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मिथ्या दर्शन को छोड़ों, सम्यक दर्शन को अपनाओं- संत श्री पारसमुनिजी
महावीर अग्रवाल
मन्दसौर १३ जुलाई ;अभी तक; मनुष्य को अपने जीवन में सम्यक दर्शन की महत्ता को समझना चाहिये। जीवन में मिथ्या दर्शन को ही सब कुछ मान लेते है तो हमारा जीवन सद्कर्मों से भटक जाता है। मिथ्या दर्शन मानव की सोच पर पर्दा डाल देती है। हमें अपने जीवन में सम्यक दर्शन की महत्ता को समझना चाहिये तथा जिनवाणी में जो सम्यक दर्शन की व्याख्या की गई है उसके अनुरूप आचरण करना चाहिये।
उक्त उद्गार परम पूज्य जैन संत श्री पारसमुनिजी म.सा. आदि ठाणा 4 ने नवकार भवन शास्त्री कॉलोनी में आयोजित धर्मसभा में कहे। आपने गुरूवार को धर्मसभा में कहा कि जैन आगम आचरण सूत्र में प्रभु महावीर के ज्ञान दर्शन व चरित्र का विस्तार से वर्णन मिलता है। हमें इस आगम को पड़ना चाहिये और समझना चाहिये कि प्रभु महावीर का ज्ञान दर्शन चारित्र किस प्रकार का था। आपने कहा कि सम्यक दर्शन के बिना हमारा जीवन आत्मसुख को प्राप्त नहीं कर सकता। यदि जीवन को आत्मसुख के मार्ग की ओर प्रवृत्त करना है तो सम्यक दर्शन की महत्ता को समझना ही पड़ेगा। हमे ंमानव जीवन कई जन्मों के पूण्य उदय से प्राप्त हुआ है हमें इस मनुष्य भव को मिथ्या दर्शन में पड़कर नष्ट नहीं करना है, हमें चिंतन करना है कि प्रभु महावीर ने हमें जो ज्ञान दिया है हमें उसे अप नाना है और उसके अनुरूप आचरण करना है। आपने कहा कि सम्यक ज्ञान, दर्शन व चारित्र हमें सद्गुरु के सानिध्य में जाने से ही प्राप्त होगा। सद्गुरु ही हमें सम्यक दर्शन व मिथ्या दर्शन का भेद बता सकते है। जिस प्रकार धूल मिट्टी नये बर्तन को ढककर उसकी चमक को अस्थायी रूप से रोक लेती है यदि उस चमक को फिर पाना है तो पहले बर्तन पर लगी धूल साफ करनी होगी उसी प्रकार हमार आत्मा पर जो मिथ्या दर्शन की धूल है उसे साफ करो और जीवन में सच्चे सम्यक दर्शन को अपनाओं, इसी में जीवन का सार है और उसी से सद्गति मिलेगी।
सुनो, सहन करो, किसी से कुछ मत कहो- धर्मसभा में श्री अभिनव मुनिजी ने कहा कि प्रभु महावीर ने दिक्षा लेने के बाद लगभग साढ़े बारह वर्ष तक वन में रहकर ध्यान किया। इसी दौरान उन्होनंेे किसी को कोई प्रवचन नहीं दिया केवल ज्ञान होने के बाद ही उन्होनंे प्रतिबोध दिया। इसलिये हम भी उनसे प्रेरणा ले जिस प्रकार प्रभु महावीर ने वन के कठोर कष्ट सहे हम भी कष्ट सहन करना सीखे, दूसरों को ज्ञान देने के पहले दूसरों की बात सुने तभी हमारा कल्याण हो सकता है। सुनो, सहन करो और किसी से कुछ भी मत कहो के वाक्य को जीवन में अपनाये। धर्मसभा में बड़ी संख्या में धर्मालुजन उपस्थित थे।
सुनो, सहन करो, किसी से कुछ मत कहो- धर्मसभा में श्री अभिनव मुनिजी ने कहा कि प्रभु महावीर ने दिक्षा लेने के बाद लगभग साढ़े बारह वर्ष तक वन में रहकर ध्यान किया। इसी दौरान उन्होनंेे किसी को कोई प्रवचन नहीं दिया केवल ज्ञान होने के बाद ही उन्होनंे प्रतिबोध दिया। इसलिये हम भी उनसे प्रेरणा ले जिस प्रकार प्रभु महावीर ने वन के कठोर कष्ट सहे हम भी कष्ट सहन करना सीखे, दूसरों को ज्ञान देने के पहले दूसरों की बात सुने तभी हमारा कल्याण हो सकता है। सुनो, सहन करो और किसी से कुछ भी मत कहो के वाक्य को जीवन में अपनाये। धर्मसभा में बड़ी संख्या में धर्मालुजन उपस्थित थे।