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हिन्दू समाज के सोलह संस्कारों का उल्लंघन है प्री वेडिंग- रविन्द्र पाण्डे, पश्चिमी संस्कृति के आभा मण्डल में अपनी भारतीय संस्कृति को ना भूले युवाजन
महावीर अग्रवाल
मन्दसौर २८ फरवरी ;अभी तक; सामाजिक कार्यकर्ता रविन्द्र पाण्डेय ने कहा कि पिछले 5-6 वर्षों से देश में भारतीय संस्कृति से होने वाले विवाह समारोह में एक नया प्रचलन ‘‘प्री वेडिंग’’ के रूप में सामने आया है। जिसको वर्तमान में ऐसे परिवारों द्वारा आयोजित किया जा रहा है जो समाज में उच्च परिवारों में माने जाते है। प्री वेडिंग जिसके तहत होने वाले दूल्हा- दुल्हन अपने परिवारजनो की सहमति से शादी से पूर्व फ़ोटोग्राफर के एक समूह के साथ देश के अलग-अलग सैर सपाटो की जगह, बड़ी होटलो, हेरिटेज बिल्डिंगों, समुद्री बीच व अन्य ऐसी जगहों पर जहाँ सामान्यतः पति-पत्नी विवाह उपरान्त जाते है वहां जाकर अलग- अलग और कम से कम परिधानों में एक दूसरे की बाहो में समाते हुए वीडियो शूट करवाते है और फिर ऐसी वीडियो फ़ोटोग्राफी को शादी के दिन एक बड़ी सी स्क्रीन लगाकर, जहाँ लड़की और लड़के के परिवार से जुड़े तमाम रिश्तेदार मौजूद होंते है की उपस्थिति में सार्वजनिक रूप से उस कपल को वो सब करते हुए दिखाया जाता है जिनकी अभी शादी भी नहीं हुई है और जिनको जीवन साथी बनने के साक्षी बनाने और उन्हें आशीर्वाद देने के लिये ही सगे संबंधियो और सामाजिक लोगो को वहा बुलाया जाता है।
जब वे रिश्तेदार जो नवयुगल को आशीर्वाद देने विवाह समारोह में प्रवेश करते है तो उन्हें गेट के अंदर घुसते ही जो देखने को मिलता है वह शर्मसार करने वाला होता है। जिस भावी कपल को हम वहा आशीर्वाद देने पहुँचते है। वो वहा पहले से ही एक दूसरे की बाहो में झूल रहे होंते है और सबसे बड़ी बात यह है की यह सब दोनों परिवारो की सहमति से होता है। ऐसे प्री-वेडिंग में प्रायः यह देखने में आता है कि लड़का- लड़की कई दिन तक बाहर रहकर साथ में कई राते बिता चुके होंते है। यह शुरुआत अभी उन घरानो से हो रही है जो समाज के नेतृत्वकर्ता और समाज को राह दिखाने वाले बड़े-बड़े व धनाढ्य है जो समाज सुधार की दिशा में कार्यक्रम करते रहते है। ऐसे बड़े परिवार ऐसी शादियों को जो अपने पैसो के बल पर इस प्रकार की गलत प्रवर्तियो को बढ़ावा देकर समाज के छोटे तबके के परिवारो को संकट में डाल रहे है। .
रविन्द्र पाण्डे ने समाज के उन सभी सभ्रांतजनो से अनुरोध किया है कि भारतीय संस्कृति जहां पवित्र सोलह संस्कारों से नवयुगल विवाह बंधन में बंधते है, मर्यादा होती है, शर्म होती है, बड़ों का आदर व सम्मान होता है उस समाज में ऐसी पश्चिमी विकृति को बढ़ावा देने वाले परिवारो से ऐसी प्रवृत्ति को बंद करना चाहिए। अन्यथा ऐसी शादियों का सामाजिक बहिष्कार करे। तब ही ऐसी प्रवर्तियो पर रोक लगना संभव हो सकेगा। अन्यथा ऐसी संस्कृति से आगे चलकर समाज का इतना बड़ा नुकसान होंगा जिसकी भरपाई कई पीढ़ियों तक करना संभव नहीं हो सकेंगा और कुछ परिवारो की वजह से शादी जैसे पवित्र बंधन पर शादी से पूर्व ही एक बदनुमा दाग लगेगा। जिसका खामियाजा समाज के छोटे तबके को भुगतना पड़ेंगा। जिसकी परिणीति में शादी से पूर्व सम्बन्ध टूटना या शादी के बाद तलाक की संख्या में वृद्धि के रूप में होंगी।