प्रदेश
*भारतीय शिक्षा का पाठ्यक्रम और ट्यूशन की बीमारी*
*प्रस्तुति-रमेशचन्द्र चन्द्रे*
मन्दसौर २१ फरवरी ;अभी तक; हम आधुनिक शिक्षा की बात करते हैं और प्राचीन शिक्षा की वकालत करते हैं किंतु हमारी शिक्षा का पाठ्यक्रम बीच में ही लटक कर रह गया है, क्योंकि पश्चिमी देशों में प्रचलित पद्धति की आधुनिकतम आधारभूत बातों का ना तो इसमें समावेश है और न हीं हमारी प्राचीन पद्धति का।
हमारे जीवन के प्रत्येक क्षेत्र की श्रेष्ठतम उपलब्धियां के इतिहास की जानकारी हमारे यहां के विद्यार्थियों को नहीं है। *आज विद्यार्थियों के समक्ष कोई महानतम दिव्य उद्देश्य न होने के कारण वे समय बिताने के लिए गंदा और भद्दा साहित्य पढ़ने अथवा मोबाइल पर इसी प्रकार के वीडियो देखने में रुचि रखते हैं।*
*हमारे यहां के प्रमाणित लेखकों द्वारा लिखी पाठ्य- पुस्तकों और संदर्भ पुस्तकों की छुट्टी कर दी गई है। कुंजियो और प्रश्नोत्तर की पुस्तकों का प्रचलन बढा है।* छात्रों को ट्यूशन और कोचिंग क्लास द्वारा परीक्षा पास करने का आसान रास्ता उपलब्ध हो गया है। इन गलत बातों को अपनाने के कारण छात्रों में पहल करने की भावना तथा विषय को समझने की शक्ति, योग्यता और अंत प्रेरणा नष्ट हो गई है।
वास्तव में छात्रों द्वारा ट्यूशन की आवश्यकता अनुभव करने को, शिक्षकों ने स्वयं की अयोग्यता तथा कर्तव्य पालन के प्रति लगन का अभाव मानकर अपमानित महसूस करना चाहिए किंतु कुछ शिक्षक तो छात्रों पर इस बात के लिए दबाव डालते हैं कि वह उनके पास ट्यूशन पढ़ने के लिए आए और यही कारण है कि आगे चलकर यह छात्रों के नैतिक पतन का कारण बनता है। ईमानदारी से पढ़ने की आवश्यकता न होने का विचार मन में आने पर वह परीक्षा में पास होने के लिए अन्य अनैतिक मार्ग अपनाने में संकोच नहीं करता। यही नैतिक चरित्र के अभाव का सबसे बड़ा कारण है।
इसलिए प्राथमिक शिक्षा से ही विद्यार्थियों को सही दृष्टिकोण मिल जाए तथा उनके मन को सुसंस्कृत करने के लिए अपने प्राचीन और आधुनिक साहित्य के भंडार पर हमें निर्भर रहना चाहिए। जिनमें श्रेष्ठ राष्ट्रीय महापुरुष, उनके जीवन की घटनाओं का वर्णन उन्हें पढ़ाया जाना चाहिए। “हम ऋषि मुनियों की संतान हैं” इसका एक अभिमान हृदय में धारण हो, ऐसी शिक्षा की व्यवस्था की जाए। शिक्षा ऐसी हो जिसमें हम मनुष्य की भांति रहना सीखें मनुष्य की तरह दिखें और पूरे विश्व में एक आदर्श स्थापित करने की कला का हमारे जीवन में विकास हो तब ही हम भारतीय शिक्षा के निकट पहुंचेंगे और आधुनिक शिक्षा का अध्ययन करने के साथ-साथ भी हम अपने संस्कारों को कभी नहीं भूलेंगे।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति में इन सब का प्रावधान अवश्य किया गया है पर ऐसा प्रतीत होता है की सरकार समाज और शिक्षा के कर्ताधर्ता इसमें अपनी कोई रुचि नहीं दिख रहे।