हैं उतना ही हम अपनी माताओं बहनों का सम्मान करेंगे तभी देवी मां खुश होकर अपने वरदानों से मालामाल करेंगी।
मां दुर्गा अर्थात्् दुर्गुणों को दूर करने वाली दुर्गणनाशिनी। अतः इस देवी के व्रत के साथ हमें मन से दुर्गुणों के त्याग की प्रतिज्ञा भी करनी चाहिए। मां लक्ष्मी अर्थात्् जिसमें महान लक्ष्य है, वही मां लक्ष्मी है। तभी गायन है ’’नर ऐसी करनी करे जो नारायण बन जाये’’ नारी ऐसी करनी करे, जो लक्ष्मी के समान बन पूजी जाये।’’ श्री लक्ष्मी के अंग-प्रत्यंग की तुलना कमल से करते हैं तथा हम सभी को लक्ष्य रखना है कि, संसार रूपी कीचड़ में रहते हुए भी बुराईयों एवं गलत संस्कारों से उपराम रहना है।
मां सरस्वती अर्थात सरस्वती को हंस पर विराजमान हांथ में वीणा लिये और धवल वस्त्रधारी दिखाया गया है, इसका आध्यात्मिक अर्थ यह है कि कलयुग के अंत में जो आत्मायें सादगी और पवित्रता का धवल वस्त्र धारण करती हैं, जिनके मन और मुख से सदा ज्ञान रूपी वीणा झंकृत होती रहती है। वे ही हंस के समान नीर-क्षीर विवेक कर दुर्गुणों से दूर रह पाती हैं। सभी ग्रामवासी (झरकुआ) आध्यात्मिक प्रवचनों का लाभ ले रहे हैं एवं अपने जीवन को दुर्गुणों एवं अन्दर छिपे हुये दुर्व्यसनों रूपी राक्षसों का संहार करने का व्रत ले रहे हैं। सभी ग्रामवासियों ने कार्यक्रम की सराहना की।